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Fathers Day 2022: पिता से सीखे सियासी सूत्र- अनुराग और विक्रमादित्य सहित राजनीति के आकाश में चमक रहे कई नेता पुत्र

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Published : Jun 18, 2022, 9:09 PM IST

Father and son in Himachal politics
हिमाचल की राजनीति में वंशवाद

राजनीति में पिता की अंगुली पकड़कर पुत्र कई गुर सीख जाते हैं. हालांकि राजनीति में वंशवाद पर बहस होती रही है, लेकिन हिमाचल में दिग्गज राजनेताओं के बेटे सियासत में भी सफल पारी खेल रहे हैं. इस समय देश की राजनीति में अनुराग सिंह ठाकुर एक बड़ा नाम हैं. वहीं, कांग्रेस के दिग्गज राजनेता और छह बार के सीएम स्व. वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह भी धीरे-धीरे राजनीति में पैठ बना रहे हैं. वे पहली बार विधायक (MLA Vikramaditya Singh) बने हैं.

शिमला: राजनीति में पिता की अंगुली पकड़कर पुत्र कई गुर सीख जाते हैं. हालांकि राजनीति में वंशवाद पर बहस होती रही है, लेकिन हिमाचल में दिग्गज राजनेताओं के (Father and son in Himachal politics) बेटे सियासत में भी सफल पारी खेल रहे हैं. इस समय देश की राजनीति में अनुराग सिंह ठाकुर एक बड़ा नाम हैं. उनके पिता प्रेम कुमार धूमल दो बार हिमाचल प्रदेश के सीएम रहे हैं. धूमल हमीरपुर से सांसद भी रहे हैं और उन्होंने ही हिमाचल के लिए अलग से हिमालयन रेजीमेंट की मांग उठाई थी. अब उनके बेटे अनुराग ठाकुर केंद्रीय मंत्री हैं. जिस हमीरपुर सीट से प्रेम कुमार धूमल सांसद रहे, उसी सीट से अनुराग ठाकुर अपनी सियासी पारी में चमक बिखेर रहे हैं.


वहीं, कांग्रेस के दिग्गज राजनेता और छह बार के सीएम स्व. वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह भी धीरे-धीरे राजनीति में पैठ बना रहे हैं. वे पहली बार विधायक बने हैं. विक्रमादित्य सिंह (MLA Vikramaditya Singh) सदन के भीतर और बाहर सरकार को जोरदार तरीके से घेरते हैं. वर्ष 2017 में जिस समय वीरभद्र सिंह प्रदेश के सीएम थे, उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र शिमला ग्रामीण की जनता को सरकारी निवास ओक ओवर में बुलाया. उस दौरान वीरभद्र सिंह ने अपने मतदाताओं से कहा कि वे विक्रमादित्य सिंह को चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं. उसके बाद विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण से चुनाव जीते और वीरभद्र सिंह ने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल लिया. वीरभद्र सिंह ने अर्की से चुनाव जीतकर रिकार्ड बनाया. इस तरह सदन में पिता-पुत्र की जोड़ी पहली बार देखी गई. विक्रमादित्य सिंह अपने पिता वीरभद्र सिंह को आदर्श मानते हैं और उन्हें ही अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं.


हिमाचल की राजनीति में कांग्रेस से ही एक कद्दावर नेता पंडित संतराम रहे हैं. उनके बेटे सुधीर शर्मा वीरभद्र सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. सुधीर शर्मा ने भी अपने पिता से ही राजनीति का ककहरा सीखा है. इसी कड़ी में एक नाम आशीष बुटेल का है. आशीष के पिता बीबीएल बुटेल हिमाचल विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं. उनके ही कार्यकाल में विधानसभा पेपरलेस हुई थी. आशीष बुटेल का कहना है कि उन्होंने पिता से ही जनसेवा का संस्कार पाया है. कांग्रेस के ही एक अन्य नेता सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी पठानिया इस समय विधायक हैं. सुजान सिंह वीरभद्र सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. उनके निधन के बाद भवानी सिंह पठानिया चुनाव मैदान में उतरे और जीत हासिल की. भवानी सिंह अपने पिता के साथ राजनीति में सक्रिय रहे.

वहीं, कांग्रेस सांसद चंद्र कुमार के बेटे नीरज भारती भी वीरभद्र सिंह सरकार में शिक्षा विभाग के सीपीएस रहे हैं. सिरमौर जिले के रेणुकाजी सीट से विधायक विनय कुमार भी अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. उनके पिता डॉ. प्रेम सिंह निरंतर रेणुकाजी सीट से विधायक रहे हैं. सिरमौर से ही कांग्रेस के कद्दावर नेता गुमान सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन चौहान ने भी पिता से ही राजनीति के गुर सीखे. हर्षवर्धन सिंह चौहान शिलाई से विधायक हैं. उनके पिता गुमान सिंह ने लगातार पांच बार चुनाव जीतने का रिकार्ड बनाया है. भाजपा की राजनीति में कुल्लू से कुंजलाल ठाकुर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. उनके बेटे गोविंद सिंह चौहान इस समय जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. कुंजलाल ठाकुर हिमाचल में दो बार कैबिनेट मंत्री रहे हैं. गोविंद सिंह ठाकुर पिता के राजनीतिक कार्यों में हाथ बंटाते रहे हैं. उन्हीं की प्रेरणा से वे राजनीति में आए.

वरिष्ठ मीडिया कर्मी उदय सिंह पठानिया का कहना है कि हिमाचल में पिता की सियासी पारी में बेटों ने हाथ बंटाया है. बेशक उन्हें पिता के राजनीतिक कद का लाभ मिला है, लेकिन संग-संग रहकर राजनीति के सूत्र सीखने में वे कामयाब रहे हैं. समाजशास्त्री ललित मेहता का कहना है कि परिवार के बड़े सदस्य के राजनीति में आने के बाद संतान स्वभाविक रूप से सियासत की तरफ आकर्षित होती है. हिमाचल का समाज ऐसा है कि वो भावनाओं को अधिक महत्व देता है. कई चुनाव इसके गवाह हैं. पिता ने पुत्र को राजनीतिक विरासत सौंपी तो जनता ने उन्हें भी वैसा ही प्यार दिया. फिर कोई बेटा अपने पिता जैसा बनने का सपना भी देखता है. ऐसे में राजनीति में पिता-पुत्र का रूप कई स्तर पर देखने को मिलता है. कई बेटे अपने पिता के राजनीतिक अभियान में केवल हाथ बंटाते हैं तो कई खुद भी राजनीति में सफल हो जाते हैं. उनके करियर को संवारने में पिता के सिखाए सूत्रों का भी अहम योगदान रहता है.

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