कुल्लू: हिमाचल में भी बदलते समय के साथ किसान भी अब खेती में बदलाव ला रहे हैं. भले ही प्राकृतिक खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसका असर देखने में अभी वक्त लगेगा क्योंकि कुल्लू जिला ने परंपागत अनाजों को खो दिया है. अब कई अनाज ढूंढने पर भी नहीं मिल रहे. वहीं, इस दिशा में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर पारम्परिक अनाज का संरक्षण कर रहा है.
बता दें कि जिला कुल्लू में परंपरागत फसलों का उत्पादन पिछले कई सालों से घट गया है. जिले में दस साल पहले गेहूं की खेती 24,000 हेक्टेयर भूमि पर होती थी, लेकिन अब यह 12,000 हेक्टेयर पर सिमट कर रह गई है. वहीं, कोदरा की खेती साढ़े तीन दशक पूर्व 5,000 हेक्टेयर भूमि पर हुआ करती थी. 19 पौष्टिक तत्त्वों और प्रचूर मात्रा में कैल्शियम प्रदान करने वाले कोदरा की खेती लगभग विलुप्त हो गई है.
लगातार बढ़ रहा सब्जी उत्पादन
यही नहीं, परंपरागत खेती में कोदरा, सियारा, मक्की और गेहूं जैसी फसलों को किसान कम उगा रहे हैं. कृषि-बागवानी के लिए मशहूर जिला कुल्लू के किसानों का रुझान परंपरागत फसलों के बजाए सब्जी उत्पादन की ओर लगातार बढ़ रहा है. वहीं, पारंपरिक खेती से मुख मोड़ने की परंपरा लोगों को कई घातक रोगों में भी धकेलते जा रही है. नकदी फसलों की ओर बढ़ता रुझान भले ही आधुनिकता के युग में सही है, लेकिन पारंपरिक खेती की अपनी अहमियत है. इसे नकारा नहीं जा सकता.
कुल्लू में कौल्थ की खेती अब नाममात्र की हो रही. कौल्थ की दाल पथरी के मरीजों के लिए रामबाण मानी जाती है. इसके सेवन मात्र से पथरी चूरा बनकर बाहर निकल जाती है. कुल्लू में अब कोदरा, काऊणी, चीणी, सलियारा, बाजारा, जौ, कौल्थ और चूड़ीधार साग खाने की थाली से करीब गायब ही हो चुके हैं.
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कई बीमारियों के लिए रामबाण हैं ये पारंपरिक अनाज
कुछ अनाजों के बीज अब भी किसानों के पास हैं, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में इन अनाजों की बिजाई कम हो गई है. यह खाद्य सामग्री खाने में ही इस्तेमाल नहीं होती थी बल्कि कई बीमारियों की काट भी रखती थी. पारंपरिक अनाज का जैसे-जैसे इस्तेमाल बंद होता गया, वैसे वैसे रोग भी बढ़ते जा रहे हैं. पुराने समय मे कौल्थ की दाल पथरी का इलाज करती है.
अब पथरी की बीमारी तो आम हो गई है. पथरी की शिकायत की एक मात्र औषधी कौल्थ की दाल ही थी. जौ से निकाली लुगड़ी नींगू से उल्टी दस्त का इलाज होता था. कोदरा शुगर रोग के लिए रामबाण माना जाता है. चूड़ीधार साग से आयरन मिलता है. इससे कई बीमारियां खत्म होती थीं.
विलुप्त हो रहे बीजों का किया जा रहा संरक्षण
कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति हरेंद्र कुमार चौधरी ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में अब पारंपरिक अनाजों को बचाने की दिशा में भी विश्वविद्यालय में काम किया जा रहा है. वहीं, किसानों को भी इन बीजों के बारे में विशेष रुप से जानकारी दी जा रही है ताकि हिमाचल प्रदेश में विलुप्त हो रहे बीजों का भी संरक्षण किया जा सके.
वही, प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे बीज ग्राम परियोजना से प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में पुरानी फसलें कोदरा, काउंणी, चीणी, लाल चावल, धान, बीथू और मक्का उगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा. इसके लिए प्रदेश के सभी जिलों में बीज ग्राम बनाए जाएंगे.
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