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Vikram Batra Death Anniversary: ...जब विक्रम बत्रा ने दोस्तों से कहा- तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर

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Published : Jul 7, 2022, 6:04 AM IST

Updated : Jul 7, 2022, 9:28 AM IST

आज कैप्‍टन विक्रम बत्रा की पुण्यतिथि (Vikram Batra Death anniversary) है. कैप्‍टन विक्रम बत्रा ने करगिल के युद्ध में देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्‍च बलिदान दिया था. युद्ध के बाद कैप्‍टन विक्रम बत्रा की बहादुरी को नमन करते हुए उनको सेना के सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्‍मानित किया गया था. करगिल की उस जंग को 22 बरस हो चुके हैं, लेकिन इस जंग की दस्तान उसके नायकों के बिना अधूरी है. वो 24 साल में सर्वोच्च बलिदान दे गए. करगिल जंग के सबसे बड़े नायकों में थे कैप्टन विक्रम बत्रा, जिनका कोड नेम पाकिस्तानियों के लिए खौफ का दूसरा नाम था. ऐसे जांबाज की ये कहानी आपमें जोश भर देगी.

Captain Vikram Batra Death anniversary
कैप्टन विक्रम बत्रा की पुण्यतिथि.

पालमपुर: आज ही के दिन 7 जुलाई 1999 को करगिल की जंग के सबसे बड़े नायक ने सर्वोच्च बलिदान (Captain Vikram Batra Death anniversary) दिया था. करगिल की चोटियां और पाकिस्तानी उसे शेरशाह के नाम से जानते हैं, मां-बाप के दिल का टुकड़ा लव और दुनिया के लिए अमर हुआ वो नाम था कैप्टन विक्रम बत्रा. दुश्मन की धज्जियां उड़ाने के बाद जो कहता था 'ये दिल मांगे मोर'. आज विक्रम बत्रा की पुण्यतिथि है. महज 24 साल में उन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. उनकी कहानी आज भी चर्चित है.


पालमपुर की पहचान विक्रम बत्रा: विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को पालमपुर के घुग्गर गांव में हुआ. उनके पिता का नाम जीएल बत्रा औऱ मां का नाम कमलकांता बत्रा है. दो बेटियों के बाद बत्रा दंपति एक बेटा चाहते थे. भगवान ने दोगुनी खुशियां उनकी झोली में डाल दीं और कमलकांता बत्रा ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया जिन्हें प्यार से लव-कुश बुलाते थे. विक्रम बड़े थे जिन्हें लव और छोटे भाई विशाल को कुश कहकर बुलाते थे.

कैप्टन विक्रम बत्रा.
कैप्टन विक्रम बत्रा.

मां टीचर थी तो बत्रा ब्रदर्स की पढ़ाई की शुरुआत घर से ही हो गई थी. डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की शिक्षा उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ से हासिल की. स्कूल और कॉलेज के उनके साथी और टीचर आज भी उनकी मुस्कान, दिलेरी और उनके मिलनसार स्वभाव को याद करते हैं. पालमपुर की पहचान आज विक्रम बत्रा से है और पालमपुर का हर शख्स कैप्टन विक्रम बत्रा का फैन है.

लाखों की तनख्वाह को ठुकराया: विक्रम बत्रा का सेलेक्शन मर्चेंट नेवी में हांगकांग की एक शिपिंग कंपनी में हुआ था. ट्रेनिंग के लिए बुलावा भी आ चुका था लेकिन उन्होंने सेना की वर्दी को चुना. मर्चेंट नेवी की लाखों की तनख्वाह देश के लिए जान न्योछावर करने के जज्बे के सामने बौनी साबित हुई. विक्रम के पिता जीएल बत्रा कहते हैं कि गणतंत्र दिवस परेड में NCC कैडेट के रूप में हिस्सा लेना विक्रम का सेना की तरफ झुकाव का पहला कदम था. मर्चेंट नेवी के लाखों के पैकेज को छोड़ विक्रम बत्रा ने कुछ बड़ा करने की ठानी और 1995 में IMA की परीक्षा पास की.

