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हिमाचल प्रदेश में खाद की कमी, किसान संघर्ष समिति ने जताई चिंता

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Published : Feb 15, 2022, 5:41 PM IST

किसान संघर्ष समिति ने प्रदेश में खाद की कमी को लेकर चिंता व्यक्त की है और सरकार के किसानों के प्रति उदासीन रवैये की कड़ी निंदा की है. सरकार इन किसान व बागवान (Kisan Sangharsh Samiti Shimla) विरोधी नीतियों के चलते कृषि व बागवानी के क्षेत्र में सहायता व सब्सिडी में कटौती कर रही है. जिससे प्रदेश में कृषि का संकट पैदा हो गया है. सरकार यदि तुरन्त किसानों को उचित कीमत पर मांग अनुसार खाद उपलब्ध नहीं करवाती है तो किसान संघर्ष समिति किसानों को लामबंद कर सरकार की इन किसान व बागवान विरोधी नीतियों व रवय्ये के विरुद्ध संघर्ष करेगी.

Kisan Sangharsh Samiti Sanjay Chauhan
किसान संघर्ष समिति के संयोजक संजय चौहान

शिमला: किसान संघर्ष समिति ने प्रदेश में खाद की कमी को लेकर चिंता व्यक्त की है और सरकार के किसानों के प्रति उदासीन रवैये की कड़ी निंदा की है. किसान संघर्ष समिति के संयोजक संजय चौहान ने कहा कि आज जब किसान विशेष रूप से सेब बागवानों को खाद की अत्यंत आवश्यकता है उसे सरकार आवश्यकता अनुसार कोई भी खाद उपलब्ध नहीं करवा रही है और मजबूरन बागवानों को खुले बाजार से महंगी व निम्न गुणवत्ता वाली खाद लेने के लिए विवश होना पड़ रहा है.

सरकार इन किसान व बागवान विरोधी नीतियों के चलते कृषि व (Kisan Sangharsh Samiti Shimla) बागवानी के क्षेत्र में सहायता व सब्सिडी में कटौती कर रही है. जिससे प्रदेश में कृषि का संकट पैदा हो गया है. सरकार यदि तुरन्त किसानों को उचित कीमत पर मांग अनुसार खाद उपलब्ध नहीं करवाती है तो किसान संघर्ष समिति किसानों को लामबंद कर सरकार की इन किसान व बागवान विरोधी नीतियों व रवैये के विरुद्ध संघर्ष करेगी.

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चौहान ने कहा कि जनवरी व फरवरी माह में हुई बेहतर बर्फबारी के पश्चात बागवानों को अपने बगीचों में प्राथमिकता से खाद डालने के कार्य करना है, लेकिन आज जिन खादों की आवश्यकता है सरकार इन्हें उपलब्ध नहीं करवा रही है और खुले बाजार में खादों की कीमतों में गत वर्ष की तुलना में भारी वृद्धि की गई है.

आज बगीचों में पोटाश, NPK 12:32:16, NPK 15:15:15 डालने का समय आ गया है, लेकिन कहीं पर भी यह खादें उपलब्ध नहीं हैं और अब मजबूरन बागवानों को खुले बाजार से निम्न गुणवत्ता वाली खादें, जोकि कृषि व बागवानी विश्विद्यालय या बागवानी विभाग द्वारा अनुमोदित नहीं है. उन्हें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है. इससे भविष्य में सेब के उत्पादन व उत्पादकता में कमी आएगी. जिससे बागवानी का संकट और अधिक गहरा होगा और सेब की आर्थिकी की बर्बादी से प्रदेश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होगा.

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