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अधर में लटका पंच रथ शैली से निर्मित प्राचीन शिव मंदिर जीर्णोद्धार, देखें रिपोर्ट

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Published : Nov 15, 2019, 11:29 PM IST

kalayat shiv temple renovation

बचपन में आपने कई किस्से और कहानिंया सुनी होंगी. कई बार दादी ऋषि मुनियों के श्राप के कहानी सुनाती थीं जिनमें पति ऋषि गोतम के श्राप से अहिल्या पत्थर बन गई थी जिनका उद्धार भगवान राम के चरण कमलों से हुआ है. ऐसा ही एक किस्सा कैथल जिले के कलायत से जुड़ा है. यहां राजा राजा शालीवाहन ने श्राप से मुक्त होकर एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया था लेकिन ये मंदिर आज धूल फांक रहा है.

कैथल: कलायत श्री कपिल मुनि धाम परिसर में सातवीं-आठवीं शताब्दी में निर्मित उत्तरी भारत के प्राचीन शिव मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य रुक गया है. ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण से जुड़े इस कार्य को कुछ माह पहले शुरू किया गया था. कलायत के युवा शिल्पकार अशोक धीमान ने इसका प्रारूप तैयार किया था.

इसके तहत संपूर्ण मंदिर के क्षतिग्रस्त हिस्से का 9 हिस्सों में कायाकल्प करना था. शिल्पकार ने करीब 350 ईंटों को विशेष तरह से तराश कर एक हिस्सा तैयार भी कर दिया था. इसे शीर्ष अधिकारियों की अनुमति के बाद मंदिर के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटाकर स्थापित करना था. इसी बीच अचानक शिल्पकार को काम बंद करने के निर्देश मिल गए. जिसके चलते उसे कार्य रोकना पड़ा. प्राचीन मंदिर पर की गई नक्काशी के अनुसार ही भट्ठे पर ईंटों को बनवाया था.

अधर में लटका पंच रथ शैली से निर्मित प्राचीन शिव मंदिर जीर्णोद्धार, देखें रिपोर्ट

श्राप से मुक्ति के बाद मंदिर का निर्माण
कलायत में राजा शालीवाहन द्वारा सातवीं-आठवीं शताब्दी में उक्त शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया था. किंवदंती है कि विशेष श्राप से श्री कपिल मुनि सरोवर में मुक्ति पाने से प्रसन्न राजा ने शिवालय निर्माण का कार्य किया था. भारत में इसे विशेष धरोहर के रूप में जाना जाता है.

बिना चूना, मिट्टी के बना शिवालय
उत्तर भारत का अजूबा कहे जाने वाला प्राचीन शिवालय बिना चूना और मिट्टी के तैयार किया गया है, प्राचीन काल के शिल्पकारों ने हुनर से ईंटों को तराशते हुए मंदिर का मजबूती से निर्माण किया गया. ये शिव मंदिर सांख्य दर्शन प्रवर्तक भगवान कपिल मुनि मंदिर सरोवर तट पर स्थित पंचरथ शैली से निर्मित है.

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हजारों साल की गवाह ये धरोहर अब धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है. भारत में कई मंदिर धीरे-धीरे खंडहर होते जा रहे उनमें से एक सातवीं-आठवीं शताब्दी में बना उत्तरी भारत का अजूबा प्राचीन शिव मंदिर भी है. कुछ दिन पहले इस मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू तो हुआ लेकिन किन्हीं कारणों से फिर से रूक गया.

सरकार का नहीं ध्यान

श्री कृष्ण गीता उपदेश की उत्पत्ति का गवाह माने जाने वाला श्री कपिल मुनि तीर्थ पर्यटन का हब नहीं बन पाया. भारत देश में यह कोई पहला मंदिर नहीं जो अपनी पहचान खोता जा रहा हो और भी कई मंदिर इसी तरह खंडर में तब्दील हो गए हैं. संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रीय धरोंहरों का गुणगान करने वाली सरकारों का भी अपनी मिटती जा रही विरासतों की ओर कोई ध्यान नहीं है

