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Father's Day 2023: वृद्धाश्रम में पिता का छलका दर्द, कहा- बुढ़ापे में बच्चे नहीं करते सम्मान तो घर से चले आए

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Published : Jun 18, 2023, 9:40 PM IST

18 जून को देशभर में फादर्स डे मनाया जा रहा है. जिस तरह से मां के होने से जिंदगी सरल और घर जन्नत बन जाती है. ठीक उसी तरह पिता के होने से आपकी जिंदगी संवर जाती है. पिता वो है जो हर कदम पर आपकी हिम्मत बन जाता है. बच्चों को लगता है कि उनके पापा जितना कठोर दुनिया में कोई नहीं. बच्चे अपने पिता को ज्यादा कठोर समझ लेते हैं और बड़े हो जाने पर उनके साथ बुरा बर्ताव करते हैं. वो इतने भी कठोर तो नहीं कि आप उनको खुद से दूर कर लें.

Haryana Father Day
पितृ दिवस स्पेशल

Father's Day 2023:वृद्धाश्रम में पिता का छलका दर्द, कहा- बुढ़ापे में बच्चे नहीं करते सम्मान तो घर से चले आए

करनाल: बच्चों के दुनिया में आने से पहले और उनकी पूरी जिंदगी केवल माता-पिता का ही ऐसा रिश्ता है, जो निस्वार्थ भाव से अपने बच्चों को प्यार करते हैं और अपने बच्चों की चिंता करते हैं. एक पिता बच्चे का भविष्य संवारने के लिए पूरी जिंदगी लगा देता है. बच्चों के लिए आशियाना बनाने में पिता अपने खून पसीने की एक-एक बूंद से उस आशियाने की ईंट को सींचता है. इसके बावजूद भी हमारे समाज में वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ती जा रही है.

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आज बेघर है बेबस पिता: अपनी संतान के लिए आशियाना बनाने वाले पिता आज खुद वृद्धाश्रम के सहारे जीवन गुजारने के लिए मजबूर हैं. इतना ही नहीं वो पिता जो अपने बच्चों को बहादुरी के किस्से सुनाते हैं. अपने बच्चों की हिम्मत बनते हैं. वो पिता अपने बच्चों के बड़े हो जाने पर उनका बुरा बर्ताव करने पर इतना टूट जाते हैं, कि वृद्धाश्रम में वो प्रार्थना करते हैं कि उन्हें इस संसार से मुक्ति मिल जाए. आज के माता-पिता इतने बेबस क्यों हो गए हैं. जिन बच्चों के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष किया धूप छांव भूख प्यास कुछ न देखा आज उनको उन्हीं के अपनों ने इतना लाचार क्यों बना दिया. कि उनको अपने लिए भगवान से मौत की दुआ मांगनी पड़ रही है.

बच्चों का व्यवहार असहनीय: पितृ दिवस के अवसर पर ईटीवी भारत की टीम करनाल में निर्मल धाम आश्रम पहुंची तो यहां मौजूद पिताओं के दर्द छलक गया. कोई पिता बहू-बेटे के ताने सुनकर आश्रम में रहने को मजबूर है तो कोई पिता अपने बेटों के गलत व्यवहार से दुखी है. मां के पैरों में अगर स्वर्ग है, तो पिता भी उस स्वर्ग का रास्ता होता है. लेकिन कुछ कलयुगी औलाद ऐसी भी है, जो अपने माता-पिता को घर से बाहर निकाल देते हैं. बुजुर्ग दर-दर भटकने पर मजबूर हो जाते हैं.

