हर साल 8 लाख मीट्रिक टन सेब पैदा करते हैं हिमाचल के बागवान, अडानी की खरीद केवल 20 हजार मीट्रिक टन

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Published : Sep 17, 2021, 7:31 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 7:40 PM IST

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फोटो. ()

हिमाचल प्रदेश के बागवान हर साल 8 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन करते हैं. बागवानों का कहना है कि बड़े कॉर्पोरेट समूह में केवल अडानी ही काम कर रहा है. प्रदेश में अन्य समूह भी आएंगे तो इससे बागवानों को लाभ मिलेगा. क्रेट में सेब बेचने से बागवानों को ग्रेडिंग और पैकिंग का 250 रुपये प्रति पेटी का खर्च बच रहा है. अडानी समूह हर साल करीब 20 हजार मीट्रिक टन सेब खरीदता है. वहीं, अडानी एग्रो फ्रेश के टर्मिनल मैनेजर मनजीत शीलू कहते हैं कि इस साल 74 रुपये प्रति किलो के दाम से बागवानों के सेब खरीदे जा रहे हैं.

शिमला: हिमाचल में इस समय सेब सीजन पीक पर है. फल राज्य हिमाचल में सालाना 3 से 4 करोड़ पेटी सेब पैदा होता है, यानी प्रदेश में करीब 8 लाख मीट्रिक टन सेब होता है. बागवान अपनी उपज मंडियों के साथ स्थानीय स्तर पर निजी कंपनी अडानी एग्रो फ्रेश को बेचते हैं. अडानी समूह हर साल करीब 20 हजार मीट्रिक टन सेब खरीदता है. कंपनी हिमाचल में डेढ़ दशक से काम कर रही है. हर साल ये आरोप लगता है कि अडानी एग्रो फ्रेश केे कारण बागवानों को सेब का उचित दाम नहीं मिल पाता और बाजारवादी ताकतें साजिश के तहत सेब का दाम गिरा देती हैं. अडानी एग्रो फ्रेश प्रबंधन ने इस आरोप से इनकार किया है.

प्रबंधन का दावा है कि अडानी एग्रो फ्रेश में सेब बेचने से बागवानों का लाभ है. इससे ना केवल बागवानों की ग्रेडिंग और पैकिंग में होने वाला खर्च बचता है बल्कि प्रति किलो के हिसाब से सेब बेचने पर उन्हें बाजार से अधिक लाभ मिलता है. अडानी एग्रो फ्रेश के टर्मिनल मैनेजर मनजीत शीलू का कहना है कि हिमाचल में हर साल आठ लाख मीट्रिक टन सेब पैदा होता है और अडानी समूह केवल 20 हजार मीट्रिक टन ही सेब खरीदता है. यदि बागवानों को अदानी समूह के साथ कारोबार में घाटा होता तो हर साल डेढ़ से दो हजार बागवान उनके साथ ना जुड़ते. इस समय अदानी समूह के साथ 18 हजार के करीब बागवान जुड़े हैं.

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ऊपरी शिमला के बागवानों राजीव, आलोक और सत्यप्रकाश का कहना है कि वे लंबे समय से अडानी को ही सेब बेच रहे हैं. उन्हें यहां सेब बेचकर कई लाभ मिलते हैं. उनका कहना है कि यहां सबसे अच्छी बात है कि सेब की पेमेंट ऑनलाइन खाते में उसी समय पहुंच जाती है. बागवानों को ग्रेडिंग और पैकिंग में प्रति पेटी 250 रुपए का खर्च बचता है. क्रेट में सेब बेचकर पेटी की अपेक्षा बागवानों को अधिक लाभ है. बागवानों का यह भी मानना है कि अभी हिमाचल में बड़े कॉर्पोरेट समूह में केवल अडानी ही काम कर रहा है यदि अन्य समूह भी आएंगे तो एक स्वस्थ कारोबारी स्पर्धा होगी और बागवानों को लाभ मिलेगा.

