पांवटा साहिब: सिरमौर जिले के गरीबा क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली पर्व शुरू हो गया है. 4 से 5 दिन तक चलने वाले इस पर्व के दौरान क्षेत्र के 200 गांव में हर्षोल्लास का माहौल रहेगा. समूचे क्षेत्र में नाच गाना और दावतें चलेंगी.
विशिष्ठ सांस्कृतिक पहचान रखने वाले सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र में अनोखा त्योहार शुरू हो गया है. दीपावली और देव दीपावली के बाद मनाए जाने वाले इस पर्व को बूढ़ी दिवाली कहा जाता है.
यह त्यौहार अपने भीतर पहाड़ी संस्कृति के हर रंग को समेटे हुए है
यह त्योहार क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे अलग-अलग तरह की किंवदंती है. त्योहार मनाने का कारण जो भी हो, लेकिन यह त्योहार अपने भीतर पहाड़ी संस्कृति के हर रंग को समेटे हुए है.
लोग मशालें लेकर ढोल नगाड़ों की थाप पर नाचते गाते हैं
बूढ़ी दिवाली की शुरुआत दीपावली से अगली अमावस्या यानी मार्ग शीर्ष महीने की अमावस्या की रात से शुरू होता है. गांव के लोग मशालें लेकर गांव भर में ढोल नगाड़ों की थाप पर नाचते गाते परिक्रमा करते हैं. मान्यता है कि इस तरह से गांव में आई आपदाओं और बुरी आत्माओं को गांव के बाहर भगाया जाता है.
4 से 5 दिनों तक नाच गाना और दावतों का दौर
सुबह लगभग 3:00 बजे शुरू होने वाली मशाल यात्रा सूर्य उदय के साथ ही खत्म होती है. इसके बाद 4 से 5 दिनों तक नाच गाना और दावतों का दौर चलता है. परिवारों में औरतें विशेष तरह के पारंपरिक व्यंजन तैयार करती हैं. सिर्फ बूढ़ी दिवाली के अवसर पर बनाए जाने वाले गेहूं की नमकीन यानी मूड़ा और पापड़ सभी आने वालों को विशेष तौर पर परोसा जाता है.
पारंपरिक पर्व पर भी कोरोना का साया
पारंपरिक वेशभूषा में सजे बजंत्री पारंपरिक गीत गाने गाते हैं और ग्रामीण नृत्य और गायन का लुत्फ उठाते हैं. हालांकि इस बार बूढ़ी दिवाली के इस ऐतिहासिक पारंपरिक पर्व पर भी कोरोना का साया पड़ा है. हजारों लोगों की मशाल यात्रा की भीड़ सैकड़ों लोगों में सिमट कर रह गई है, लेकिन ग्रामीण लोगों ने कोरोना के खतरे के बीच भी अपनी परंपरा का निर्वहन किया है.