वक्त के आगे बेबस पिता: करनाल का निर्मल धाम ऐसे ही बुजुर्गों से भरा हुआ है, उन्हें या तो उनके बच्चों ने घर से बाहर निकाल दिया. या फिर किसी की अपने पिता से ही नहीं बन पाई. कोई अपना अपमान नहीं सह पाया, तो कोई अपना स्वाभिमान अपने बच्चों के कदमों में गिरवी नहीं रख पाया. वक्त के थपेड़ों ने इन बुजुर्गों को इतना मजबूत बना दिया है कि अगर परिवार की याद भी आती है. तो आंसुओं का घूंट अंदर ही अंदर पी जाते हैं और चेहरे पर एक मुस्कुराहट नजर आती है. लेकिन कुछ बुजुर्ग ऐसे भी हैं, जो अपने परिवार के साथ रहना चाहते हैं लेकिन उन्हें लेने के लिए कोई नहीं आता.

फादर्स डे पर पिता की आंखें नम: आज फादर डे पर सभी अपने पिता के साथ सेल्फी क्लिक करके सोशल मीडिया पर पोस्ट करेंगे और सम्मान का दिखावा करेंगे. लेकिन असली सम्मान उनका बुढ़ापे में किया जाना चाहिए. ऐसी ही दर्द भरी दास्तां वृद्धाश्रम के बुजुर्गों की जुबानी, पढिय़े और सोचिए, इनका क्या कसूर था. आज ये किस हाल में अपनी जिंदगी को बेबस तरीके से जीने को मजबूर हो गए हैं.

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'बुढ़ापे की लाठी तो नहीं बन पाया, लेकिन नशेड़ी बन गया': देवराज का कहना है कि वो दिल्ली से 12 साल पहले करनाल के वृद्धाश्रम में आ गए हैं. उनके परिवार में उनकी पत्नी और लड़का है. जब वो नोएडा में काम करते थे, तो उनकी हालत बेहद खराब हो गई थी. हालत खराब थी काम मुश्किल से करते थे, तो बहू-बेटे ने उनके साथ मारपीट करनी शुरू कर दी. जिसके बाद कोई पूछने वाला नहीं था. एक दिन उनके भाई का फोन उनको आया और उन्होंने वृद्धाश्रम में बुला लिया. भरा परिवार होने के बावजूद भी वृद्धाश्रम में जीवन जीना पड़ा.

'बच्चों ने जलील किया': बेबस पिता का कहना था कि उनका बेटा उनके बुढ़ापे की लाठी न बन सका. वो तो खुद लाठी के सहारे पर था. क्योंकि उसे शराब की बुरी लत थी. उन्होंने कहा कि मेरे बेटे ने मेरे साथ क्या-क्या किया. वो सिर्फ मैं ही जानता हूं. मेरे लड़के और मेरी पत्नी ने मेरे ही माता-पिता के सामने मुझे जलील कर डाला. जो मेरे लिए असहनीय था. मैं अपनी मां से बहुत प्यार करता था. अपनी मां के पास जाकर रोता था. मेरी मां भी मेरी आपबीती सुनकर मुझे गले से लगाकर रोती थी. मैंने तो अपने माता-पिता की खूब सेवा की लेकिन मेरी औलाद ने मुझे घर से निकलने को मजबूर कर दिया.

'माता-पिता की बहुत याद आती है': उन्होंने नम आंखों से कहा कि जैसा बेटा मेरा है, भगवान ऐसा बेटा किसी को न दे. उन्होंने कहा कि वो आज भी अपने माता-पिता को याद करते हैं. उनको अपने माता-पिता की कमी खलती है. उन्होंने कहा कि जो भी मेरे अपने थे वो सब मर चुके हैं. अब तो इस संसार में मेरा कोई नहीं है. भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि वो मुझे भी अपने चरणों में जगह दे.

'औलाद का ऐसा व्यवहार बर्दाश्त नहीं हुआ': आश्रम में इस दौरान मोहनलाल से भी हमारी टीम की मुलाकात हुई. मोहनलाल ने बताया कि वो भी दिल्ली के से ही यहां पर आए हैं. उनको आश्रम में चार साल हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि वक्त ने हालात ऐसे पैदा कर दिए की आज वृद्धाश्रम में आना पड़ा है. घर में हालात कुछ ऐसे थे कि मतभेद पैदा हो गए. उन्होंने कहा जहां पर मान सम्मान नहीं, प्यार नहीं वहां रहना नहीं चाहिए. घर में रोटी के टुकड़ों के अलावा मान सम्मान भी जरूरी होता है जीन के लिए. उन्होंने कहा कि जब बच्चे ही माता-पिता के खिलाफ खड़े हो जाएं तो वहां माता-पिता की इज्जत ही क्या.

