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30 साल से शिमला में कर रहे थे नौकरी, 4 किमी दूर ट्रांसफर को हाई कोर्ट में दी चुनौती, अब लाहौल-स्पीति और किन्नौर हुआ तबादला

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Published : Apr 13, 2023, 8:47 PM IST

Himachal high Court
Himachal high Court

हिमाचल हाई कोर्ट ने शिमला में तैनात दो इंजीनियर्स को करारा सबक सिखाया है. दोनों ही इंजीनियर्स पिछले 30 साल से शिमला में तैतान थे. ऐसे में कोर्ट ने दो इंजीनियर्स का लाहौल-स्पीति और किन्नौर तबादला कर दिया है.

शिमला: हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड के दो इंजीनियरों को हिमाचला हाई कोर्ट ने करारा सबक सिखाया है. तीस साल से राजधानी शिमला में नौकरी कर रहे इंजीनियर्स को अब लाहौल-स्पीति और किन्नौर जाना होगा. दरअसल, एक इंजीनियर की शिमला में ही चार किलोमीटर दूर ट्रांसफर की गई थी. बिजली बोर्ड का इंजीनियर इस तबादला आदेश को चुनौती देने हाई कोर्ट पहुंच गया. हाई कोर्ट से राहत तो दूर, अदालत ने उसे सबक सिखाते हुए याचिका खारिज कर दी. अपने तबादला आदेश को चुनौती देने वाली याचिका इंजीनियर राजेश ने दाखिल की थी. वहीं, प्रतिवादी देवेंद्र सिंह को एडजस्ट करने की सिफारिश कैबिनेट मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने की थी.

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कई कड़ी टिप्पणियां भी की हैं. हाई कोर्ट की सख्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अदालत ने दोनों को जनजातीय जिलों में स्थानांतरित करने के न केवल आदेश जारी किए, बल्कि इन आदेशों की अनुपालना रिपोर्ट भी मांगी है. दोनों को ट्रांसफर करने के बाद बिजली बोर्ड प्रबंधन को अनुपालना रिपोर्ट हाई कोर्ट के समक्ष पेश करनी होगी. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने एक मई को फैसले की अनुपालना रिपोर्ट तलब की है.

मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद अदालत ने पाया कि दोनों ही इंजीनियर तीन दशक से भी अधिक समय से शिमला में नौकरी के लिए डटे हुए हैं. एक इंजीनियर राजेश का तबादला उसके वर्तमान कार्य स्थल से महज चार किलोमीटर दूर किया गया था. राजेश ने अपने तबादला आदेश को हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी. इंजीनियर राजेश ने आरोप लगाया था कि उसका तबादला राजनीतिक सिफारिश पर मल्याणा से डिविजन-दो कुसुम्पटी के लिए किया गया. उसने याचिका में आरोप लगाया था कि प्रतिवादी इंजीनियर देवेंद्र सिंह को एडजस्ट करने के लिए कैबिनेट मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने सिफारिश की है. सुनवाई के दौरान अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड को तलब किया था.

अदालत ने पाया कि दोनों ही इंजीनियर तीस साल से भी अधिक समय से शिमला में ही तैनात हैं. बिजली बोर्ड ने जवाब के माध्यम से अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता राजेश ने वर्ष 1990 से 2004 तक शिमला में बिजली बोर्ड के डिवीजन नंबर एक में सेवाएं दी. उसके बाद उसका तबादला डिवीजन नंबर दो के लिए किया गया. वहां उसने वर्ष 2021 तक सेवाएं दी. बिजली बोर्ड के डिवीजऩ नंबर एक और दो कुसुम्पटी में ही स्थित हैं. वहीं, प्रतिवादी देवेंद्र सिंह भी वर्ष 1989 से 2009 तक डिवीजऩ नंबर एक में सेवाएं देता रहा. फिर वर्ष 2009 से अब तक वह डिविजन नंबर दो में तैनात रहा.

प्रार्थी राजेश ने आरोप लगाया था कि 18 मार्च 2023 को उसका तबादला मल्याणा से डिवीजन नंबर दो कुसुम्पटी के लिए किया गया और प्रतिवादी देवेंद्र को उसकी जगह मल्याणा में तैनाती दी गई. अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद याचिका को खारिज कर दिया. अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि दोनों ही अधिकारियों ने न केवल विभाग के कार्य और नैतिकता बारे में अनभिज्ञता प्रकट की है, बल्कि उनका आचरण भी कार्यालय के अनुरूप नहीं है. अदालत ने कहा कि दोनों ही ने उन अधिकारियों से अन्याय किया है, जो शिमला में अपनी सेवाएं देना चाहते थे. अदालत ने कहा कि इन प्रभावशाली अभियंताओं की ओर से बनाए गए जाल के कारण अन्य अधिकारी शिमला में अपनी तैनाती पाने में विफल रहे हैं.

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