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हिमाचल के लाल राजमाह की विदेशों में मांग, 50 से ज्यादा वैरायटी के राजमाह की होती पैदावार

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Published : Jun 8, 2022, 9:15 AM IST

हिमाचल में पारंपरिक तरीके से उगाए जाने वाले राजमाह देश ही नहीं विदेशों में भी पसंद किए जाते हैं. इन लोकल राजमाह की खासियत यह है कि खाने में बेहद स्वादिष्ट तो होते हैं और जल्दी पक भी जाते हैं. अपने स्वाद के कारण ही पिछले कुछ सालों से ब्राजील और अमेरिका (Brazil and America) सहित कई देशों में लाल राजमाह की भारी मांग है.

हिमाचल का लाल राजमाह
हिमाचल का लाल राजमाह

शिमला: हिमाचल में पारंपरिक तरीके से उगाए जाने वाले राजमाह देश ही नहीं विदेशों में भी पसंद किए जाते हैं. इन लोकल राजमाह की खासियत यह है कि खाने में बेहद स्वादिष्ट तो होते हैं और जल्दी पक भी जाते हैं. अपने स्वाद के कारण ही पिछले कुछ सालों से ब्राजील और अमेरिका (Brazil and America) सहित कई देशों में लाल राजमाह की भारी मांग है. देश में कई प्रदेशों में लोग स्वादिष्ट लाल राजमाह खाने के शौकीन हैं.

लाजवाब स्वाद सबसे बड़ा कारण : हिमाचल के लोकल राजमा की खासियत इनका जल्द पकना और लाजवाब स्वाद है. साथ ही इनके सेवन से अमूमन पेश आने वाले गैस्ट्रिक ट्रबल नहीं होती. सबसे अहम पहलू इनका जैविक खेती के जरिए उत्पादन है. प्रदेश कृषि विभाग के पल्स एक्सपर्ट राजीव मिन्हास (Pulse Expert Rajeev Minhas) ने बताया कि वर्ष 2021-22 में प्रदेश में 2.5 लाख क्विंटल राजमाह की पैदावार हुई थी.

18 हजार हेक्टेयर पर खेती: प्रदेश के किसानों ने इस वर्ष करीब 18 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पर राजमाह की खेती की. उन्होंने कहा कि राजमाह की अधिकांश पैदावार 8 हज़ार मीटर से लेकर 20 हज़ार मीटर की ऊंचाई पर होती है. प्रदेश में राजमाह की करीब 35 से 40 रेसिस (डीएनए) हैं. लाल राजमाह की अभी तक 50 से अधिक वैरायटी भी ज्ञात हैं. विशेषज्ञ कहना है कि प्रदेश में राजमाह की खेती के लिए अधिकांश किसान पारंपरिक बीजों का ही प्रयोग करते हैं. ऐसे में सभी वैरायटी का अध्ययन करना काफी कठिन है.

किसानों को और जागरूक किया जाएगा: कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कृषि विश्वविद्यालय भी किसानों को राजमाह की खेती के लिए बीज और अन्य सहायता उपलब्ध करवाते है,लेकिन अधिकांश किसान पारंपरिक साधनों का ही प्रयोग करते हैं. उन्होंने कहा राजमाह की खेती और गुणवत्ता के बारे में किसानों को और जागरूक किया जाएगा, ताकि उत्पादन बढ़े और किसानों को आर्थिक लाभ भी हो.

200 रुपए किलो कीमत: हिमाचल में कुल्लू, मंडी, सिरमौर, चंबा, शिमला व किन्नौर में जैविक खेती के जरिए लाल रंग के राजमा उगाए जाते हैं. ये आकार में छोटे होते हैं और जल्द ही पक जाते हैं. यह खरीफ की फसल में होते हैं. कई बार किसान इन्हें मक्का की फसल के साथ बोते हैं. पहाड़ी राजमा की कीमत वैसे तो 120 रुपए किलो से अधिक है, लेकिन प्रदेश से बाहर की मंडियों में इनकी कीमत 150 से 200 रुपए प्रति किलो भी मिलती है. मंडी के थुनाग, जंजैहली आदि के किसान बड़ी मात्रा में लाल रंग के राजमा उगाते हैं. इसके अलावा कुल्लू व चंबा में भी किसानों का इस तरफ रुझान बढ़ा. इनकी खेती के दौरान किसी तरह की रसायनिक खाद नहीं डाली जाती. गोबर व केंचुआ खाद का प्रयोग किया जाता है.

शिमला में जैविक खेती को लेकर प्रदर्शनी: बता दें कि हिमाचल प्रदेश में सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं चलाती हैंय जैविक उत्पादों को और बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार का कृषि विभाग शिमला शहर में जैविक उत्पाद बिक्री केंद्र स्थापित कर रहा है. इन केंद्रों में हिमाचल में पैदा किए जा रहे जैविक उत्पादों को लेकर जानकारी भी उपलब्ध हैं. इन दिनों रिज मैदान पर भी जैविक खेती के उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई गई है. इसमें भी लाल राजमाह काफी पसंद किए जा रहे हैं.
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