करनालः राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर एवं भारतीय गेहूं एवं जौं अनुसंधान संस्थान (Wheat and Barley Research Institute Karnal), करनाल के संयुक्त तत्वाधान में गेहूं की 22 नई किस्मों का अनुमोदन किया गया है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 29 से 31 अगस्त तक आयोजित अखिल भारतीय गेहूं एवं जो अनुसंधानकर्ताओं की 61वीं संगोष्ठी में इन किस्मों को मान्यता दी गई.
किसानों के लिए अनुमोदित नई किस्मों की जानकारी देते हुए राष्ट्रीय गेहूं एवं जो अनुसंधान संस्थान करनाल के निदेशक डॉ ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि पिछले वर्ष की प्रगति की समीक्षा करने और 2022-23 के लिए अनुसंधान गतिविधियों का खाका तैयार करने के लिए यह बैठक आयोजित की गई. इसमे समिति ने 27 प्रस्तावों पर विचार किया और सर्वसम्मति से उनमें से 24 को मंजूरी दी गई.
उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के लिए कुल 9 किस्मों की पहचान की गई तथा एक किस्म का क्षेत्र विस्तार किया गया. गेहूं की किस्मों में उच्च उर्वरता एवं अगेती बुवाई के लिए करनाल के गेहूं एवं जौं अनुसंधान संस्थान से 5 किस्में अनुमोदित की (new varieties of wheat) गई हैं. डीबीडब्ल्यू 370, डीबीडब्ल्यू 371, डीबीडब्ल्यू 372, पीबीडब्ल्यू 872, सिंचित एवं समय से बुवाई के लिए पीबीडब्ल्यू 826, सीमित सिंचाई एवं समय से बुवाई के लिए एचडी 3369, एचआई 1653, एचआई 1654 तथा जैव प्रोद्योगिकी के एमएबीबी तकनीक से विकसित एचडी 3406 की भी पहचान की गयी.
भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल द्वारा विकसित डीबीडब्ल्यू 303 को मध्य क्षेत्र में उच्च उर्वरता-अगेती बुआई के लिए क्षेत्रफल विस्तार के लिए प्रस्तावित किया गया है. डॉ ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि अनुमोदित नई किस्में आयरन और जिंक से भरपूर होंगी तथा इनसे उत्पादन भी अधिक मिलेगा. उन्होंने कहा कि जल्द ही यह किस्में किसानों को उपलब्ध हो जाएंगी.
उन्होंने कहा कि किसानों के लिए गेहूं की उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों के विकास के लिए गहनता से कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है. निर्यात के मानदंडों के अनुरूप गेहूं उत्पादन को बढ़ावा देने तथा किसानों को जागरूक करने पर तेजी से काम किया जा रहा है. यही कारण है कि देश आज अनाज के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर है. उन्होंने आने वाले समय में गेहूं के उत्पादन को और बढ़ने की आशा भी जताई.
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