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स्वतंत्रता सेनानी भाई हिरदा राम की 137वीं जयंती, पौत्र की मांग- 'दादाजी को सरकार दे सम्मान'

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Published : Nov 28, 2022, 1:41 PM IST

मंडीवासियों ने स्वतंत्रता सेनानी भाई हिरदा राम की 137वीं जयंती मनाई. हिरदा भाई ने सावरकर के साथ अंडमान में सजा काटी थी. अब उनके परिजन राज्य और केंद्र सरकार से उचित सम्मान दिए जाने की मांग कर रहे हैं. पढ़ें.

freedom fighter Bhai Hirda Ram
freedom fighter Bhai Hirda Ram

मंडी: स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी भाई हिरदा राम की 137वीं जयंती गरिमापूर्ण समारोह के रूप में मनाई गई. शहर वासियों ने इंदिरा मार्केट की छत पर स्थित उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की. (freedom fighter Bhai Hirda Ram ) (birth anniversary of Bhai Hirda Ram in Mandi)

स्वतंत्रता सेनानी भाई हिरदा राम की जयंती: इस अवसर पर साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार के के नूतन विशेष रूप से मौजूद रहे. वहीं नगर निगम मंडी के पार्षद व शहर के वरिष्ठ लोगों ने भी इस अवसर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर भाई हिरदा राम के योगदान को याद किया. इस मौके पर भाई हिरदाराम स्मारक समिति महासचिव केके नूतन स्वतंत्रता सेनानी भाई हिरदाराम के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला.

कालापानी की मिली थी सजा: उन्होंने बताया कि लाहौर असेम्बली पर भाई हिरदा राम बम फेंकने वाले थे, लेकिन अंग्रेजों को इस योजना का पहले ही पता चल गया जिस कारण भाई हिरदा राम को गिरफ्तार करके उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन बाद में यह सजा आजीवन कारावास में बदली गई और कालापानी में उन्होंने वीर सावरकर के साथ यह सजा काटी.

स्वतंत्रता सेनानी भाई हिरदा राम को किया गया नमन

बोले पौत्र- 'दादाजी को सरकार दे सम्मान': भाई हिरदा राम के पोते शमशेर सिंह ने कहा कि उनके दादाजी की मंडी में मूर्ति की स्थापना के अलावा राज्य या केंद्र सरकारों से कोई मान्यता नहीं मिली. उन्होंने कहा कि उनके दादाजी 1929 में आजीवन कारावास की सजा काटकर मंडी आए, लेकिन अंग्रेज सरकार ने उनके मंडी आने पर रोक लगा दी थी. देश आजाद होने के बाद ही वो घर आ सके. वीर सावरकर को ताम्रपत्र का सम्मान दिया गया है ,जबकि भाई हिरदा राम को भी ताम्रपत्र या अन्य बड़े सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए.

कौन थे भाई हिरदा राम: गौरतलब है कि भाई हिरदा राम मंडी रियासत में स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी थे. उनका जन्म 28 नवंबर 1885 को मंडी में हुआ था. इनके पिता का नाम गज्जन सिंह था. आठवीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने स्वर्णकार के रूप में काम शुरू हुआ. उनके शौक को देखकर उनके पिता अखबार व पुस्तकें मंगवाते रहते थे. क्रांति से संबंधित साहित्य पढ़ने पर उनके मन में देश प्रेम का जोश उमड़ने लगा.

गदर पार्टी की स्थापना: 1913 में युगांतर आम सैन फ्रांसिस्को में गदर पार्टी की स्थापना की गई. भाई हिरदा राम गदर पार्टी के प्रमुख सदस्य बन गए और मंडी में गदर पार्टी की स्थापना की थी. बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी राम बिहारी बोस पंजाब के क्रांतिकारियों के बुलावे पर जनवरी 1915 में अमृतसर आए. रानी खेरगढ़ी ने उन्हें बम बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए राम बिहारी बोस के पास भेज दिया. प्रशिक्षण लेने के बाद वो मंडी के आस-पास लगते जंगलों में बम बनाने का अभ्यास करने लगे. अंग्रेजों को इस बात की खबर मिल गई. इसके बाद भाई हिरदा राम और साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया.

फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदला: लाहौर सेंट्रल जेल में क्रांतिकारियों के खिलाफ 26 अप्रैल 1915 को मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई. भाई हिरदा राम और इनके साथियों को लाहौर बम षडयंत्र मामले में लाहौर जेल भेज दिया गया. लाहौर बम षडयंत्र केस के रिकॉर्ड में भाई हिरदा राम को आरोपी नंबर 27 और 1915 में ब्रिटिश अदालत ने दोषी ठहराया था. युद्ध और भारतीय दंड संहिता की धारा 302/109 के उल्लंघन के लिए और उन्हे फांसी की सजा सुनाई गई थी. भाई हिरदा राम की पत्नी सरला देवी उस उस समय नाबालिग थी. पत्नी की अपील पर वायसरॉय हार्डिंग ने भाई हिरदाराम की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.

वीर सावरकर की यातना का विरोध किया: भाई हिरदाराम ने अपने आजीवन कारावास की सजा अंडमान और निकोबार सेल्यूलर जेल में बितायी. जिसे काला पानी जेल के नाम से जाना जाता है. यहां इन्हें वीर सावरकर के साथ एक ही सेल में रखा गया. जेल में भी उन्होंने वीर सावरकर की यातना का विरोध किया, जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें एकांत सेल में अंग्रजों ने 40 दिन तक कैद कर दिया था.

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