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हिमाचल विधानसभा चुनाव में बागवानों के मुद्दे: कोल्ड स्टोर के साथ विदेशी सेब पर 100% आयात शुल्क लगाने की मांग

हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 के लिए 12 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं. इस बार हिमाचल विधानसभा चुनाव में चुनावी मुद्दों की भरमार है. जिसमें किसानों और बागवानों की हिमाचल प्रदेश में कोल्ड स्टोर और गुणवत्ता युक्त पौधे प्रमुख मांगों में शामिल है. वहीं, हिमाचल प्रदेश के बागवान भी विधानसभा चुनाव में अपने मुद्दों को प्रमुखता से रख रहे हैं. ताकि बागवानी संबंधी जो भी समस्याएं इतने सालों से बागवान झेल रहे हैं, उसका भी जल्द से जल्द समाधान निकाला जा सके. (Farmer and Growers demand in Himachal) (Himachal Assembly Elections 2022) (Cold store Demand in Himachal) (Quality plants demand in Himachal)

Farmer and Growers demand in Himachal
विधानसभा चुनाव 2022 में बागवानों के मुद्दे
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Published : Oct 30, 2022, 10:09 AM IST

कुल्लू: हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 में जहां राजनीतिक दल अपने-अपने वायदे लेकर जनता के बीच जा रहे हैं. तो वहीं, इन वायदों से प्रदेश की जनता को भी आस जगी हुई है कि सरकार बनने के बाद उनकी मुश्किलों का अंत होगा. वहीं, हिमाचल प्रदेश के बागवान भी विधानसभा चुनाव में अपने मुद्दों को प्रमुखता से रख रहे हैं. ताकि बागवानी संबंधी जो भी समस्याएं इतने सालों से बागवान झेल रहे हैं, उसका भी जल्द से जल्द समाधान निकाला जा सके. (Farmer and Growers demand in Himachal) (Himachal Assembly Elections 2022)

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में कोल्ड स्टोर और गुणवत्ता युक्त पौधे प्रमुख मांगों में शामिल रहेंगे. इसके अलावा प्रदेश के विभिन्न इलाकों में लैब भी स्थापित किए जाए और दवाओं पर सब्सिडी को एक बार फिर से बहाल किया जाए. वहीं, बागवान चाहते हैं कि प्रदेश में अच्छी कंपनियां भी इस क्षेत्र में आगे आएं, ताकि बागवानों के उत्पादों के दाम रेगुलेट हो सके और बागवानों को नुकसान न उठाना पड़े. (Cold store Demand in Himachal) (Quality plants demand in Himachal)

हिमाचल प्रदेश में 5,000 करोड़ की सालाना सेब की अर्थव्यवस्था है. प्रदेश में सत्ता में कोई भी सरकार रही हो, लेकिन बागवानों को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा है. कांग्रेस और भाजपा के सत्ता पर रहते हुए विदेशी सेब पर आयात शुल्क 100 फीसदी लगाने की मांग प्रदेश के बागवान प्रमुखता से करते रहे हैं, लेकिन सुनवाई आज दिन तक नहीं हुई. कश्मीर की तर्ज पर हिमाचली सेब को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं मिला है. बागवानों को उनके बगीचों के पास न तो छोटे कोल्ड स्टोर मिले और न ही छोटी विधायन यूनिटें स्थापित हो सकीं. (Issues in Himachal Assembly Elections 2022) (Growers demand in Himachal)

हर साल सस्ते कार्टन और पैकिंग सामग्री का मामला गर्माता रहा है, लेकिन बागवानों को ज्यादा राहत नहीं मिली. कार्टन पर 18 फीसदी जीएसटी और यूनिवर्सल कार्टन का मसला ठंडे बस्ते में पड़ने से बागवान मंडियों में आर्थिक शोषण के शिकार होते रहे हैं. प्रदेश की 5,000 करोड़ की सेब अर्थव्यवस्था पर सबसे ज्यादा मार विदेशी सेब की देश की मंडियों में धमक से पड़ी है. पहले कांग्रेस और फिर भाजपा सरकार से मामला उठाया जाता रहा है कि विदेशी सेब पर आयात शुल्क शत प्रतिशत लगाया जाए.

