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हिमाचल के इन उत्पादों को मिली है GI टैग के साथ विश्वस्तरीय पहचान

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Published : Aug 12, 2022, 5:29 PM IST

Updated : Nov 28, 2022, 2:52 PM IST

GI Tag to Himachal Products
GI Tag to Himachal Products

देश की आजाद के 75 सालों (Achievements 75) के सफर को आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) के रूप में मनाया जा रहा है. आजादी (Indian Independence Day) के इस सफर कई ऐसी चीजें हैं जिन्होंने हमारी परंपरा और संस्कृति को पहचान दिलाई है. हिमाचल प्रदेश की कुछ ऐसी ही चीजें से आज हम आपको रूबरू कराएंगे, जिन्होंने हिमाचल को एक अलग पहचान (GI Tag to Himachal Products) दी है. इन सभी प्रोडक्ट्स को जीआई टैग भी मिला हुआ है. पढ़ें पूरी खबर...

शिमला: देश आज आजादी के 75 सालों (Achievements 75) का जश्न आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) के रूप में मना रहा है. आजादी (Indian Independence Day) का ये सफर हमारी परंपरा और संस्कृति के बिना अधूरा है. किसी देश की पहचान उसकी संस्कृति, परंपरा और पहनावे से की जाती है. हमारे देश के कई ऐसी चीजे हैं, जो सिर्फ यहीं पाई जाती हैं और बनती भी हैं. ये वो देसी चीजें हैं जिन्होंने देश के साथ-साथ दुनिया में एक अलग पहचान बनाई है. आपने अक्‍सर प्रोडक्ट्स को लेकर जीआई टैग के बारे में सुना होगा. आपके मन में फिर ये सवाल भी आया होगा कि आखिर ये जीआई टैग क्‍या होता है.

क्‍या होता है GI टैग: वर्ल्‍ड इंटलैक्‍चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता (What is GI tag) है, जिसमें किसी प्रोडक्‍ट को विशेष भौगोलि‍क पहचान दी जाती है. ऐसा प्रोडक्‍ट जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्‍ठा मुख्‍य रूप से प्राकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है. भारत में संसद की तरफ से 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है. ये टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में पाई जाने वाली या फिर तैयार की जाने वाली वस्तुओं के दूसरे स्थानों पर गैर-कानूनी प्रयोग को रोकना है.

ये जीआई टैग दरअसल प्रोडक्ट से ज्‍यादा, वो जिस जगह का है, उसकी पहचान होते हैं. जीआई टैग किसी भी क्षेत्र की खास पहचान प्रोडक्ट को देते हैं और उसे सहेजने के लिए काम आते हैं. पहाड़ी राज्य हिमाचल के पास भी कई ऐसे प्रोडक्ट्स (GI Tag to Himachal Products) हैं, जिन्हें GI टैग मिला हुआ है. इन प्रोडक्ट्स ने हिमाचल के पहनावे से लेकर यहां के स्वाद को देश-दुनिया तक पहुंचाया (GI tag for Himachal) है. आइए आपको हिमाचल के जीआई टैग वाले उत्पादों के बारे में बताते (Himachal Products GI tag) है.

किसे मिलता है GI टैग: जीआई टैग से पहले किसी भी सामान की गुणवत्ता, उसकी क्‍वालिटी और पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है. यह तय किया जाता है कि उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिजिनल पैदावार निर्धारित राज्य की ही है. इसके साथ ही यह भी तय किए जाना जरूरी होता है कि भौगोलिक स्थिति का उसके उत्‍पादन में कितना योगदान है. कई बार किसी खास वस्तु का उत्‍पादन एक विशेष स्थान पर ही संभव हो पाता है. इसके लिए वहां की जलवायु से लेकर उसे आखिरी स्वरूप देने वाले कारीगरों तक का बहुत योगदान होता है.

कौन देता है GI टैग: भारत में ये टैग किसी खास फसल, प्राकृतिक और मैन्‍युफैक्‍चर्ड प्रॉडक्‍ट्स को दिया जाता है. कई बार ऐसा भी होता है कि एक से अधिक राज्यों में बराबर रूप से पाई जाने वाली फसल या किसी प्राकृतिक वस्तु को उन सभी राज्यों का मिला-जुला GI टैग दिया जाता है. भारत में वाणिज्‍य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्‍ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की तरफ से जीआई टैग दिया जाता है. जीआई टैग को हासिल करने के लिए चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस में अप्लाई करना पड़ता है. इसके अधिकार व्यक्तियों, उत्पादकों और संस्थाओं को दिए जा सकते हैं एक बार रजिस्ट्री हो जाने के बाद 10 सालों तक यह ये टैग मान्य होते हैं, जिसके बाद इन्हें फिर रिन्यू करवाना पड़ता है.

चंबा चप्पल: चंबा जिले में बनने वाली चप्पल जिले के नाम से ही (Chamba chappal GI Tag) प्रसिद्ध है. ये चप्पलें चमड़े के ऊपर दस्तकारी कर बनाई जाती हैं. जो प्राकृतिक चमड़े के साथ-साथ अन्य रंगों में भी आती हैं. चंबा चप्पल एक परंपरा है, जो राजा साहिल वर्मन के समय की है. कहते हैं कि इन चप्पल और जूती को बनाने वाले कारीगर राजा के दहेज मे आये थे. उनके वंशज आज भी इस कला को आगे बढ़ा रहे है. चंबा की जूती और चप्पल, जिसे चंबा के राजा महाराजा भी बड़ी ही शान से पहनते थे, अब इसका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है. एक चंबा चप्पल की कीमत क्वालिटी और दस्तकारी के हिसाब से 250 रुपये से हजारों रुपये तक की हो सकती है.