करगिल युद्ध जीतने के बाद की तस्वीर.
करगिल युद्ध जीतने के बाद की तस्वीर.

'तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर': विक्रम बत्रा यारों के यार थे वो दोस्तों के साथ वक्त बिताने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. करगिल की जंग से कुछ वक्त पहले विक्रम बत्रा अपने घर आए थे. तब उन्होंने अपने दोस्तों को वहां के न्यूगल कैफे में पार्टी दी थी. बातचीत के दौरान उनके एक दोस्त ने कहा कि तुम अब फौजी हो अपना ध्यान रखना. जिसपर विक्रम बत्रा का जवाब था 'चिंता मत करो, मैं तिरंगा लहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, लेकिन आऊंगा जरूर.'

करगिल के 'शेरशाह' का दिल मांगे मोर: करगिल की जंग में विक्रम बत्रा का कोड नेम शेरशाह था और इसी कोडनेम की बदौलत पाकिस्तानी उन्हें शेरशाह कहकर बुलाते थे. 5140 की चोटी जीतने के लिए रात के अंधेरे में पहाड़ की खड़ी चढ़ाई से दुश्मन की निगाहों से बचते हुए जाना था. विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ पहाड़ी पर कब्जा जमाए पाकिस्तानियों को धूल चटाई और उस पोस्ट पर कब्जा किया. जीत के बाद वायरलेस पर विक्रम बत्रा की आवाज गूंजी 'ये दिल मांगे मोर'

कैप्टन विक्रम बत्रा.
कैप्टन विक्रम बत्रा.

लेफ्टिनेंट से कैप्टन साहब: करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानियों ने ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया था जहां से भारतीय फौज पर निशाना लगाना आसान था. करगिल युद्ध जीतने के लिए इन चोटियों पर वापस कब्जा करना जरूरी था. विक्रम बत्रा को उनके सीओ ने 5140 की चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी.

विक्रम बत्रा उस वक्त देश के रियल हीरो बन गए जब उन्होंने करगिल युद्ध के दौरान 5140 की चोटी पर कब्जा करने के बाद 'ये दिल मांगे मोर' कहा. अगले दिन जब एक टीवी चैनल पर विक्रम बत्रा ने ये दिल मांगे मोर कहा तो मानो देश के युवाओं के रग-रग में जोश भर गया. करगिल पहुंचते वक्त विक्रम बत्रा लेफ्टिनेंट थे, लेकिन 5140 की चोटी से पाकिस्तानियों का सफाया करने के बाद उन्हें जंग के मैदान में ही कैप्टन प्रमोट किया गया और अब वो थे कैप्टन विक्रम बत्रा.

कैप्टन विक्रम बत्रा.
कैप्टन विक्रम बत्रा.

तिरंगा भी फहराया और तिरंगे में लिपटकर भी आया: 5140 की चोटी फतह करने के बाद भारतीय फौज के हौसले और भी बुलंद हो गए. जिसकी एक सबसे बड़ी वजह थे कैप्टन विक्रम बत्रा. 5140 पर तिरंगा लहराने के बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने खुद उन्हें फोन पर बधाई दी. इसके बाद मिशन था 4875 की चोटी पर तिरंगा फहराना. कहते हैं कि उस वक्त कैप्टन विक्रम बत्रा की तबीयत खराब थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने सीनियर्स से इस मिशन पर जाने की इजाजत मांगी.

सेना के हर जवान को शपथ दिलाई जाती है कि रणभूमि में वो सबसे पहले देश फिर अपने साथियों और आखिर में खुद की सोचेगा और कैप्टन विक्रम बत्रा ने आखिरी सांस तक इस शपथ को निभाया. 4875 पर मिशन के दौरान विक्रम बत्रा के एक साथी को गोली लग गई जो सीधा दुश्मनों की बंदूकों के निशाने पर था. घायल साथी को बचाते हुए ही दुश्मन की गोली कैप्टन विक्रम बत्रा को लग गई और करगिल जंग के उस सबसे बड़े नायक को शहादत नसीब हुई. 4875 की चोटी को भारतीय सेना ने फतह किया और इस चोटी को आज बत्रा टॉप के नाम से जानते हैं.