वर्तमान में विदेशी सेब पर पचास फीसदी आयात शुल्क है और हिमाचली सेब बाजार प्रतिस्पर्धा में कड़ा मुकाबला नहीं कर पा रहा. विदेशी सेब पर आज दिन तक आयात शुल्क 100 प्रतिशत नहीं किया जा सका. पहाड़ी राज्य हिमाचल के सेब बागवानों को भी ए, बी और सी ग्रेड के सेब का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कश्मीर के सेब की तर्ज पर दिए जाने की मांग पर आज तक अमल नहीं हुआ. कश्मीर में ए ग्रेड के सेब को 60 रुपये, बी ग्रेड को 40 और सी ग्रेड को 26 रुपये प्रति किलो एमएसपी दिया जाता है. (Farmer and Growers demand in Himachal) (Himachal Assembly Elections 2022)

प्रदेश मे सिर्फ सी ग्रेड के सेब को समर्थन मूल्य 10.50 रुपये प्रति किलो दिया जा रहा है. ए और बी ग्रेड के सेब की बिक्री बागवानों को बिचौलियों के तय दाम पर करनी पड़ रही है. प्रदेश में सेब बागवानों को सुविधा के लिए छोटे कोल्ड स्टोर और विधायन इकाइयां स्थापित करने का मामला लंबे समय से उठता रहा है. बागवानों को यह सुविधा न मिलने से मंडियों में सेब की फसल बेचना मजबूरी रहती है. सेब ज्यादा समय तक स्टोर कर नहीं रखा जा सकता और ज्यादा पकने पर मंडियों में अच्छे दाम नहीं मिलते.

प्रदेश में कार्टन पर सरकार ने जीएसटी 18 प्रतिशत लगाया था और बागवानों को छह फीसदी का उपदान देने का फैसला लिया गया. बागवानों ने बाजार से कार्टन खरीदे और छह फीसदी जीएसटी का लाभ अधिकांश बागवानों को नहीं मिला. बागवान टेलीस्कोपिक कार्टन के बदले यूनिवर्सल कार्टन उपलब्ध कराने का दबाव बनाते रहे. सरकार इस दिशा में बागवानों को राहत नहीं दे पाई. लिहाजा बागवानों को टेलीस्कोपिक कार्टन में 40 किलो तक सेब भरकर बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है. (Issues in Himachal Assembly Elections 2022) (Growers demand in Himachal)

ये भी पढ़ें: हिमाचल विधानसभा चुनाव में मुद्दों की भरमार, जो बिगाड़ सकते हैं सियासी दलों का समीकरण

कुल्लू: हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 में जहां राजनीतिक दल अपने-अपने वायदे लेकर जनता के बीच जा रहे हैं. तो वहीं, इन वायदों से प्रदेश की जनता को भी आस जगी हुई है कि सरकार बनने के बाद उनकी मुश्किलों का अंत होगा. वहीं, हिमाचल प्रदेश के बागवान भी विधानसभा चुनाव में अपने मुद्दों को प्रमुखता से रख रहे हैं. ताकि बागवानी संबंधी जो भी समस्याएं इतने सालों से बागवान झेल रहे हैं, उसका भी जल्द से जल्द समाधान निकाला जा सके. (Farmer and Growers demand in Himachal) (Himachal Assembly Elections 2022)

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में कोल्ड स्टोर और गुणवत्ता युक्त पौधे प्रमुख मांगों में शामिल रहेंगे. इसके अलावा प्रदेश के विभिन्न इलाकों में लैब भी स्थापित किए जाए और दवाओं पर सब्सिडी को एक बार फिर से बहाल किया जाए. वहीं, बागवान चाहते हैं कि प्रदेश में अच्छी कंपनियां भी इस क्षेत्र में आगे आएं, ताकि बागवानों के उत्पादों के दाम रेगुलेट हो सके और बागवानों को नुकसान न उठाना पड़े. (Cold store Demand in Himachal) (Quality plants demand in Himachal)

