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मन की मुरादों को पूरा करते हैं देवता माहूंनाग, पिंडी के सामने फुस हो गए थे विस्‍फोट!

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Published : Feb 17, 2019, 3:37 PM IST

मंडी नगर को लोग छोटी काशी के नाम से भी जानते हैं क्‍योंकि यहां अनेक मंदिर है. श्री देव माहूंनाग टारना मंदिर भी इसी धार्मिक नगरी में स्थित है. कहा जाता है कि ये मंदिर के 1950 में बना था और रथ 1962 में बनाया गया है. जो लगातार शिवरात्रि मेले में शिरकत करता है.

deity mahunag

मंडी: चारों ओर से पर्वतों से घिरा हिमाचल का खूबसूरत नगर मंडी अपनी संस्‍कृति, सभ्‍यता और इतिहास को अपने पहलू में संजोए हुए है. ये नगर ब्‍यास गंगा के तट पर बसा धार्मिक आस्‍थाओं का केंद्र है.
मंडी नगर को लोग छोटी काशी के नाम से भी जानते हैं क्‍योंकि यहां अनेक मंदिर है. श्री देव माहूंनाग टारना मंदिर भी इसी धार्मिक नगरी में स्थित है. कहा जाता है कि ये मंदिर के 1950 में बना था और रथ 1962 में बनाया गया है. जो लगातार शिवरात्रि मेले में शिरकत करता है. मंदिर को पहले बच्‍चों का माहूंनाग भी कहा जाता था. भ्रादों की पत्‍थर चरौथ को माहूंनाग का जागरा मनाया जाता है.

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मंदिर पुजारी रमेश चंद ने बताया कि करीब 64 साल पहले यहां एक साथ दर्जनों सांप निकले थे और ग्रामीण डर से इन्‍हें मार देते थे. इनकी संख्‍या घटने की बजाए दिनोंदिन बढ़ने लगी. ऐसे में लोग बड़ा देव कमरूनाग के पास पहुंचते और देवता से पूछा कि ये सब क्‍या हो रहा है.
देव विधि के तहत बच्‍चे मोहन लाल (वर्तमान गुर के पिता ) को देव माहूंनाग की पूजा अर्चना का अधिकार सौंपा गया. सात साल की उम्र में ही पूजा अर्चना उन्‍होंने शुरू की. इसी बालक के माध्‍यम से पता चला कि करीब सात साल बाद मंदिर में पिंडी स्‍थपित होगी. सात साल बाद पंडोह रोड में बिंद्रावणी नामक स्‍थान वाले जंगल से इस पिंडी को निकाला गया.
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बताया जाता है कि यहां पहाड़ी में पिंडी मौजूद होने से कई विस्‍फोट फुस हो गए. ठेकेदार की कड़ी मेहनत के बावजूद कुछ नहीं हो पाया. जिस पर ठेकेदार माहूंनाग मंदिर पहुंचा और यहां से बालक मौके पर पहुंचा तो उन्‍हें जंगल में करीब चार फुट लंबी पिंडी मिली. देवता ने बालक के माध्‍यम से प्रतिष्‍ठा को लेकर बताया. इस तरह देवता का मंदिर में पिंडी स्‍थापित हुई.
वहीं, पंजेहटी गांव में करयाला मेला देवता के सम्‍मान में होता है. बताया जाता है कि माहूंनाग देवता श्रद्धालुओं की मन मुरादों की पूर्ति करता है. सांप, बिच्‍छू व अन्‍य जीव जंतुओं का विष से भक्‍तों का ठीक करते हैं.
देवता माहूंनाग टारना की पिंडी के सामने फुस हो गए थे विस्‍फोट
ठेकेदार ने देवता के गुर के सामने लगाई थी गुहार, पहाड़ी में मिली थी पिंडी
देवता ने पहले ही भविष्‍यवाणी कर बताया था कि मंदिर में स्‍थापित नहीं होगी सजावटी मूर्ति

मंडी। चाराें ओर पर्वतों से घिरा हिमाचल का खूबसूरत नगर मंडी अपनी संस्‍कृति, सभ्‍यता और इतिहास को अपने पहलू में संजोए हुए यह नगर ब्‍यास गंगा के तट पर बसा धार्मिक अास्‍थाओं का केंद्र है। यहां की भाेर मंदिरों की गूंजती घंटियों से शुरू होती है। शाम भक्‍ित गीतों की सुरलहरियों से। मंडी नगर को लोग छोटी काशी के नाम से भी जानते हैं क्‍याेंकि यहां अनेक मंदिर है।
श्री देव माहूंनाग टारना मंदिर भी इसी धार्मिक नगरी के टारना में स्थित है। माहूंनाग टारना मंदिर में स्थित पिंडी की वजह से 1950 के दशक में कई विस्‍फोट भी फुस हो गए थे। मंदिर पुजारी के पास गुहार लगाने के बाद मामला सुलझा था और पहाड़ी में स्‍िथत यह पिंडी टारना स्थित श्री देव माहूंनाग मंदिर में स्‍थापित की गई। मंदिर पुजारी रमेश चंद के अनुसार करीब 64 वर्ष पहले यहां एक साथ दर्जनों सांप निकलते थे और ग्रामीण डर से इन्‍हें मार देते थे। इनकी संख्‍या घटने के बजाए दिनोंदिन बढ़ने लगी। ऐसे में लोग बड़ा देव कमरूनाग के पास पहुंचते और देवता से पूछा कि यह सब क्‍या हो रहा है। देव विधि के तहत बच्‍चे मोहन लाल (वर्तमान गुर के पिता ) को देव माहूंनाग की पूजा अर्चना का अधिकार सौंपा गया। सात साल की उम्र में ही पूजा अर्चना उन्‍होंने शुरु की। इसी बालक के माध्‍यम से पता चला कि करीब सात साल बाद मंदिर में पिंडी स्‍थपित होगी। सात साल बाद पंडोह रोड में बिंद्रावणी नामक स्‍थान वाले जंगल से इस पिंडी को निकाला गया। बताया जाता है कि यहां पहाड़ी में पिंडी मौजूद होने से कई विस्‍फोट फुस हो गए। ठेकेदार की कड़ी मेहनत के बावजूद कुछ नहीं हो पाया। जिस पर ठेकदार माहूंनाग मंदिर पहुंचा और यहां से बालक मौके पर पहुंचा तो उन्‍हें जंगल में करीब चार फुट लंबी पिंडी मिली। इसके बाद यहां पूजा अर्चना की गई। प्रतिष्‍ठा के समय केे समय एक साथ दर्जनाें सांप निकल गए। ऐसे में पंडित प्रतिष्‍ठा नहीं कर पाए। देवता ने बालक के माध्‍यम से प्रतिष्‍ठा को लेकर बताया। इस तरह देवता का मंदिर में पिंडी स्‍थापित हुई। वर्तमान में मंदिर पुजारी रमेश चंद ने बताया क‍ि मंदिर 1950 में बना है और रथ 1962 में बनाया गया है। जाे लगातार शिवरात्रि मेले में शिरकत करता है। उन्‍होंने बताया कि इस मंदिर को पूर्व में बच्‍चों का माहूंनाग भी कहा जाता था। बताया कि भ्रादों हा की पत्‍थर चरौथ को माहूंनाग का जागरा मनाया जाता है। वहीं, पंजेहटी गांव में करयाला मेला देवता के सम्‍मान में होता है। श्री माहूंनाग देवता श्रद्धालुओं की मन मुरादाओं की पूर्ति करता है।  सांप, बिच्‍छू व अन्‍य जीव जंतुओं का विष से भक्‍तों का ठीक करते हैं।
 
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