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Baba Nahar Singh Temple: 15 सालों बाद बदला बाबा नाहर सिंह का सिंहासन, 16 लाख की लागत से कोलापुर के कारीगरों ने किया तैयार

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Published : Jun 7, 2022, 6:05 PM IST

जिला मुख्यालय बिलासपुर में धौलरा की पहाड़ियों (Baba Nahar Singh Temple Bilaspur) पर बाबा नाहर सिंह का खूबसूरत मंदिर है. बाबा नाहर सिंह के सिंहासन को लगभग 15 सालों बाद बदला गया है. महाराष्ट्र के कोलापुर क्षेत्र के कारिगरों ने बाबा नाहर सिंह का सिंहासन तैयार किया है. यहां हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं.

Baba Nahar Singh Temple Bilaspur
बाबा नाहर सिंह मंदिर

बिलासपुर: बिलासपुर के आराध्य देव बाबा नाहर सिंह के सिंहासन को लगभग 15 सालों बाद बदला गया है. महाराष्ट्र के कोलापुर क्षेत्र के कारिगरों ने बाबा नाहर सिंह का सिंहासन तैयार किया है. जिसे पूरी तरह से चांदी की आधुनिक कढ़ाई से पिरोया गया है. इसे बाबा नाहर सिंह मंदिर कमेटी की ओर से बनाया गया है. जिसको बनाने में लगभग तीन माह लगे हैं और इसको 16 लाख रूपये की लागत से (Baba Nahar Singh Temple Bilaspur) तैयार करवाया गया है. बिलासपुर शहर के इतिहास में पहली बार ऐसा है कि किसी आराध्य देव के सिंहासन को देश के नामी कारिगरों से तैयार करवाया गया हो. वहीं, इस सिंहासन का वजन 16 किलो के करीब बताया जा रहा है. जानकारी के अनुसार इससे पहले सिंहासन को 2007 में बदला गया था. अभी तक 1950 से बने इस मंदिर में तीन बार सिंहासन को बदला गया है.

बाबा नाहर सिंह मंदिर का इतिहास: गौरतलब है कि जिला मुख्यालय बिलासपुर में धौलरा की पहाड़ियों पर बाबा नाहर सिंह का खूबसूरत मंदिर है. प्रतापी राजा दीपचंद ने ही बाबा नाहर सिंह का मंदिर धौलरा में अपने महल के समीप बनवाया था. यहां हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं. कहा जाता है कि बाबा नाहर सिंह कहलूर रियासत के प्रतापी राजा दीपचंद की रानी कुमकुम देवी के साथ कुल्लू से बिलासपुर आए थे. राजा दीपचंद ने 1653 से 1665 तक कहलूर रियासत का राजकाज संभाला था. राजा दीपचंद जब कुल्लू में कुमकुम राजकुमारी को विवाह कर लाने गए थे तो विदाई के समय राजकुमारी की डोली एकाएक भारी हो गई और कहार डोली को नहीं उठा पाए. जोर आजमाइश के बाद भी डोली अपनी जगह से हिली तक नहीं.

बाबा नाहर सिंह मंदिर

राजा ने अपने राजपुरोहित से इसका रहस्य पूछा तो पुरोहित ने कहा कि देवता नाराज हैं और यह देवता रानी के साथ कहलूर जाना चाहते हैं. इस बात पर राजा ने हामी भर दी और डोली एकाएक फूलों की तरह हल्की हो गई. कहते हैं कि उसके बाद बाबा नाहर सिंह वीर की चरण पादुका राजकुमारी कुमकुम देवी की डोली के साथ कहलूर यानि बिलासपुर आई थी. कुल्लू रियासत के राजा के महल के साथ ऊपर की तरफ बाबा नाहर सिंह का प्राचीन मंदिर आज भी दर्शकों व श्रद्धालुओं का आकर्षण केंद्र बना हुआ है. कुल्लू में भी इसी देवता की पूजा लोग श्रद्धा और विश्वास से करते हैं. बाबा नाहर सिंह कुल्लू के राजपरिवार के भी कुल देवता हैं.

वहीं, कई श्रद्धालु यहां नंगे पांव माथा टेकने आते हैं. बाबा को आटे का मीठा रोट, सुपारी, गूगल धूप, लौंग इलाईची पसंद है. नई फसल आने पर लोग यहां बाबा के मंदिर में रोट चढ़ाते हैं और मन्नत मांगते हैं. शादी, पुत्र जन्म की बधाई जात्रा लेकर भी लोग यहां नाचते-गाते पहुंचते हैं. बाबा नाहर सिंह को वीर बजिया के रूप में भी भक्तजन मानते हैं. धार्मिक ग्रंथों में 52 वीरों का वर्णन मिलता है. उन 52 वीरों में से बाबा नाहर सिंह भी एक है.

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