मंडी: इन दिनों मंडी शहर का समय पिछले 2 सालों से खराब चल रहा है. हम बात कर रहे हैं मंडी शहर की शान कहे जाने वाले इंदिरा मार्केट में बने घंटाघर (Mandi Historical Ghantaghar) की. इंदिरा मार्केट के बीचों बीच स्थित घंटाघर बंद (Historical Ghantaghar not working) पड़ा है. यह ऐतिहासिक धरोहर इन दिनों केवल सेल्फी लेने के लिए ही बढ़िया स्थल है और इसमें लगी चार घड़ियों की सुइयां पिछले 2 सालों से ठहर गई हैं.
पूर्व में मंडी शहर के ही रहने वाले मंगवाई निवासी सन्नी ने घंटाघर की इन सूइयों को ठीक किया था, लेकिन उसके बाद घड़ियों को आज दिन तक ठीक नहीं किया गया है. मंडी शहर के स्थानीय निवासियों का कहना है कि यूं तो घंटाघर मंडी शहर की शान है, लेकिन कोई भी घंटाघर की सुध नहीं ले रहा है.
स्थानीय निवासी हेमराज मल्होत्रा का कहना है कि मंडी नगर परिषद से नगर निगम बन गया है, लेकिन इसके बावजूद भी घड़ियों को ठीक करवाने की जहमत नहीं उठाई जा रही है. वहीं, इंद्रिरा मार्केट एसोसिएशन के प्रधान अशोक शर्मा ने जिला प्रशासन व प्रदेश सरकार से इस घंटाघर को आधुनिक तरीके से ठीक करवाने की मांग की है, ताकि घंटाघर व इंदिरा मार्केट की सुंदरता बरकरार रहे.
वहीं, खराब घंटाघर की खराब पड़ी घड़ियों के बारे में नगर निगम कमिश्नर (Municipal Commissioner) राजीव कुमार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि खराब हो चुकी घड़ियों को ठीक करवाने के लिए नगर निगम ने बाहरी राज्य से सामान मंगवाया है. एक सप्ताह के भीतर घंटाघर की घड़ियों को ठीक करवा दिया जाएगा.
बता दें कि 1939 को मंडी रियासत के तत्कालीन राजा जोगेंद्र सेन की मौजूदगी मेंस्टेटस फोर्सज मिलिटरी एडवाइजरी इन चीफ सर आर्थर एम मिल्स ने घंटाघर का शुभारंभ किया था. जहां पर घंटाघर का निर्माण किया गया है, इसके चारों ओर इंदिरा मार्केट (Indira Market Mandi) की दुकानें सजी हैं, जिनमें 234 दुकानें हैं. इंदिरा मार्केट का निर्माण पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम (Former Union Minister Pandit Sukh Ram) ने करवाया था, वहीं, इस ऐतिहासिक स्थल की बात की जाए तो इसका इतिहास 300 वर्ष से अधिक पुराना है.
बता दें कि इस प्राचीन घंटाघर में जिस तकनीक को इस्तेमाल किया गया है उसकी मरम्मत करने वाले कारीगर सिर्फ कोलकता में ही मिलते हैं. इन कारीगरों को पहले पैसे भेजने पड़ते हैं, जिसके बाद ही यह घड़ी को चेक करने और फिर उसे ठीक करने के लिए यहां आते हैं.
आज हर व्यक्ति की जेब में समय देखने के लिए मोबाइल है लेकिन घंटाघर की घड़ियों पर नजर डालकर समय देखने का शौक लोगों को आज भी है. यही कारण है कि इस घंटाघर का महत्व आज भी बरकरार है. वहीं, घर घंटे इससे निकलने वाली 'टन' की आवाज भी लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर देती है, लेकिन बीते कुछ महीनों से यह घंटाघर (Historical Ghantaghar not working) इन सबसे महरूम अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है.
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