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मंडी जिला के इस गांव ने प्रदेश भर कायम की मिसाल, 'जहर' वाली खेती को कहा बाय-बाय

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Published : Sep 6, 2019, 11:43 PM IST

मंडी जिला के इस गांव ने प्रदेश भर कायम की मिसाल, जहर वाली खेती को कहा बॉय-बाय

पंजयाणु में एक- दो स्थानों पर प्रयोग के तौर पर शुरू हुई शून्य लागत प्राकृतिक खेती अब 35 से 40 बीघा जमीन पर की जा रही है.

मंडी : जिला के करसोग उपमंडल की पांगणा उपतहसील के पंजयाणु गांव ने सभी प्रदेश भर के गावों के लिए एक शानदार मिसाल पेश की है. पंजयाणु में एक- दो स्थानों पर प्रयोग के तौर पर शुरू हुई शून्य लागत प्राकृतिक खेती अब 35 से 40 बीघा जमीन पर की जा रही है.

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गांव के 30 परिवार स्वेच्छा से इसे अपना चुके हैं. धीरे धीरे पूरा गांव सौ फीसदी प्राकृतिक खेती वाला गांव बनने की राह पर अग्रसर है. खास बात है कि गांव में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका महिलाएं निभा रही हैं. पंजयाणु गांव के लोगों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने में इस गांव की निवासी लीना शर्मा का बड़ा योगदान है. उन्होंने खुद उदाहरण पेश कर लोगों को जहर मुक्त खेती के लिए प्रेरित किया है.

natural farming
मंडी जिला के इस गांव ने प्रदेश भर कायम की मिसाल, जहर वाली खेती को कहा बॉय-बाय

प्राकृतिक खेती के लाभ देख कर गांव की करीब 30 महिलाओं ने इसे अपनाया है. गांव में अब ज्यादातर लोग पहाड़ी गाय पालते हैं. बता दें कि गांव की एक महिला भुवनेश्वरी देवी ने गोबर व गोमूत्र के लिए एक लावारिस देसी गाय को अपने पास रखा है.

प्राकृतिक खेती अपनाने वाले पंजयाणु गांव के एक किसान महेंद्र शर्मा का कहना हैं कि गांव में मुख्य फसल के साथ मूंगफली, लहसुन, मिर्च, दालें, बीन्स, टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, अलसी, धनिया की खेती की जा रही है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है. इस खेती में इसमें बीज कम लगता है, उत्पादकता ज्यादा है.

natural farming
मंडी जिला के इस गांव ने प्रदेश भर कायम की मिसाल, जहर वाली खेती को कहा बॉय-बाय

करसोग के कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान ने कहा कि पंचयाणु गांव की सफलता की देखादेखी आसपास के गांव थाच, फेगल और घण्डियारा भी शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे आए हैं. क्षेत्र के करीब 90 लोगों ने प्राकृतिक खेती सीखने के लिए प्रशिक्षण लिया है.

क्या कहते हैं जिलाधीश
जिलाधीश ऋग्वेद ठाकुर का कहना है कि मंडी जिला में शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए लोगों को प्ररित किया जा रहा है. इस साल जिला के 3 हजार किसानों ने शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाई है. जहर मुक्त खेती से भंयकर बीमारियों से बचा जा सकता है.

ये भी पढ़ें: राज्यस्तरीय जूनियर बास्केटबॉल प्रतियोगिता के लिए 8 सितम्बर को होगा ट्रायल, समय पर नहीं पहुंचे तो होंगे बाहर

सरकार दे रही सब्सिडी
कृषि विभाग मंडी के आत्मा परियोजना के उपनिदेशक शेर सिंह ने कहा कि हिमाचल सरकार शून्य लागत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है. किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं. 250 लीटर के ड्रम लेने पर 75 प्रतिशत सब्सिडी, पशुशाला में फर्श डालने, गोबर के चैंबर के लिए आठ हजार, संसाधन भंडार पर 10 हजार रुपये के अनुदान का प्रावधान है.

