हैदराबाद : सिविल सेवा के अफसर केंद्र और राज्य के शासन में विभागों का नेतृत्व और मार्गदर्शन करते हैं, इसलिए उनकी जवाबदेही ज्यादा बड़ी होती है. आम तौर पर एक प्रशासनिक अफसर (आईएएस या आईपीएस) जनता और सरकार के बीच कड़ी होते हैं, इसलिए उनसे योजनाओं और नीतियों के निर्माण तथा इसे लागू करने की अपेक्षा की जाती है. मगर जब काम में लापरवाही, संविधान के प्रति उल्लंघन या अन्य आपराधिक आरोप लगते हैं तो उनके खिलाफ सरकार एक्शन लेती है. मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन का मामला अगर साबित हो जाता है तो उनके खिलाफ आपराधिक रिपोर्ट दर्ज हो सकती है. मगर अभी यह जांच का विषय है.
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कानपुर आयुक्त आवास में लिए गए #IAS मो. इफ्तिखारुद्दीन के एक वायरल हुए वीडियो की जांच @kanpurnagarpol के ADCP East को दी गई है, जांच की जा रही है कि क्या वीडियो सही है और क्या इसमें कोई अपराध हुआ है। @Uppolice
— POLICE COMMISSIONERATE KANPUR NAGAR (@kanpurnagarpol) September 27, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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कई आईएएस और आईपीएस बर्खास्त किए गए
हाल के दिनों में सरकार ने केंद्रीय सिविल सेवा और अखिल भारतीय सेवाओं के अक्षम अधिकारियों को जबरन रिटायर कर दिया. मार्च 2021 में 1992 बैच के यूपी कैडर के IPS अमिताभ ठाकुर, राजेश कृष्ण और राकेश शंकर को अनिवार्य रिटायरमेंट दिया गया था. इससे पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप साबित होने पर 2015 में मध्यप्रदेश कैडर के IAS दंपति अरविंद जोशी और टिना जोशी को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. 2017 में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने उनके नन परफॉरमेंस के आधार पर कुछ IAS अधिकारियों को बर्खास्त किया था. 2017 में ही वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के. नरसिंह को कथित तौर पर कर्तव्य में लापरवाही के चलते जनहित में बर्खास्त कर दिया था.
राज्य सरकार को सिर्फ सस्पेंड या तबादला का अधिकार
सरकार की ओर से की गई कार्रवाइयों के उदाहरण से ऐसा लगता है कि भारतीय सिविल सेवा या पुलिस सेवा के अधिकारियों को पद हटाना आसान है. मगर ऐसा नहीं है. जितना इस सर्विस में नौकरी लेना मुश्किल है मगर इस सर्विस के व्यक्ति को हटाना और भी कठिन है. आईएएस अधिकारी के सेवा नियम और बर्खास्तगी के नियम संविधान के अनुच्छेद 311 में दर्ज है. इसके तहत लंबी प्रक्रिया है, जिसके तहत राज्य सरकार के पास आईएएस को बर्खास्त करने के अधिकार नहीं है. यानी योगी आदित्यनाथ की सरकार आईएएस अफसर मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन (IAS Mohammad Iftikharuddin) को आरोप सही साबित होने पर भी बर्खास्त नहीं कर सकती है. राज्य सरकार उन्हें सस्पेंड कर सकती है.
बर्खास्तगी या रिटायरमेंट राष्ट्रपति के आदेश से ही संभव
आईएएस और आईपीएस की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. इन पदों पर नियुक्त होने की सूचना भारत सरकार के गजट में प्रकाशित होती है, इसलिए इन्हें गैजेटेड अफसर भी कहते हैं. यानी राष्ट्रपति के अलावा कोई भी सरकार या मंत्री इन अधिकारियों को कोई भी बर्खास्त नहीं कर सकता है. प्रदेश सरकार के पास सिर्फ आईएएस अधिकारी को सस्पेंड या उसका ट्रांसफर करने का अधिकार है. इससे पहले सरकार को उस पर लगे आरोप की जांच करानी होगी और आरोपों की सुनवाई का उचित मौका भी देना होगा.
फिर बर्खास्तगी कैसे होती है पावरफुल अफसरों की
संविधान के अनुच्छेद 311 के मुताबिक, सबसे पहले राज्य सरकार की सलाह पर अधिकारी के खिलाफ जांच होगी. अगर जांच में आरोप सिद्ध हो जाते हैं तो आरोपी अधिकारी को उनका पक्ष रखने या जवाब देने का समुचित मौका देना होगा. जांच के दौरान प्राप्त साक्ष्य के आधार पर सजा तय होगी. यह बर्खास्तगी, पद से हटाने या रैंक में कमी की हो सकती है.
ऑल इंडिया सर्विसेज (डेथ-कम-रिटायरमेंट बेनिफिट) अधिनियम 1958 के नियम 16 (3) के मुताबिक, भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा के अधिकारियों को रिटायरमेंट से तीन महीने पहले नोटिस देना होगा. साथ ही इतने ही समय का वेतन और भत्ता भी देना होगा.
सरकार ने IAS (छुट्टी) नियम 1955 के Rule 7 (2) के तहत ऐसे नौकरशाह को इस्तीफा देने के निर्देश दिए जाते हैं, जो निर्धारित छुट्टी के बाद भी लंबे समय तक ड्यूटी जॉइन नहीं करते हैं. केरल कैडर के IAS अधिकारी एम. पी. जोसेफ को भी इस आधार पर भी ड्यूटी नहीं जॉइन करने दी गई थी कि ऑफिस से 5 वर्ष तक लगातार गैरहाजिरी इस्तीफे के बराबर है.
अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की दो बार सेवा समीक्षा की जाती है. पहली सेवा के 15 वर्ष पूरा होने पर और फिर 25 वर्ष पूरा होने पर. समीक्षा के दौरान ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर कार्मिक विभाग इस पर फैसला लेता है कि अधिकारी को सेवा में बने रहना चाहिए या सार्वजनिक हित में सेवा से सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए.
अनुच्छेद 311 (2) के तहत जांच की आवश्यकता नहीं होती है.
जब किसी अधिकारी के खिलाफ आपराधिक आरोप (criminal charges) लगते हैं और जांच में इसकी पुष्टि हो जाती है तो प्राधिकरण ने उसे पद से हटाने का अधिकार दिया है. अनुच्छेद 311 (2) (सी) के तहत यदि राष्ट्रपति या राज्यपाल को लगता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में जांच करना व्यावहारिक या सुविधाजनक नहीं है. तो उसे बिना जांच और सुनवाई के तत्काल बर्खास्त किया जा सकता है. अप्रैल 2021 में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पहली बार अनुच्छेद 311 (2) सी का उपयोग किया था.
उत्तरप्रदेश के आईएएस अफसर मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन की जांच एसआईटी कर रही है. जांच के बाद उनसे जवाब मांगा जाएगा. फिर तय होगा कि उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए.