सावधान ! इस तरह साइबर ठगों के नियंत्रण में होगा आपका फोन और खाता हो जाएगा खाली

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Published : Jan 27, 2021, 10:52 PM IST

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जितनी तेजी से तकनीकी का विकास हुआ है उतनी ही तेजी से तकनीकी आधारित फ्राॅड ने भी पैस पसारे हैं. शासन-प्रशासन के लाख प्रयास के बावजूद साइबर अपराध है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा. अब अपराधियों के निशाने पर सिर्फ भोले-भाले लोग ही नहीं, बल्कि ऐसे पढ़े-लिखे लोग भी हैं जो कंप्यूटर और मोबाइल पर तमाम तरह के एप का इस्तेमाल करते हैं.

रांची : साइबर अपराधी लगातार नए-नए प्रयोग कर लोगों के खातों में सेंध लगा रहे हैं. इन दिनों साइबर अपराधियों ने 'एनी डेस्क' नाम के एप को हथियार बना लिया है. यह एप मोबाइल में डालते ही संबंधित मोबाइल साइबर अपराधियों के कंट्रोल में चला जाता है. इसके बाद ई-वॉलेट, यूपीआइ एप सहित बैंक खातों से जुड़े सभी एप को आसानी से ऑपरेट कर रुपये उड़ा रहे हैं.

इस एप को साइबर अपराधी मदद के नाम पर डाउनलोड करवाते हैं. इसके बाद पूरे मोबाइल सिस्टम पर कब्जा जमा लेते हैं. इसके लिए साइबर अपराधी तब लोगों को कॉल करते हैं, जब कोई बैंक से मदद के लिए गूगल पर टोल-फ्री नंबर ढूंढकर कॉल करता है. कॉल करने पर मदद के नाम पर झांसे में ले लेते हैं. राजधानी रांची सहित झारखंड के कई शहरों से इस तरह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. साइबर अपराधियों ने अपने नंबर टोल-फ्री नंबरों की जगह कस्टमाइज्ड कर रखा है. इससे कोई तकनीकी मदद या बैंक सेवाओं से संबंधित कार्य के लिए लोग कॉल कर साइबर अपराधियों के झांसे में आ रहे हैं. कॉल करने वाले अपराधी को बैंक अधिकारी समझकर बातचीत करते हैं.

साइबर विशेषज्ञ राहुल कुमार से ईटीवी भारत की विशेष बातचीत.

इस तरह से हुई एनी डेस्क से ठगी

एनी डेस्क के माध्ययम से ठगी का मामले सामने आया है. यहां एक पीड़ित ने ऑनलाइन शॉपिंग, मूवी टिकट समेत अन्य खरीदारी के लिए गूगल से किसी कंपनी के प्रतिनिधि का नंबर निकाला. लेकिन यह नामी वेबसाइट से मिलती-जुलती फर्जी वेबसाइट पर साइबर ठग का नंबर था. इसके बाद साइबर ठग ने कंपनी का प्रतिनिधि बनकर उसे झांसे में ले लिया और खाते से संबंधित जानकारी हासिल करने के बाद अकाउंट से पूरी रकम ही उड़ा दी.

साइबर अपराध से बचें
साइबर अपराध से बचें

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मांगा जाता है नौ अंकों का कोड

इस एप को डाउनलोड करने के बाद नौ अंकों का एक कोड जनरेट होता है. जिसे साइबर अपराधी शेयर करने के लिए कहते हैं. जब यह कोड अपराधी अपने मोबाइल फोन में फीड करता है, तो संबंधित व्यक्ति के मोबाइल फोन का रिमोट कंट्रोल अपराधी के पास चला जाता है. वह उसे एक्सेस करने की अनुमति ले लेता है. अनुमति मिलने के बाद अपराधी धारक के फोन के सभी डाटा की चोरी कर सकता है. इसके माध्यम से यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआइ) सहित अन्य वॉलेट से रुपये उड़ा लेते हैं. रांची के जाने-माने साइबर एक्सपर्ट राहुल कुमार के अनुसार, साइबर अपराधियों से अपने आप को बचाने के लिए सावधान रहना जरूरी है.


इस तरह से करते हैं ठगी
साइबर अपराधी इस स्क्रीन शेयरिंग एप का उपयोग कर रहे हैं. ठगों की ओर से लिंक मैसेज या अन्य किसी माध्यम से टारगेट को यह स्क्रीन शेयरिंग इंस्टॉल करने के लिए एप्लीकेशन भेजा जाता है. इसको इंस्टॉल करते ही आपके फोन को ये ठग रिमोर्ट एक्सेस पर ले लेते हैं. अब आपके फोन में कुछ भी गोपनीय नहीं रहता, जो भी आपके फोन से आप करते हैं वह ठगों को दिखता है. चाहे वह क्रेडिट कार्ड, एटीएम कार्ड पिन की जानकारी हो या कोई ट्रांजेक्शन के लिए ओटीपी, सब कुछ ठगों से शेयर हो जाता है. इसके बाद टारगेट का खाता खाली करने में इन्हें ज्यादा समय नहीं लगता.

एसे करें इन ठगों से बचाव

  • किसी के कहने पर रिमोर्ट एक्सेस एप इंस्टॉल न करें.
  • किसी भी एप को डाउनलोड करने से पहले उसकी उपयोगिता पर जरूर विचार करें.
  • अपने बैंक, डेबिट, क्रेडिट कार्ड, ई-वॉलेट की जानकारी मोबाइल पर आए ओटीपी और वैरीफिकेशन कोड शेयर न करें.
  • पेटीएम के केवायसी अपडेट के लिए पेटीएम ऐप पर दिए गए नजदीकी सेंटर पर संपर्क करें.
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