वहीं, कुछ दिनों से हिमाचल में किसान-बागवानों के कुछ संगठन आरोप लगा रहे हैं कि अडानी समूह साजिशन सेब के दाम गिरा देता है, लेकिन लंबे समय से अडानी समूह के साथ काम कर रहे बागवनों के कहना है कि उन्हें मंडियों से अधिक सुविधा अडानी के स्टोर में सेब बेचकर मिल रही है. उल्लेखनीय है कि प्रदेश के शिमला जिला में अडानी ग्रुप के तीन सीए (कंट्रोल्ड एटमॉसफियर) स्टोर हैं. ये सीए स्टोर मेंहदली, बिथल व सैंज में हैं. इन सभी की क्षमता 22 मीट्रिक टन है. अडानी एग्री फ्रेश सेब की परंपरागत वैरायटी रॉयल को ही खरीदता है. ये अलग बात है कि हिमाचल में रॉयल के अलावा पचास से अधिक विदेशी किस्मों के सेब का उत्पादन किया जा रहा है. अडानी केवल रॉयल सेब खरीदता है. इसका कारण ये है कि रॉयल सेब की शैल्फ लाइफ अधिक है. यानी तोड़ने के बाद ये काफी समय तक खराब नहीं होता.

हिमाचल में वर्ष 2006 से अडानी ग्रुप लगातार सेब खरीद रहा है. इस साल अडानी ने 74 रुपए प्रति किलो के दाम से सेब खरीदा है. बागवानों के लिए लाभ की बात ये है कि अडानी एग्री फ्रेश बागीचे में ही सेब खरीद लेता है. ट्रांस्पोर्टेशन का खर्चा भी खुद उठाता है और सेब के लिए क्रेट भी अपने स्तर पर उपलब्ध करवाता है. इस तरह बागवान सारे खर्च से बच जाता है. यही नहीं, अडानी समूह दस दिन के भीतर सेब की कीमत भी बागवान के खाते में ट्रांसफर कर देता है. इससे बागवान खुश हैं. कई बागवान अडानी के साथ एग्रीमेंट कर लेते हैं. वे बगीचे से ही अपने सेब अडानी को बेच देते हैं. यही नहीं, अडानी समूह अपने स्तर पर बागवानों को मिट्टी व पत्तियों की जांच भी करता है. इसके लिए प्रयोगशाला भी स्थापित है. बागवानों से सेब खरीद कर अडानी सीए स्टोर में रख लेता है. बाद में दिसंबर से जून महीने तक इस सेब को देश के विभिन्न हिस्सों में बेचा जाता है. महानगरों में फाइव स्टार होटलों में रॉयल सेब की अच्छी डिमांड होती है.



हिमाचली एप्पल एक ब्रांड भी है और रॉयल सेब अपनी मिठास के लिए प्रसिद्ध है. अडानी एग्री फ्रेश के टर्मिनल मैनेजर मनजीत शीलू के अनुसार कंपनी 20 अगस्त के बाद सेब की खरीद शुरू करती है. सेब के साइज व क्वालिटी के हिसाब से दाम फिक्स किया जाता है. सेब स्टोर में आठ महीने तक सेब सुरक्षित रहता है. वर्ष 2020 में अडानी समूह ने 17 मीट्रिक टन सेब की खरीद की. सेब खरीदी के दस दिन के भीतर बागवानों को पेमेंट कर दी जाती है. उन्होंने बताया कि अडानी समूह अपने स्तर पर इलाके में मेडिकल कैंप भी लगाता है और बागवानों के लिए सेब उत्पादन के वैज्ञानिक तरीकों पर आयोजन भी करता है.

हिमाचल में शिमला में सबसे अधिक सेब होता है. प्रदेश का अस्सी फीसदी सेब शिमला जिले में उत्पादित किया जाता है. इसके अलावा मंडी, कुल्लू, चंबा, किन्नौर, सिरमौर के कुछ इलाकों व लाहौल में भी पैदा किया जाता है. अडानी के स्टोर केवल शिमला में तीन जगह हैं. प्रदेश में चार लाख बागवान परिवार हैं. हिमाचल में एपीएमसी की मंडियों में सेब बेचा जाता है. यहां देश के अलग-अलग हिस्सों से आढ़ती आते हैं. मंडियों में सेब बेचने से बागवानों को कई बार अच्छा लाभ हो जाता है. कई बार वे आढ़तियों की ठगी का शिकार भी हो जाते हैं. आढ़तियों के पास पेमेंट लटक जाती है तो पुलिस के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

राज्य सरकार भी सेब के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है. ये मिनिमम स्पोर्ट प्राइज 8 रुपए प्रति किलो तक होता है. खराब व दागी सेब सरकार खरीदती है. इसके एचपीएमसी जूस, जैम व सिरका बनाती है. हिमाचल का सेब देश की राजधानी दिल्ली व अन्य महानगरों सहित विदेश में भी पसंद किया जाता है.

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Last Updated :Jan 4, 2022, 7:40 PM IST
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