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यहां बच्चों को मुफ्त में लग रहा हीमोफीलिया का इंजेक्शन, जानिए Hemophilia के लक्षण और उपचार

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Published : Jul 29, 2021, 8:35 PM IST

Updated : Jul 29, 2021, 8:41 PM IST

hemophilia treatment in igmc
IGMC में हीमोफीलिया के इंजेक्शन

कोरोना काल में अन्य गंभीर बीमारियों के साथ-साथ हीमोफीलिया के रोगियों (hemophilia patient) को भी चिकित्सकों और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा है. हालांकि इस संकट काल में आईजीएमसी में बच्चों को हीमोफीलिया के इंजेक्शन मुफ्त में लगाए जा रहे हैं. 5 हजार रुपए का इंजेक्शन अब तक 138 बच्चों को आईजीएमसी में लगाए जा चुके हैं.

शिमला: हीमोफीलिया एक ऐसा रक्त विकार है, जो दुर्लभ है, लेकिन ताउम्र साथ रहता है. हीमोफीलिया के इंजेक्शन आईजीएमसी में बच्चों को मुफ्त में लगाए जा रहे हैं. इन इंजेक्शन की कीमत बाजार में लगभग 5 हजार तक है. यह फैक्टर-8 नाम का इंजेक्शन है, जो कि आईजीएमसी में अब बच्चों को मुफ्त में लगाया जाएगा. कई बार यह इंजेक्शन एक समय में मरीज को 10 भी लगाने पड़ते हैं, जिसमें काफी ज्यादा खर्चा आ जाता है, जबकि सभी परिवार इतने महंगे इंजेक्शन खरीद नहीं पाते हैं, जिसके अभाव के चलते अस्पताल ही नहीं आते हैं.

गौर रहे कि जब कहीं शरीर कट जाता है तो थोड़ा खून बहने के बाद बंद हो जाता है, लेकिन कई लोगों के साथ ऐसा नहीं होता. हीमोफीलिया में खून बहना बंद नहीं होता है, इसमें जान जाने का भी खतरा होता है. ये एक आनुवांशिक बीमारी (genetic disease) है, जिसमें खून का थक्का बनना बंद हो जाता है. जब शरीर का कोई हिस्सा कट जाता है, तो खून में थक्के बनाने के लिए जरूरी घटक खून में मौजूद प्लेटलेट्स से मिलकर उसे गाढ़ा कर देते हैं, जिससे खून बहना अपने आप रुक जाता है.

जिन लोगों को हीमोफीलिया होता है उनमें थक्के बनाने वाले घटक बहुत कम होते हैं, उनका खून ज्दाया समय तक बहता रहता है. चिकित्सकों अनुसार ये बीमारी अधिकतर आनुवांशिक कारणों से होती है, यानी माता-पता में से किसी को ये बीमारी होने पर बच्चे को भी हो सकती है. बहुत कम होता है कि किसी और कारण से बीमारी हो, लेकिन गंभीर स्तर के हीमोफीलिया में खतरा बहुत ज्यादा होता है. कहीं जोर से झटका लगने पर भी आंतरिक रक्तस्राव शुरू हो सकता है.

हीमोफीलिया दो तरह का होता है. हीमोफीलिया ए में फैक्टर 8 की कमी होती है और हीमोफीलिया बी में घटक 9 की कमी होती है. दोनों ही खून में थक्का बनाने के लिए जरूरी हैं. ये एक दुर्लभ हीमोफीलिया ए 10 हजार में से एक मरीज पाया जाता है और बी 40 हजार में से एक मरीज में पाया जाता है, लेकिन ये बीमारी बहुत गंभीर है और इसे लेकर बहुत कम लोगों में जागरूकता है. हीमोफीलिया के तीन स्तर होते हैं. हल्के स्तर में शरीर में थक्के के बनाने वाले घटक 5 से 50 प्रतिशत तक होते हैं. मध्यम स्तर में ये घटक 1 से 5 प्रतिशत होते हैं और गंभीर स्तर के 1 प्रतिशत से भी कम होते हैं.


डब्लूएचएफ द्वारा बताई गए हीमोफीलिया 'ए' और 'बी' के कुछ खास लक्षण इस प्रकार हैं. इसके लक्षण हल्के से लेकर बहुत गंभीर तक हो सकते हैं. ये खून में मौजूद थक्कों के स्तर पर निर्भर करता है. लंबे समय तक रक्तस्राव के अलावा भी इस बीमारी के दूसरे लक्षण होते हैं. नाक से लगातार खून बहना, मसूड़ों से खूनन निकलना, त्वचा आसानी से छिल जाना, शरीर में आंतरिक रक्तस्राव के कारण जोड़ों में दर्द होना. कई बार हीमोफीलिया में सिर के अंदर भी रक्तस्राव होता है. इसमें बहुत तेज सिरदर्द, गर्दन में अकड़न, उल्टी, धुंधला दिखना, बेहोशी और चेहरे पर लकवा होने जैसे लक्षण भी होते हैं. कुछ बच्चों में ये बीमारी जन्म से भी होती है.

हीमोफीलिया एक रक्त संबंधी विकार है, जिसमें शरीर के अलग-अलग हिस्सों में लगातार रक्त स्राव होता रहता है. ऐसा नहीं है कि हीमोफीलिया के पीड़ितों में बहुत ज्यादा मात्रा में रक्तस्राव होता है, लेकिन रक्त स्राव की अवधि लंबी हो सकती है. एक समय पहले हीमोफीलिया का इलाज (treatment of hemophilia) मुश्किल था, लेकिन अब घटकों की कमी होने पर इन्हें बाहर से इंजेक्शन के जरिये डाला जा सकता है. अगर बीमारी की गंभीरता कम है, तो दवाइयों से भी इलाज हो सकता है.


आईजीएमसी मेडिकल स्टोर इंचार्ज (IGMC Medical Store Incharge) डॉ. राहुल गुप्ता ने बताया आईजीएमसी में अब तक 138 बच्चों को मुफ्त इंजेक्शन का लाभ ले चुके हैं. उन्होंने कहा कि यह इंजेक्शन प्रदेश के ऐसे बच्चों को जरूरत पड़ने पर घर-द्वार के नजदीकी अस्पताल में बात कर उपलब्ध करवाया जाता है. जिससे कि मरीजों को आईजीएमसी आने की जरूरत न पड़े.

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बता दें कि हीमोफीलिया की जांच (hemophilia test) रक्त जांच में 8-9 घटकों के स्तर की जांच कर किया जा सकता है. हीमोफीलिया उम्र भर तक साथ रहने वाला विकार है.यदि गर्भावस्था के समय माता में हीमोफीलिया की समस्या हो, तो बच्चे के जन्म के उपरांत एक बार उसकी जांच अवश्य कराई जाती है. इसकी जांच बच्चे के जन्म के उपरांत 9 से 11 हफ्ते में क्रॉनिक वायरस सेंपलिंग (पीवीसी) या फिर गर्भावस्था के 18 या उससे ज्यादा हफ्ते में भ्रूण रक्त जांच के माध्यम से की जा सकती है.

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Last Updated :Jul 29, 2021, 8:41 PM IST
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