शिमला: चुनाव के इस मौसम में हिमाचल में हजारों लीटर अवैध शराब पकड़ी जा रही है. चुनाव आचार संहिता के दौरान आबकारी विभाग, पुलिस विभाग, आयकर विभाग के उड़नदस्तों ने नाकेबंदी में प्रदेशभर से 1396 लीटर शराब पकड़ी है. पकड़ी गई शराब की कीमत 8 करोड़ 37 लाख है.
इस समय देश में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान हो रहा है. चुनाव में शराब-पैसा बांटने की बात किसी से छिपी नहीं है. चुनाव में शराब बांटने का रिवाज पुराना है. ऐसे में संभावना यही है कि शराब का इस्तेमाल वोट 'पैदा' करने के लिए किया जाना था. पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक वोटर्स को अपने पक्ष में करने के लिए गांव-कस्बों और शहरों में शराब बांटने की खबरें आती रहती हैं. चुनाव प्रचार के दौरान भी कार्यकर्ताओं और संभावित मतदाताओं के खाने-पीने की मौज होती है. नॉन वेज के शौकीनों के लिए मुर्ग मसल्लम और पियक्कड़ों के लिए लाल परी का प्रबंध चोरी छिप्पे किया जाता है.
उतराखंड के लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने चुनाव में पैसों और शराब के खेल पर तंज कसता हुआ एक गाना लिखा है. गाने के बोल हैं
'हाथ ने हुसुकी पिलाई फूल ने पिलाई रम
छोटा दल, निर्दलीय ने कच्ची मां टरकाया हम
इस चुनाव में मजो ही मजो
दारू भी रूपया भी ठम्म'
चुनाव में पैसे और शराब करंसी होती है. वोटों के बाजार में लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की धज्जियां उड़ाई जाती हैं. शराब और पैसे लेकर वोट करने करने वाले वोटर्स सोच समझ कर वोट करने वाले लोगों के मत को भी प्रभावित करते हैं. चुनाव में शराब और पैसा का इस्तेमाल इन्फेकशन बन चुका है. इस इन्फेकशन का इलाज जरूरी है. निष्पक्ष और स्वच्छ चुनाव के लिए चुनाव सुधार से पहले राजनीतिक सुधार बहुत जरूरी है.
वहीं, जयराम सरकार ने अपने राज्सव को बढ़ाने के लिए साल 2018-19 के लिए आबकारी नीति में संशोधन भी किया है. नए आदेशों के मुताबिक एक आवेदनकर्ता को शराब के 4 ठेक देने का प्रावधान किया गया है.
साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शराब कारोबारियों को खासा नुकसान झेलना पड़ा था, जिसके चलते आबकारी नीति में बदलाव की मांग की गई थी. वहीं, दूसरी ओर देखें तो 2017-18 में तय किए गए 1300 करोड़ रुपये राजस्व के लक्ष्य की प्राप्ति न होने के चलते भी प्रदेश सरकार ने ये बदलाव किया है. सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 में करीब 1600 करोड़ रुपये की कमाई का लक्ष्य रखा है.