हिमाचल प्रदेश में 5,000 करोड़ की सालाना सेब की अर्थव्यवस्था है. प्रदेश में सत्ता में कोई भी सरकार रही हो, लेकिन बागवानों को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा है. कांग्रेस और भाजपा के सत्ता पर रहते हुए विदेशी सेब पर आयात शुल्क 100 फीसदी लगाने की मांग प्रदेश के बागवान प्रमुखता से करते रहे हैं, लेकिन सुनवाई आज दिन तक नहीं हुई. कश्मीर की तर्ज पर हिमाचली सेब को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं मिला है. बागवानों को उनके बगीचों के पास न तो छोटे कोल्ड स्टोर मिले और न ही छोटी विधायन यूनिटें स्थापित हो सकीं. (Issues in Himachal Assembly Elections 2022) (Growers demand in Himachal)

हर साल सस्ते कार्टन और पैकिंग सामग्री का मामला गर्माता रहा है, लेकिन बागवानों को ज्यादा राहत नहीं मिली. कार्टन पर 18 फीसदी जीएसटी और यूनिवर्सल कार्टन का मसला ठंडे बस्ते में पड़ने से बागवान मंडियों में आर्थिक शोषण के शिकार होते रहे हैं. प्रदेश की 5,000 करोड़ की सेब अर्थव्यवस्था पर सबसे ज्यादा मार विदेशी सेब की देश की मंडियों में धमक से पड़ी है. पहले कांग्रेस और फिर भाजपा सरकार से मामला उठाया जाता रहा है कि विदेशी सेब पर आयात शुल्क शत प्रतिशत लगाया जाए.

वर्तमान में विदेशी सेब पर पचास फीसदी आयात शुल्क है और हिमाचली सेब बाजार प्रतिस्पर्धा में कड़ा मुकाबला नहीं कर पा रहा. विदेशी सेब पर आज दिन तक आयात शुल्क 100 प्रतिशत नहीं किया जा सका. पहाड़ी राज्य हिमाचल के सेब बागवानों को भी ए, बी और सी ग्रेड के सेब का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कश्मीर के सेब की तर्ज पर दिए जाने की मांग पर आज तक अमल नहीं हुआ. कश्मीर में ए ग्रेड के सेब को 60 रुपये, बी ग्रेड को 40 और सी ग्रेड को 26 रुपये प्रति किलो एमएसपी दिया जाता है. (Farmer and Growers demand in Himachal) (Himachal Assembly Elections 2022)

प्रदेश मे सिर्फ सी ग्रेड के सेब को समर्थन मूल्य 10.50 रुपये प्रति किलो दिया जा रहा है. ए और बी ग्रेड के सेब की बिक्री बागवानों को बिचौलियों के तय दाम पर करनी पड़ रही है. प्रदेश में सेब बागवानों को सुविधा के लिए छोटे कोल्ड स्टोर और विधायन इकाइयां स्थापित करने का मामला लंबे समय से उठता रहा है. बागवानों को यह सुविधा न मिलने से मंडियों में सेब की फसल बेचना मजबूरी रहती है. सेब ज्यादा समय तक स्टोर कर नहीं रखा जा सकता और ज्यादा पकने पर मंडियों में अच्छे दाम नहीं मिलते.

प्रदेश में कार्टन पर सरकार ने जीएसटी 18 प्रतिशत लगाया था और बागवानों को छह फीसदी का उपदान देने का फैसला लिया गया. बागवानों ने बाजार से कार्टन खरीदे और छह फीसदी जीएसटी का लाभ अधिकांश बागवानों को नहीं मिला. बागवान टेलीस्कोपिक कार्टन के बदले यूनिवर्सल कार्टन उपलब्ध कराने का दबाव बनाते रहे. सरकार इस दिशा में बागवानों को राहत नहीं दे पाई. लिहाजा बागवानों को टेलीस्कोपिक कार्टन में 40 किलो तक सेब भरकर बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है. (Issues in Himachal Assembly Elections 2022) (Growers demand in Himachal)

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