ETV Bharat / state

जहां पूरा देश जलाता है रावण का पुतला, वहीं, बैजनाथ में नहीं मनाया जाता दशहरा

author img

By

Published : Oct 23, 2020, 1:38 PM IST

Baijnath Shiv Temple
बैजनाथ शिव मंदिर

दशहरा जहां पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन देश के अलग-अलग जगहों पर रावण का पुतला जलाया जाता है. वहीं, बैजनाथ में पिछले चार दशकों से दशहरा तक नहीं मनाया जाता है.

बैजनाथ: बिनवा खड्ड के किनारे स्थित बैजनाथ कस्बे में पर्यटन व धर्म का अनूठा संगम है. यहां पर ऐतिहासिक शिव मंदिर की विश्व मानचित्र पर अपनी एक अलग ही पहचान है. शिव मंदिर बैजनाथ का संबंध रावण की तपस्या से भी जोड़ा जाता है. दशहरा जहां पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन देश के अलग-अलग जगहों पर रावण का पुतला जलाया जाता है. वहीं, यहां पिछले चार दशकों से दशहरा तक नहीं मनाया जाता है.

मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना हुई है. उसे लंकापति रावण ने यहां लाया था. कहते हैं कि हिमालय पर सदियों तक तपस्या करने और 9 बार अपना शीश काटने के बाद भगवान शिव ने रावण को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा था.

शिवलिंग का इतिहास

मान्यता है कि चारों वेदों के ज्ञाता रावण ने यहां तपस्या की थी, इसके चलते बैजनाथ को वैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि मंदिर से कुछ दूरी पर पपरोला जाने वाले पैदल रास्ते पर रावण का मंदिर और पैरों के निशान है. मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग का इतिहास रावण के तप से जोड़ा जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह वही शिवलिंग है, जिसे रावण तप कर लंका ले जा रहा था, लेकिन इस जगह लघुशंका के दौरान रावण ने इस शिवलिंग को एक चरवाहे को पकड़ा दिया. काफी समय तक रावण के न लौटने पर चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और यह शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया.

ऐसा भी कहा जाता है कि कैलाश पर्वत से इस शिवलिंग को लंका ले जाते हुए रावण से भगवान शिव ने वचन लिया था कि वह रास्ते में इस शिवलिंग को कहीं न रखे अन्यथा शिवलिंग रखने के स्थान पर ही ये स्थापित हो जाएगा.

वीडियो

सुनार की एक भी दुकान नहीं

लंकापति रावण की तपोस्थली के रूप में बैजनाथ नगरी में अचंभित करने वाली दो बातें है. पहला कि बैजनाथ में लगभग 800 व्यापारिक संस्थान है, लेकिन यहां कोई भी सुनार की दुकान नहीं है. ऐसा कहा जाता है कि यहां सोने की दुकान करने वाले का सोना काला फिर जाता है, जिसके चलते उन दुकानदारों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ती है.

नहीं जलाया जाता रावण का पुतला

दूसरी बात ये है कि यहां बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाने वाले दशहरे पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता और न ही यहां रामलीला का मंचन किया जाता है. 70 के दशक में बैजनाथ में ऐतिहासिक शिव मंदिर के मैदान में दशहरा मनाने का सिलसिला शुरू हुआ था. यहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बनाने और आयोजन की भूमिका निभाने वाले लोगों के साथ दुर्घटना हुई, जिस पर लोगों ने दशहरा मनाना बंद कर दिया. कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति के बैजनाथ में रावण का पुतला जलाने पर उस व्यक्ति पर कोई विपत्ति आती है या वो काल का ग्रास बन जाता है.

नौंवी शताब्दी में हुआ मंदिर का निर्माण

इस मंदिर का निर्माण नौंवी शताब्दी में दो व्यापारियों मयूक और अहूक नाम के दो भाईयों ने करवाया था. मंदिर की कला शैली को देखकर हर कोई हैरान हो जाता है. मंदिर की दीवारों पर अनेकों चित्रों की नक्काशी हुई है. मंदिर के मुख्य कक्ष में दो शिलालेख संस्कृत और टंकी में लिखे गए हैं. कांगड़ा के अंतिम शासक राजा संसार चंद ने भी मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था. 1905 के भूकंप में केवल यही मंदिर ऐसा था जिसे आंशिक रूप से नुकसान हुआ था.

नंदी बैल भी आकर्षण का केंद्र

बैजनाथ शिव मंदिर नौंवी शताब्दी का बना हुआ है. शिखराकार शैली से बने इस मंदिर की शिल्पकला अपने आप में अनूठी है. शिल्पकला को देखते हुए यहां विदेशी पर्यटकों का आना लगा रहता है. यहां एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया नंदी बैल भी आकर्षण का केंद्र है. सावन माह के हर सोमवार को बैजनाथ में मेले लगते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.