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हिमाचल में बढ़ रही भूस्खलन की घटनाएं, 3 सालों में भूस्खलन की 233 बड़ी घटनाएं हुई, 180 लोगों को गंवानी पड़ी जान

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Published : Mar 9, 2023, 9:58 PM IST

बीते 3 सालों में ही हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की 233 बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं. भूस्खलन से इस अवधि में 180 लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. राज्य में भूस्खलन से सबसे ज्यादा किन्नौर, चंबा, कांगड़ा, मंडी और शिमला जिले में भूस्खलन हो रहे हैं. इनमें सबसे ज्यादा 42 मौतें किन्नौर जिले में हुई हैं.

Landslide incidents in Himachal
हिमाचल में बढ़ रही भूस्खलन की घटनाएं

शिमला: हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की घटनाएं जानलेवा साबित हो रही हैं. भूस्खलन से गिरने वाले मलबे की चपेट में आने से लोगों की जानें भी जा रही हैं. हिमाचल में लगातार भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं. बीते 3 सालों में ही राज्य में भूस्खलन की बड़ी 233 घटनाएं हो चुकी हैं. भूस्खलन से इस अवधि में 180 लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. राज्य में भूस्खलन से सबसे ज्यादा किन्नौर, चंबा, कांगड़ा, मंडी और शिमला जिला में भूस्खलन हो रहे हैं.

मौसम में आए बदलाव के कारण अब या तो बारिश नहीं होती और होती है तो कई जगह इतनी भारी होती है कि यह कई घरों, भवनों को अपनी चपेट में ले रही है. इसले भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. राज्य में बीते तीन सालों 2020 से 2022 तक भूस्खलन की बड़ी 233 घटनाएं हुई हैं, इनमें सबसे ज्यादा 117 बड़ी घटनाएं साल 2022 में हुईं. इससे पहले यानी साल 2021 में राज्य में 100 बड़ी घटनाएं भूस्खलन की हुईं, साल 2020 में 16 बड़ी घटनाएं भूस्खलन की हुईं.

पांच जिलों में हुई 75 फीसदी भूस्खलन की घटनाएं: हिमाचल में भूस्खलन की सबसे ज्यादा घटनाएं चंबा, कुल्लू, लाहौल-स्पीति, मंडी, शिमला में हो रही हैं. हालांकि किन्नौर जिला भी भूस्खलन की लिहाज से काफी संवेदनशील है. साल 2022 की भूस्खलन की 117 बड़ी घटनाओं को देखें तो चंबा जिले में 14 घटनाएं, कुल्लू में 21, लाहौल स्पीति में 18, मंडी में 20 और शिमला जिला में 15 घटनाएं भूस्खलन की इस दौरान हुई हैं. अन्य जिलों में बिलासपुर में 8, कांगड़ा में 5, किन्नौर में 3, सिरमौर में 9, सोलन में 3, ऊना जिले में एक घटना भूस्खलन की इस दौरान हुई है. हमीरपुर एक मात्र जिला था जहां बीते साल कोई बड़ी घटना भूस्खलन की नहीं हई.

Landslide incidents in Himachal
भूस्खलन से सड़क तबाह.

180 लोगों तीन सालों में भूस्खलन में गंवाई जान: हिमाचल में बरसात के समय में होने वाली भारी बारिश कई जगह लोगों की जान पर भारी पड़ रही है. भारी बारिश से होने वाले भूस्खलन की चपेट में कई बार मकान या अन्य रिहायशी इलाके आ चुके हैं, जिससे यहां रहने वाले लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. बीते तीन सालों में ही भूस्खलन की चपेट में आने से 180 लोगों की मौत हुई है, इनमें सबसे ज्यादा 42 मौतें किन्नौर जिले में हुई हैं. चंबा जिले में 32 लोगों की मौत हुई है, जबकि कांगड़ा में 20 लोग भूस्खलन से आने वाले मलबे की चपेट में इस दौरान आए. मंडी जिले में 24, शिमला जिले में 21, सिरमौर जिले में 13 लोगों की मौत भूस्खलन की वजह से हुई. इसके अलावा बिलासपुर और हमीरपुर में 3-3 लोगों, कुल्लू में 7, लाहौल स्पीति में 5, सोलन जिला में 9 और ऊना में एक की मौत बीते तीन सालों में भूस्खलन से हुई है.

