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Shardiya Navratri 2022: माता का ऐसा मंदिर, जिनके नाम पर पड़ा है शिमला का नाम

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Published : Sep 24, 2022, 6:02 AM IST

पहाड़ों की रानी शिमला में नवरात्रि का त्योहार (Shardiya Navratri 2022) बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यहां स्थित कालबाड़ी मंदिर (kalibari temple of shimla) में हर साल लाखों भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं. ये मंदिर माँ ‘देवी श्यामला’ को समर्पित है. श्यामला देवी को देवी काली का अवतार भी माना जाता है. कहा जाता हैं कि शिमला का नाम पहले श्यामला ही (Mata Shyamala) था, जो मां श्यामला के नाम से ही व्युत्पन्न है. पर धीरे-धीरे बोल चाल की भाषा में श्यामला का नाम शिमला हो गया. इस मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना है. ऐसी मान्यता है कि मंदिर में जो भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर यहां आता है, उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है.

शिमला का कालीबाड़ी मंदिर
शिमला का कालीबाड़ी मंदिर

शिमला: शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2022) को लेकर देश भर में माता के मंदिर सजने लगे हैं. देवभूमि हिमाचल प्रदेश में भी कई प्रसिद्ध शक्तिपीठों के साथ-साथ माता के मंदिर हैं. पहाड़ों की रानी शिमला में स्थित कालबाड़ी मंदिर (kalibari temple of shimla) लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है. ये मंदिर मां 'देवी श्यामला' को समर्पित है. श्यामला देवी को देवी काली (Kalibari temple of Shimla) का अवतार भी माना जाता है. कहा जाता हैं कि शिमला का नाम पहले श्यामला ही (Mata Shyamala) था, जो मां श्यामला के नाम से ही व्युत्पन्न है. पर धीरे-धीरे बोल चाल की भाषा में श्यामला का नाम शिमला हो गया. शिमला के माल रोड से कुछ ही दूरी पर स्थित कालीबाड़ी मंदिर का निर्माण सन 1823 में हुआ था.

मंदिर में देवी की लकड़ी की एक मूर्ति प्रतिस्थापित है. दीवाली, नवरात्री और दुर्गापूजा जैसे हिंदू त्योहारों के अवसर पर बहुत से भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं. मां की मूर्ति के ऊपर चांदी का छतर व समीप ही फन फैलाए नाग देवता की कलात्मक मूर्ति देखकर भक्तजन आत्म विभोर हो जाते हैं. मंदिर के आसपास बैठे पंडित निरंतर माता का मंत्रोच्चारण करते रहते हैं. जिससे यहां का माहौल हरदम भक्तिमय रहता हैं.

पुजारी मुक्ति चक्रवर्ती.

मंदिर के पुजारी मुक्ति चक्रवर्ती ने बताया कि ब्रिटिश काल में बने इस मंदिर के स्थान पर पहले एक गुफा हुआ करती थी. शिमला कालीबाड़ी मंदिर का निर्माण राम चरण ब्राह्मण ने करवाया था, जो एक बंगाली परिवार से संबंध रखते थे. कालीबाड़ी मंदिर में काली माता की मूर्ति के साथ एक तरफ श्यामला माता तो दूसरी तरफ चंडी माता की शिला है. इस मंदिर में माता की पत्थर की मूर्ति भी लगी हुई है. इस मूर्ति में लगे पत्थरों को जयपुर से मंगवाया गया था.

मंदिर निर्माण के बाद वर्ष 1885 में शिमला कालीबाड़ी प्रबंधन कमेटी (Kalibari Temple Management Committee) का गठन हुआ. उसके बाद 1903 में कालीबाड़ी मंदिर ट्रस्ट बना, जो इस मंदिर को आज तक चला रहा है. मंदिर के पुजारी ने बताया कि ब्रिटिश काल में मंदिर के आने के लिए कोई भी रास्ता नहीं था. बाद में एक पुजारी को मां ने सपने में दर्शन दिए और मंदिर के लिए रास्ता बनाने के लिए कहा. रास्ता बनने के बाद धीरे-धीरे श्रद्धालु यहां आना शुरू हुए.

पुजारी मुक्ति चक्रवर्ती ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि मंदिर में जो भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आता है, उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है. उन्होंने कहा कि नवरात्रों में मंदिर में विशेष पूजा (navratri pooja in Kalibari temple) होती है, उस समय यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. सुबह शाम भी मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है, जिसमें शामिल होने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

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