पांवटा साहिब: अद्भुत हिमाचल में आपकों लूण और लोटा प्रथा के बारे में बताएंगे. ये प्रथा उस दौर से चली आ रही है जब सच और झूठ का फैसला करने के लिए न कोर्ट होता था न पंचायत. लूण लोटा एक समय में न्याय व्यवस्था का एक हिस्सा था. लोग लोटा लूण की प्रथा से ही खुद को सच्चा झूठा साबित करते थे.
आधुनिकता के दौर में आज भी ये प्रथा सिरमौर के गिरिपार, शिमला, मंडी समेत हिमाचल के कई इलाकों में चली आ रही है. लूण का मतलब है नमक और लोटा मतलब कलश. पानी से भरे कलश में लोग नमक डालकर अपनी सत्यता का प्रमाणा देने के साथ साथ दूसरे के साथ अपनी बफादारी साबित करते हैं.
लोटे में नमक डालते हुए देवता को साक्षी मानकर कसम
दरअसल, जब एक शख्स पानी से भरे लोटे में नमक डालते हुए देवता को साक्षी मानकर कसम लेता है, तब वह एक वादा कर रहा होता, जिसे उसे निभाना ही होता है. अगर उसने नहीं निभाया तो जिस तरह पानी में नमक घुल गया और खत्म हो गया. उसी तरह अगर वचन या वादा पूरा नहीं किया तो वचन देने वाला शख्स भी इसी तरह खत्म हो जाएगा.
वफादार रहने के लिए भी किया जाता था
हैरी पॉटर फिल्म की सीरीज बल्ड पैक्ट जैसे दो लोग अपने खून से शपथ लेकर एक दूसरे के साथ हमेशा के लिए बंधकर किए गए वायदे को निभाने की कसम खाते थे. ठीक उसी तरह पहले लूण लोटा मालिक नौकर और पति-पत्नी के बीच एक दूसरे के लिए वफादार रहने के लिए भी किया जाता था.
वोट नोट से नहीं लूण लोटा से पक्का किया जाता है
भारत एक लोकतांत्रिक देश है. जनता के चुने हुए प्रतिनिधी ही शासन करते हैं. पंचायत से लेकर लोकसभा तक का चुनाव मतदान के जरिए होता है. चुनाव के दौरान वोट खरीदने के लिए कई उम्मीदवार नोट का सहारा लेते हैं, लेकिन गिरीपार और हिमाचल के कुछ इलाकों में वोट नोट से नहीं लूण लोटा से पक्का किया जाता है.
विवादों का निपटारा करने के लिए
जब इस प्रथा की शुरुआत हुई थी, तब इसका इस्तेमाल विवादों का निपटारा करने के लिए किया गया. विवादों को सुलझाने का यह एक शांतिपूर्ण तरीका था, लेकिन वक्त के साथ लोगों ने इसका गलत इस्तेमाल भी करना शुरू कर दिया. चुनाव के समय वोट पक्का करने के लिए लूण लोटा की ये परंपरा एकदम घातक है.