धर्मशाला: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा सोमवार को 85 साल के हो गए. दलाई लामा ने अपने जन्मदिन पर वीडियो जारी कर अपने अनुयायियों को कहा कि आज उनका जन्मदिन है. महामारी के कारण आज के दिन किसी तरह के समरोह का आयोजन संभव नहीं है. उन्होंने कहा, 'किसी तरह के समारोह की आवश्यकता भी नहीं है, लेकिन अगर आप मेरा जन्मदिवस मनाना चाहते हैं तो मैं आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि आप कम से कम एक हजार बार मानी मंत्र- ओम मानी पद्मे हंग का उच्चारण करें.
कोरोना संकट के बीच 14वें बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा का 85वां जन्मदिन पहली बार मैक्लोडगंज में बिना किसी भव्य समारोह के मनाया जाएगा. जनवरी में कोरोना वायरस फैलने के बाद से दलाईलामा किसी बाहरी व्यक्ति से नहीं मिले. न ही उन्होंने विदेश दौरा किया. तीन माह तक उन्होंने कोई भी ऑनलाइन और ऑफलाइन टीचिंग नहीं दी. अब वे अपने निवास स्थान से ही दुनिया भर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से संदेश दे रहे हैं.
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बता दें कि धर्मशाला के मैक्लोडगंज में बौद्ध मंदिर निर्वासित तिब्बत सरकार की ओर से उनका जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता था, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से इस बार थोड़ी रोक लगी हुई है. भारत और दुनियाभर में रहने वाले धर्मगुरु के अनुयायी अपने घरों पर ही पूजा-पाठ करके धर्मगुरु दलाईलामा का जन्मदिन मनाएंगे.
धर्मशाला स्थित निर्वासित तिब्बत सरकार के मुख्यालय में भी जन्मदिन साधारण तरीके से मनेगा. इससे पहले दलाईलामा के जन्मदिन पर मैक्लोडगंज स्थित मुख्य बौद्ध मंदिर और दुनिया भर में 6 जुलाई को भव्य कार्यक्रम होते थे, लेकिन कोरोना कहर ने मानो सबकी जिंदगी में ग्रहण लगा दिया हो.
दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के अमुदो क्षेत्र के तकतसर में एक किसान परिवार में हुआ था. उनका नाम लहामो धोनुढुप था. दलाई लामा जब 2 साल के थे तब उन्हें 14वें धर्मगुरु दलाई लामा के रूप में पहचान लिया गया था. पांच साल की उम्र होने पर दलाई लामा को अधिकारिक तौर पर तिब्बती धर्मगुरु की गद्दी पर विराजमान कर दिया गया था.
24 साल के होने पर उन्हें बौद्व धर्म की सबसे उच्च स्तरीय डिग्री हासिल हो गई थी. साल 1950 में जब दलाई लामा 16 वर्ष के थे तो मंत्रिमंडल की सत्यनिष्ठ अपील के बाद उन्होंने तिब्बत के अस्थाई नेतृत्व की जिम्मेदारी ली थी. तिब्बत में दलाईलामा पदवी सर्वोच्च गुरु और राजनेता की है. दलाईलामा के उत्तराधिकारी का चुनाव वंश परंपरा या वोट से नहीं, बल्कि पुनर्जन्म के आधार पर तय होता है. कुछ मामलों में धर्मगुरु अपने ‘अवतार’ संबंधी कुछ संकेत छोड़ जाते हैं.
धर्मगुरु की मौत के बाद इन संकेतों की मदद से ऐसे बच्चों की सूची बनाई जाती है जो धर्मगुरु के अवतार जैसे हों. इसमें सबसे इस बात का ध्यान रखा जाता है, ऐसे बच्चे धर्मगुरु की मौत के 9 महीने बाद जन्मे हों. 1933 में 13वें दलाईलामा की मौत हुई थी. इसके बाद तेंजिन ग्यात्सो के रूप में तिब्बत के आम्दो प्रांत में दो साल की उम्र में 14वें दलाईलामा की खोज हुई.
भारत ने दलाई लामा और उनके हजारों तिब्बती अनुयायियों को धर्मशाला में शरण दे रखी है, भारत में करीब 80 हजार निर्वासित तिब्बती रह रहे हैं, जबकि करीब डेढ़ लाख से ज्यादा अमेरिका और यूरोप समेत दुनियाभर के अन्य देशों में हैं.
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