Intro:मंडी : ऐसे समय में जब खेत-खलिहानों से लेकर खाने की मेज तक जहर बढ़ता जा रहा है मंडी जिले का एक गांव जहर मुक्त खेती वाले गांव के तौर पर अपनी धमक दर्ज करवा रहा है। मंडी जिले के करसोग उपमंडल की पांगणा उपतहसील के पंजयाणु गांव ने दूर पार के सब गावों के लिए एक शानदार नजीर पेश की है।
Body:पंजयाणु में बरस-डेढ़ बरस पहले इक्का-दुक्का जगह प्रयोग के तौर पर शुरू हुई शून्य लागत प्राकृतिक खेती अब 35 से 40 बीघा जमीन पर की जा रही है। आज गांव के 30 परिवार स्वेच्छा से इसे अपना चुके हैं। धीरे धीरे सारा गांव सौ फीसदी प्राकृतिक खेती वाला गांव बनने की राह पर अग्रसर है।
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लीना की लगन ने बदल दी पूरे गांव की सोच
पंजयाणु गांव के लोगों को प्राकृतिक खेती की मोड़ने और इससे जोड़ने में इस गांव की निवासी लीना शर्मा का बड़ा योगदान है। उन्होंने खुद उदाहरण स्थापित कर लोगों को जहर मुक्त खेती के लिए प्रेरित किया है। बकौल लीना शर्मा ‘पिछले साल अक्तूबर में शिमला के कुफरी में कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्राकृतिक खेती की अवधारणा के जनक कृषि विज्ञानी पदमश्री सुभाष पालेकर के प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने का मौका मिला, उसके बाद जैसे जहर मुक्त खेती मेरा जुनून बन गई।’ वे आगे बताती हैं कि उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान ही ठान लिया था कि खुद तो शून्य लागत खेती करेंगी ही साथ ही अपने गांव में भी लोगांे को इससे जोड़ेंगी ताकि सब लोग इससे लाभान्वित हो सकें।
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जहर मुक्त खेती से बनाई पहचान
आज प्राकृतिक खेती के लाभ देख कर गांव की करीब 30 महिलाओं ने इसे अपनाया है। गांव में अब ज्यादातर लोग पहाड़ी गाय पालते हैं। गांव की एक महिला भुवनेश्वरी देवी ने तो गोबर व गूंत्र के लिए एक लावारिस देसी गाय को अपने यहां रख लिया है।
लीना शर्मा और गांव की एक और महिला किसान सत्या देवी आज प्राकृतिक खेती की मास्टर ट्रेनर बन गई हैं। लोगों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखाती हैं।
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मिश्रित खेती से लाभ
प्राकृतिक खेती अपनाने वाले पंजयाणु गांव के एक किसान महेंद्र शर्मा बताते हैं कि गांव में मुख्य फसल के साथ मूंगफली, लहसुन, मिर्च, दालें, बीन्स, टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, अलसी, धनिया की खेती की जा रही है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है। इस खेती में इसमें बीज कम लगता है, उत्पादकता ज्यादा है। करसोग के कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान बताते हैें कि पंचयाणु गांव की सफलता की देखादेखी आसपास के गांव थाच, फेगल और घण्डियारा भी शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे आए हैं। क्षेत्र के करीब 90 लोगों ने प्राकृतिक खेती सीखने के लिए प्रशिक्षण लिया है।
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क्या कहते हैं जिलाधीश
जिलाधीश ऋग्वेद ठाकुर का कहना है कि मंडी जिले में शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए लोगों को प्ररित किया जा रहा है। इस साल जिले के 3 हजार किसानों ने शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाई है। जहर मुक्त खेती से भंयकर बीमारियों से बचा जा सकता है साथ ही लागत शून्य होने के चलते किसानों के खर्चों की बचत व मिश्रित खेती तथा अच्छी पैदावार से उनकी आमदनी दोगुनी करने में भी यह सहायक है।Conclusion:----
सरकार दे रही सब्सिडी
कृषि विभाग मंडी के आत्मा परियोजना के उपनिदेशक शेर सिंह बताते हैें कि हिमाचल सरकार शून्य लागत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। देसी नस्ल की एक गाय खरीदने के लिए 25 हजार रुपए तक की सहायता, किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण, जीवामृृत बनाने के लिए 250 लीटर के ड्रम लेने पर लागत पर 75 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है। इसके अलावा जिन लोगों के पास देसी गाय है उनकी पशुशाला में फर्श डालने और गंूत्र व गोबर को एकत्र करने को चैंबर बनाने के लिए 8 हजार रुपए दिए जा रहे हैं। जिन्हें जीवामृत अथवा घन जीवामृत बनाने व बेचने के लिए संसाधन भंडार बनाना हो उन्हें 10 हजार रुपए के अनुदान का प्रावधान है।
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