शिमला: हिमाचल की सियासत में ढाई दशक का समय ऐसा रहा है, जब मुख्यमंत्री की दौड़ महज दो दिग्गजों के बीच रही है. इस बार पहाड़ की सियासत में नया युग कहा जाएगा. कारण ये है कि सीएम की हॉट सीट के लिए रेस में न तो वीरभद्र सिंह हैं और न ही प्रेम कुमार धूमल. वीरभद्र सिंह का निधन हो चुका है और प्रेम कुमार धूमल चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया था. सोलन की रैली में राहुल गांधी ने कहा था कि हिमाचल में कांग्रेस का एक ही चेहरा है और वो वीरभद्र सिंह हैं. भाजपा में अमित शाह ने सिरमौर की रैली में प्रेम कुमार धूमल को सीएम फेस डिक्लेयर किया था. वीरभद्र सिंह खुद तो अर्की से चुनाव जीत गए लेकिन कांग्रेस पार्टी सत्ता का रण हार गई.
इसी तरह भाजपा तो रिकार्ड सीटों से जीत गई लेकिन प्रेम कुमार धूमल अपनी सीट अप्रत्याशित तरीके से हार गए. किस्मत की चाबी ने सत्ता का ताला जयराम ठाकुर के लिए खोला. वे हिमाचल के मुख्यमंत्री बने और पहली बार मंडी जिला से कोई नेता सीएम बना. वीरभद्र सिंह बेशक चुनाव जीत गए लेकिन सेहत और अन्य कारणों से वे नेता प्रतिपक्ष नहीं बने. मुकेश अग्निहोत्री सदन में नेता प्रतिपक्ष बने. प्रेम कुमार धूमल एक तरह से नेपथ्य में चले गए.
इस बार चुनावी शोर शुरू होने के साथ ही ये माना जा रहा था कि प्रेम कुमार धूमल चुनावी मैदान में उतर सकते हैं लेकिन सियासी परिस्थितियां कह रही थीं कि हाईकमान शायद ही धूमल के चुनाव लडऩे के पक्ष में हों. अब भाजपा की टिकटों का फैसला हो गया है और प्रेम कुमार धूमल न तो चुनावी रेस में हैं और न ही आने वाले समय में अगर भाजपा रिपीट होती है तो उनके मुख्यमंत्री होने का कोई चांस है. वीरभद्र सिंह इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन कांग्रेस उनके चेहरे को आगे रखकर और उनके विकास मॉडल की दुहाई देकर चुनावी मैदान में जरूर है.
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प्रेम कुमार धूमल दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे, पहली बार वे वर्ष 1998 में सीएम बने थे. उस समय भाजपा ने 'हिमाचल विकास कांग्रेस' के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. भाजपा की ये पहली सरकार थी, जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था. उससे पहले दो बार शांता कुमार सीएम रहे और दोनों ही बार सरकार पांच साल नहीं चल पाई. तब ये कहा जाता था कि भाजपा को ढैय्या सताती है. साल 1998 में पार्टी के प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी थे. उस समय भाजपा ने हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई और वो पांच साल चली. दूसरी बार साल 2006 में जयराम ठाकुर प्रदेश अध्यक्ष थे और 2007 के चुनाव में भाजपा सत्ता में आई. प्रेम कुमार धूमल सीएम बने. ये सरकार भी पांच साल चली.
वहीं, साल 2003 में कांग्रेस ने चुनाव जीता और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने. अगले चुनाव में यानी 2007 में कांग्रेस हार गई. वीरभद्र सिंह नेता प्रतिपक्ष बने. साल 2012 के चुनाव के दौरान वीरभद्र सिंह केंद्र से वापस हिमाचल की राजनीति में आए. उन्होंने कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बनाया और पार्टी ने वीरभद्र सिंह को पीसीसी चीफ नियुक्त किया. वीरभद्र सिंह अपने समर्थकों के लिए अधिक से अधिक टिकट झटकने में कामयाब रहे. जहां, तक सवाल सीएम पद का था तो जब तक वीरभद्र सिंह प्रदेश की सियासत में रहे, कांग्रेस के लिए वे ही मुख्यमंत्री के लिए पर्याय थे. जाहिर है, साल 2012 का चुनाव जीत कर कांग्रेस में वीरभद्र सिंह को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी. प्रेम कुमार धूमल नेता प्रतिपक्ष थे. उस समय जयराम ठाकुर भी सदन में विपक्ष की बैंच पर प्रथम पंक्ति में बैठते थे.
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साल 2017 के चुनाव में भाजपा ने प्रेम कुमार धूमल की अगुवाई में चुनाव लड़ा. पार्टी तो चुनाव जीत गई लेकिन धूमल को पराजय मिली. वीरभद्र सिंह उम्रदराज होने के कारण उतने सक्रिय नहीं थे लेकिन वे सदन में जरूर उपस्थित होते थे. छह बार हिमाचल में सत्ता की कमान संभालने वाले वीरभद्र सिंह जुलाई 2021 में देह त्याग गए. मौजूदा समय में प्रेम कुमार धूमल भाजपा के उम्र के पैमाने पर टिकट से वंचित रहे हैं अथवा यूं भी कहा जा सकता है कि उन्होंने खुद ही खुद को चुनाव से अलग कर लिया. इस तरह साल 2022 के चुनाव में हिमाचल की राजनीति के दो सबसे बड़े नाम इस बार न तो चुनाव में हैं और न ही मुख्यमंत्री की रेस में.
ये बात अलग है कि दिवंगत होने के बावजूद कांग्रेस वीरभद्र सिंह के चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ रही है और भाजपा हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल को अपना वरिष्ठ नेता मानकर उनके मार्गदर्शन को महत्वपूर्ण मान रही है. इन सब बातों के बावजूद ये तथ्य है कि साल 1998 के बाद ये पहला मौका है, जब वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल चुनाव मैदान में न तो प्रत्याशी और न ही मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में मौजूद हैं.