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'हालात ने बेबस बनाया': उन्होंने कहा कि नवजात को क्या पता कि उनके पिता उनके लिए क्या-क्या करते हैं. इतना कठोर तप कर उनका पालन पोषण करते हैं. बच्चों के लिए माता-पिता संसार का हर वो सपना देखते हैं. जिसमें उनका बच्चा खुश रहना चाहता है. वो पिता पूरा कर सके. हमारे बच्चों को आज हमारे बिना खुशी मिलती है तो हम वृद्धाश्रम आने को भी तैयार हो गए हैं. जिंदगी का हर पड़ाव देखा है. पर बच्चे ही खिलाफ खड़े हो जाएं, तो माता-पिता जीते जी मर जाते हैं.

पिता का छलका दर्द:उन्होंने कहा कि मैंने जिंदगी में अपने बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश की. जिंदगी भर संघर्ष किया. बड़ी मुसीबतों से घर की एक-एक ईंट को संजोया और एक प्यारा सा घर बनाया. लेकिन बड़े होते ही बच्चों ने ऐसा व्यवहार किया की हर रोज सीना फटने लगा था. जिसके बाद ये एहसास हुआ कि मैंने औलाद को पैदा करके जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी. अपनी दास्तां सुनाते हुए एक पिता का दर्द ऐसा छलका कि आँसुओं का सैलाब कहीं जो छुपा के रखा था, वो तूफान की तरह बाहर आ गया.

'घरवाले कहते हैं कमाकर लाओ': बुजुर्ग कुलवीर करीब छह साल से वृद्धाश्रम में रह रहे हैं. कुलवीर का कहना है कि मेरे घरवाले कहते हैं कि कमा कर लाओ. शरीर बूढ़ा हो गया है. उनकी उम्र 78 साल है. वो कहते हैं कि मुझसे इस उम्र में अब काम नहीं होता. कुलवीर ने बताया कि उनका एक बेटा और दो बेटियां है. उन्होंने बताया कि उनका परिवार काफी बड़ा है. वो परिवार के साथ रहना चाहते हैं लेकिन परिवार वाले एक ही डिमांड करते हैं कि कमाकर लाओ. लेकिन काम नहीं हो पाता है. उन्होंने बताया कि उनसे मिलने के लिए उनके पोते-पोती आते हैं. उन्होंने कहा कि कभी न कभी उनके मन में भी सवाल आता होगा कि उनके दादू यहां पर क्यों है. लेकिन वो बच्चे हैं तो क्या ही बोल पाएंगे. कुलवीर का कहना है कि न तो उनकी पत्नी ने और न ही उनके बच्चों ने कभी उनको घर आने के लिए कहा.

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वृद्धाश्रम में 100 से ज्यादा बुर्जुग: निर्मल धाम के संचालक ने बताया कि यहां पर 100 से भी ज्यादा बुजुर्ग हैं. निर्मल धाम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता है, कि किसी बुजुर्ग को किसी तरह की दिक्कत ना हो. सत्संग होता है, बुजुर्ग प्यार प्रेम से रहते हैं. लंगर की व्यवस्था रहती है. बुजुर्गों को कमरे में भी लंगर पहुंचाया जाता है. किसी ना किसी बुजुर्ग की कोई तो मजबूरी है, जिसकी वजह से वे आज वृद्धाश्रम में है. कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चों को अपनी गलती का अहसास होता है और वे अपने पिता को वापस लेने आ जाते हैं. निर्मल धाम का भी लक्ष्य यही है कि बुजुर्ग अपने परिवार के बीच रहे.

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