कैप्टन विक्रम बत्रा द्वारा लिखा गया पत्र.
कैप्टन विक्रम बत्रा द्वारा लिखा गया पत्र.

विक्रम बत्रा ने एक बार बातों-बातों में दोस्तों से कहा था कि वो तिरंगा लहराकर आएंगे या फिर तिरंगे में लिपटकर आएंगे, लेकिन आएंगे जरूर. करगिल की जंग में जांबाज कैप्टन विक्रम बत्रा ने 5140 पर तिरंगा लहराया और फिर 4875 के मिशन के दौरान शहादत पाई. विक्रम बत्रा ने तिरंगा लहराया भी और तिरंगे में लिपकर पालमपुर लौटे भी.

एक बेटा देश के लिए दूसरा परिवार के लिए: कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत के बाद पालमपुर में राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ. देश के सबसे बड़े हीरो विक्रम बत्रा और पालमपुर के लव को देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ी. आंखों में नमी और सीने में गर्व लिए हर किसी ने कैप्टन विक्रम बत्रा को आखिरी सलाम किया. विक्रम की मां कहती हैं कि दो बेटियों के बाद उन्हें एक बेटा चाहिए था, लेकिन भगवान ने जुड़वा बेटे दिए. जिनमें से एक बेटा देश के लिए था और दूसरा मेरे लिए.

कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता राष्ट्रपति से सम्मान लेते हए.
कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता राष्ट्रपति से सम्मान लेते हए.

परमवीर कैप्टन विक्रम बत्रा: कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया गया. 26 जनवरी 2000 को उनके पिता जीएल बत्रा ने तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन से वो सम्मान हासिल किया. कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता से तत्कालीन सेना प्रमुख वीपी मलिक ने कहा था कि 'विक्रम बत्रा में वो जोश, जज्बा और जुनून था जिसने उन्हें देश का सबसे बड़ा हीरो बनाया. वीपी मलिक ने कहा था कि 'विक्रम बत्रा इतने प्रतिभाशाली थे कि अगर वो शहीद न होते तो एक दिन मेरी कुर्सी पर बैठते' यानी वीपी मलिक कहना चाहते थे कि कैप्टन विक्रम बत्रा एक दिन देश के सेना प्रमुख बन सकते थे.

किस्से कहानियों में वो करगिल का 'शेरशाह': कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत को आज दो दशक से अधिक हो गए हैं, लेकिन उनकी बहादुरी, यारी और देशभक्ति के जज्बे के किस्से आज भी मशहूर हैं. पालमपुर की गलियों से लेकर स्कूल, चंडीगढ़ के कॉलेज से लेकर IMA देहरादून के गलियारों में आज भी उनके सबसे होनहार वीरवानों में से एक विक्रम बत्रा के किस्से और कहानियां जिंदा हैं.

कैप्टन विक्रम बत्रा और बटालियन के जवान.
कैप्टन विक्रम बत्रा और बटालियन के जवान.

उनके माता-पिता, भाई-बहन और दोस्तों के बीच वो आज भी मौजूद हैं एक मीठी सी याद बनकर. करगिल के शेरशाह का दुश्मन को धूल चटाकर 'ये दिल मांगे मोर' कहना आज भी देश के युवाओं की नस-नस में जोश भरने के लिए काफी है. उनकी कहानी कई युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकती है क्योंकि 24 बरस की जिस उम्र में आज के युवा किताब के पन्नों या भविष्य की उधेड़बुन में उलझे रहते हैं उस उम्र में विक्रम बत्रा करगिल का जंग का वो चेहरा बने जो देश का रियल हीरो बन गया और फिर देश के नाम सर्वोच्च बलिदान की बराबरी तो कोई कर ही नहीं सकता.

Last Updated : Jul 7, 2022, 9:28 AM IST
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