चंबा चप्पल
चंबा चप्पल

चंबा रुमाल: चंबा रुमाल एक कशीदाकारी हस्तशिल्प (GI Tag to Chamba handkerchief) है, जिसे कभी चंबा साम्राज्य के पूर्व शासकों के संरक्षण में बढ़ावा दिया गया था. यह चमकीले और मनभावन रंग योजनाओं में विस्तृत पैटर्न के साथ विवाह के दौरान उपहार में दिए जाते हैं. 18वीं सदी में चंबा रूमाल तैयार करने का काम अधिक था. राजा उमेद सिंह (1748-1764) ने कारीगरों को प्रोत्साहन दिया था. 1911 में दिल्ली दरबार में चंबा के राजा भूरी सिंह ने ब्रिटेन के राजा को चंबा रूमाल तोहफे में दिया था. 1965 में पहली बार चंबा रूमाल बनाने वाली महेश्वरी देवी को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. रूमाल की कीमत उसकी गुणवत्ता पर निर्भर करती है, जो सौ से एक लाख रुपये तक में बिकता है.

चंबा रूमाल
चंबा रूमाल

कांगड़ा टी: कांगड़ा चाय हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में उगती (GI Tag Kangra Tea) है. 19वीं सदी के मध्य से कांगड़ा घाटी में चाय का उत्पादन हो रहा है. कांगड़ा चाय की गुणवत्ता को देखेते हुए इसे GI टैग दिया गया है. कांगड़ा घाटी की प्रसिद्ध चाय का बड़े पैमाने में निर्यात यूरोपीय देशों में होता है. यहां कांगड़ा चाय की खासी डिमांड है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने कई विदेश दौरों के दौरान कांगड़ा चाय को प्रमोट कर चुके हैं.

कांगड़ा चाय
कांगड़ा चाय

हिमाचली शॉल और टोपी: हिमाचली शॉल और टोपी पहाड़ी संस्कृति की एक (Himachali Shawl and Cap) पहचान है. यूं तो हिमाचल में कई प्रकार की शॉल और टोपी पाई जाती हैं. लेकिन कुल्लू और किन्नौर की शॉल और टोपी को GI टैग का दर्जा भी मिला हुआ है. ये शॉल और टोपी भेड़ की ऊन से बनती है. हिमाचल में इनका काफी चलन है और ये हिमाचल की संस्कृति को भी दर्शाती है. हिमचाल आने वाले पर्यटक भी हिमाचली शॉल और टोपी के दिवाने हैं.

हिमाचली शॉल और टोपी.
हिमाचली शॉल और टोपी.

कांगड़ा पेंटिग: कांगड़ा पेंटिंग कांगड़ा की कला (GI tag to Kangra painting) का बेजोड़ नमूना है, जिसका नाम पूर्व में कांगड़ा राज्य की एक रियासत के नाम पर रखा गया था. जिसने कला को संरक्षण दिया था. 18वीं शताब्दी के मध्य में बसोहली चित्रकला शैली के लुप्त होने के साथ ये कला प्रचलित हुई. बाद में ये कला इतनी प्रचलित हुई कि पहाड़ी पेंटिंग स्कूल को कांगड़ा पेंटिंग के रूप में जाना जाने लगा. हालांकि कांगड़ा पेंटिंग के मुख्य केंद्र गुलेर, बसोहली, चंबा, नूरपुर, बिलासपुर और कांगड़ा हैं. बाद में यह शैली मंडी, सुकेत, कुल्लू, अर्की, नालागढ़ और टिहरी गढ़वाल तक भी पहुंची और अब सामूहिक रूप से पहाड़ी पेंटिंग के रूप में जानी जाती है, जो 17 वीं और 19 वीं शताब्दी के बीच राजपूत शासकों द्वारा संरक्षित शैली को कवर करती है.

कांगड़ा पेंटिग.
कांगड़ा पेंटिग.

भारत की 365 वस्‍तुओं को मिला टैग: अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर WIPO की तरफ से जीआई टैग जारी किया जाता है. इस टैग वाली वस्‍तुओं पर कोई और देश अपना दावा नहीं ठोंक सकता है. भारत को अब तक 365 जीआई टैग्‍स मिल चुके हैं. जर्मनी के पास सबसे ज्‍यादा जीआई टैग्‍स हैं और उसने 9,499 वस्‍तुओं के लिए इस टैग को हासिल किया है. इसके बाद 7,566 जीआई टैग्‍स के साथ चीन दूसरे नंबर पर, 4,914 टैग्‍स के साथ यूरोपियन यूनियन तीसरे नंबर है. इसके अलावा 3,442 टैग्‍स के साथ मोल्‍डोवा चौथे नंबर पर और 3,147 जीआई टैग्‍स के साथ बोस्निया और हेरजेगोविना पांचवें नंबर पर हैं.

Last Updated :Nov 28, 2022, 2:52 PM IST
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