Intro:अधर में लटका पंच रथ शैली से निर्मित प्राचीन शिव मंदिर जीर्णोद्धार कार्य

भारतीय पुरातत्व विभाग और शिल्पकारों के बीच तालमेल न बनने से रुका जीर्णोद्धार 

विश्व में उत्तरी भारत के अजूबे के नाम से प्रसिद्ध है शिव मंदिरBody:  कलायत श्री कपिल मुनि धाम परिसर में सातवीं-आठवीं शताब्दी में निर्मित उत्तरी भारत के अजूबे प्राचीन शिव मंदिर का जीर्णोद्धार का कार्य रुक गया है। ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण से जुड़े इस कार्य को कुछ माह पहले शुरू किया गया था। कलायत के युवा शिल्पकार अशोक धीमान ने इसका प्रारूप तैयार किया था। इसके तहत संपूर्ण मंदिर के क्षतिग्रस्त हिस्से का 9 पार्ट में कायाकल्प करना था। शिल्पकार ने करीब 350 ईंटों को विशेष तरह से तराश कर एक पार्ट तैयार कर दिया था। इसे शीर्ष अधिकारियों की अनुमति के बाद मंदिर के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटाकर स्थापित करना था। इसी बीच अचानक शिल्पकार को कार्य बंद करने के निर्देश मिल गए। जिसके चलते उसे कार्य रोकना पड़ा। अशोक धीमान ने बताया कि वास्तु स्थिति की रिपोर्ट देश की राजधानी स्थित विभागीय महानिदेशक कार्यालय में भेजी गई है। ऊपरी निर्देशों अनुसार कार्य को शुरू किया जाएगा। उन्होंने बताया कि प्राचीन मंदिर पर की गई नक्काशी के अनुसार ही उसने भट्ठे पर र्ईंटों को तैयार करवाया था। उधर भारत की सांस्कृतिक विरासत से जुड़े कार्य के रुक जाने से लोग हताश हैं। इनका कहना है कि अरसे से तेजी से धरोहर अपनी पहचान खोती जा रही है। यहां तक की जिस तरह से तराशी गई र्इंट खराब हो रही थी उससे धरोहर पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। भारतीय सभ्यता के इस हिस्से के समुचित संरक्षण के लिए केंद्र सरकार को हालातों से रूबरू करवाया गया था। इसके उपरांत योजना भारतीय पुरातत्व विभाग ने तैयार की थी। विशेष प्रयोग करते हुए ऐसे शिल्पकार को तलाशा गया था जो हू-ब-हू प्राचीन काल की ईंटों का स्वरूप तैयार कर सके। इसके लिए विभाग को बेहद जटिल चरणों से गुजरना पड़ा है। भारतीय पुरातत्व विभाग के नियमों के अनुसार किसी धरोहर के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। इसके लिए विशेष प्रक्रिया पूर्ण करते हुए बदहाल होती धरोहर के कायाकल्प का कार्य शुरू किया जाता है। अधिकारियों की तलाश कलायत निवासी एक युवा अशोक धीमान पूरी हुई थी। उसने प्राचीन शिवालय में प्रयुक्त र्इंटों का नमूना तैयार करने में सफलता हासिल की थी। इस पर अधिकारियों पर सहमति की मोहर लगाई और धरोहर संरक्षण के कायाकल्प का कार्य शुरू किया गया है। अब जिस प्रकार धरोहर जीर्णोद्धार कार्य को रोका गया है उससे असंख्य लोगों के अरमान अधूरे रह गए हैं। इस संदर्भ में सामाजिक संगठनों ने महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल को पत्र भेजने का निर्णय लिया है। 

बगैर चूना और मिट्टी से निर्मित है शिवालय: 

उत्तर भारत का अजूबा कहे जाने वाला प्राचीन शिवालय बगैर चूना और मिट्टी के तैयार किया गया है। प्राचीन काल के शिल्पकारों ने हुनर से ईंटों को तराशते हुए मंदिर का मजबूती से निर्माण किया। सांख्य दर्शन प्रवर्तक भगवान कपिल मुनि मंदिर सरोवर तट पर स्थित पंचरथ शैली से निर्मित शिव मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में हुआ। 

विशेष सेमरोधी तकनीक से निर्मित है मंदिर: 

शिवालय निर्माण में प्रचूर मात्रा में फूलपत्तियों व अन्य नमूनों का अलंकरण है। धरोहर को सेम व अन्य प्रकोप से बचाने के लिए विशेष आधुनिक तकनीक अपनाई गई। वक्त के साथ पिछले कई वर्षों से मंदिर का एक बड़ा हिस्सा अपनी पहचान खोने की स्थिति में पहुंच गया है। इससे चिंतित भारतीय पुरातत्व विभाग ने कायाकल्प का निर्णय लिया। 

श्राप से मुक्ति होने पर राजा ने करवाया था मंदिर का निर्माण: 

कलायत में राजा शालीवान द्वारा सातवीं-आठवीं शताब्दी में शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया था। किवदंती है कि विशेष श्राप से श्री कपिल मुनि सरोवर में मुक्ति पाने से प्रसन्न राजा ने शिवालय निर्माण का कार्य किया था। भारत में इसे विशेष धरोहर के रूप में जाना जाता है.Conclusion:मंदिर के पुजारी की बाइट और स्थानीय निवासियों की बाइट
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