राज्य में भूस्खलन वाली 675 जगह आवासीय क्षेत्रों के हैं समीप: राज्य में भूस्खलन वाली 17120 जगहों की पहचान की गई है जिनमें से 675 जगह बेहद संवेदनशील पाई गई हैं, यानी कि ये जगह रिहायशी इलाकों या अन्य भवनों के समीप है. इनमें से सबसे ज्यादा 133 जगह चंबा जिला में में हैं, जबकि मंडी में 110 जगह हैं. कांगड़ा में 102 जगह और कबाइली जिला लाहौल स्पीति में 91 जगह बस्तियों के समीप हैं जो कि कभी भी कहर बरपा सकती हैं. अन्य जिलों में से किन्नौर में 15 जगह, कुल्लू में 91 जगह, शिमला में 50 जगह, सिरमौर में 21, सोलन में 44 और ऊना में 63 जगह रिहायशी इलाकों या अन्य भवनों के समीप हैं. इनसे जानमाल को लगातार खतरा बना हुआ है.

ये है भूस्खलन की बड़ी वजह: हिमाचल में भूस्खलन की एक बड़ी वजह विकासात्मक परियोजनाओं का कार्य हैं. राज्य में कई जगह सड़कों के निर्माण के कारण भूस्खलन हो रहे हैं, तो कई जगह विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए टनल बनाए जाने से इसके आसपास का स्ट्राटा कमजोर हो रहा हैं. इसी तरह अवैध तरीके से खनन की भी एक वजह है, कई जगह रिहायशी या अन्य मकान बनाने के लिए गलत तरीके से की गई खुदाई भी भूस्खलन की वजह बनती जा रही है. इसी तरह सड़कों या अन्य कार्यों के लिए होने वाले पेड़ों के कटान से भी भूमि ढीली हो जाती है जिससे यहां बारिश के दौरान भूस्खलन की संभावना बनी रहती है.

Landslide incidents in Himachal
सड़क पर भूस्खलन से गिरा मलबा.

भूस्खलन रोकने के लिए उठाए जा रहे ये कदम: हिमाचल में भूस्खलन को रोकने के लिए संबंधित जिला प्रशासन और अन्य संबंधित विभाग कदम उठा रहे हैं. इसके तहत अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाना शामिल हैं. जहां रिहायशी इलाकों हैं और भूस्खलन का खतरा है, वहां पर अर्ली वार्निग सिस्टम लगाकर इससे होने वाली जानमाल की हानि को रोका जा सकता है. इसके साथ ही यहां पर किसी भी निर्माण या अन्य विकासात्मक कार्यों को करते समय विशेष एहतियात बरतना शामिल हैं. संबंधित जिला प्रशासन, पीडब्ल्यूडी, जल शक्ति विभाग, वन विभाग सहित अन्य विभागों को भी इसके लिए प्लान तैयार भूस्खलन को रोकने और इससे होने वाली हानियों को कम करने के लिए कदम उठाने के सरकार की ओर से दिए गए हैं.

विशेष सचिव राजस्व एवं स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी सुदेश मोक्टा ने कहा है कि राज्य में भूस्खलन वाली साइटों की पहचान की गई है, जिनमें कुछ मेजर साइटें हैं. भूस्खलन का समय पर लगाने के लिए अति संवेदनशील जगहों पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए जा रहे हैं. इसके साथ ही पीडब्ल्यूडी, जल शक्ति सहित अन्य विभागों को भूस्खलन रोकने के लिए डीपीआर तैयार बनाने के लिए भी कहा गया है. यही नहीं जिला प्रशासन को खनन और अन्य खुदाई के कार्यों पर निगरानी रखने को कहा गया है, जिससे कि भूस्खलन की घटनाओं को कम किया जा सके.

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