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जानें, कौन हैं जीत के हीरो और कैसी रही है हॉकी की विजय गाथा

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Published : Aug 5, 2021, 7:53 PM IST

भारत की पुरुष हॉकी टीम ने एक समय 1-3 से पीछे होने के बावजूद शानदार खेल दिखाते हुए 41 साल के अंतराल के बाद ओलंपिक पदक जीतने का गौरव हासिल किया है. भारत ने टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक के लिए हुए रोमांचक मुकाबले में जर्मनी को 5-4 से हराया. यह कांस्य पदक किसी तमगे से कम नहीं है. भारत में हॉकी कभी उस बुलंदी पर थी जब लगातार 6 गोल्ड भारत की टीम ने अपने नाम किए. फिर चाहे ब्रिटेन की गुलामी की जंजीरों से बंधी भारतीय टीम हो या फिर आजाद देश की. आइए भारतीय हॉकी के इतिहास और कांस्य पदक दिलाने में महत्वपूर्ण रोल निभाने वाले कुछ खिलाड़ियों जीवन और करियर पर डालें नजर...

ओलंपिक पुरुष हॉकी
ओलंपिक पुरुष हॉकी

टोक्यो : भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने गुरुवार को यहां कांस्य पदक के प्ले-ऑफ मैच में जर्मनी को 5-4 से हराकर 41 साल बाद ओलंपिक पदक जीतकर इतिहास रच दिया. भारतीय टीम भले ही मॉस्को ओलंपिक के गोल्ड मेडल की बराबरी नहीं कर पाई है, लेकिन भारतीय हॉकी टीम इतिहास के उस गौरव को हासिल करने के दिशा में बढ़ गई है. इसकी पहल भारतीय हॉकी टीम के रणबांकुरों ने इस जीत से की है. यह कांस्य पदक भारतीय हॉकी टीम के लिए किसी तमगे से कम नहीं है. आइए एक नजर डालते हैं कि भारतीय हॉकी के स्वर्णिम इतिहास और कांस्य पदम में महत्वपूण रोल निभाने वाले कुछ खिलाडियों के जीवन और करियर के बारे में...

टीम को कांस्य पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले कुछ खिलाड़ियों जीवन और करियर पर एक नजर

मनप्रीत सिंह.
मनप्रीत सिंह.

मनप्रीत सिंह: प्रेरणादायक कप्तान
जालंधर के मीठापुर के एक छोटे से गांव का रहने वाले 29 साल के मनप्रीत ने कम उम्र से ही अपनी मां मनजीत कौर को कड़ी मेहनत करते देखा था. कौर को परिवार का समर्थन करने के लिए काम करना पड़ा, क्योंकि उनके पति मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से घिरे हुए थे. मनप्रीत 2016 में जब सुल्तान अजलान शाह कप में प्रतिस्पर्धा कर रहे थे तब उनके पिता का निधन हो गया था.

भारतीय कप्तान ने 2011 में 19 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय पदार्पण किया था. सीनियर टीम के सदस्य के रूप में उनका पहला बड़ा टूर्नामेंट 2012 लंदन ओलंपिक था। उन्होंने तब से सभी प्रमुख टूर्नामेंटों में देश का प्रतिनिधित्व किया है और 2014 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे.

मनप्रीत की कप्तानी में भारत ने 2018 एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी का खिताब जीता. उन्हें 2019 में एफआईएच साल का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया. वह पिछले साल कोविड-19 से संक्रमित हो गये थे.

पीआर श्रीजेश
पीआर श्रीजेश

पीआर श्रीजेश : भारतीय दीवार
केरल के एर्नाकुलम जिले के किजहक्कमबलम गांव में किसानों के परिवार में जन्में श्रीजेश भारत दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपरों में से एक हैं. इस 35 वर्षीय खिलाड़ी ने 2006 में श्रीलंका में दक्षिण एशियाई खेलों में सीनियर टीम के लिए पदार्पण किया और 2011 से राष्ट्रीय टीम का अभिन्न अंग रहे हैं.

वह 2016 में कप्तान नियुक्त हुए. टीम ने उनके नेतृत्व में 2016 और 2018 में एफआईएच पुरुष हॉकी चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीता. उनके पिता, पी वी रवीन्द्रन को गोलकीपिंग किट दिलाने के लिए अपनी गाय बेचनी पड़ी थी.

हरमनप्रीत सिंह
हरमनप्रीत सिंह

हरमनप्रीत सिंह: ड्रैग-फ्लिक के बादशाह
अमृतसर के बाहरी इलाके में स्थित गांव जंडियाला गुरू टाउनशिप में रहने वाले एक किसान के बेटे, हरमनप्रीत ने 2015 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी में पदार्पण किया. वह 2016 में सुल्तान अजलान शाह कप और एफआईएच पुरुष चैंपियंस ट्रॉफी में रजत जीतने वाली टीमों का हिस्सा थे. उन्होंने पुरुष विश्व सीरीज फाइनल्स के साथ साथ 2019 ओलंपिक क्वालीफायर में भारत के स्वर्ण जीतने वाले अभियान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.

रुपिंदर पाल सिंह.
रुपिंदर पाल सिंह.

रुपिंदर पाल सिंह: ड्रैग फ्लिकर
अपने साथियों के बीच ‘बॉब’ के नाम से जाने जाने वाले रुपिंदर दुनिया के सबसे घातक ड्रैग-फ्लिकर में से एक है. इस लंबे कद के डिफेंडर ने 2010 में सुल्तान अजलान शाह टूर्नामेंट में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण किया, जहां भारत ने स्वर्ण पदक जीता था.

सिमरनजीत सिंह
सिमरनजीत सिंह.

सिमरनजीत सिंह: सुपर स्ट्राइकर
जर्मनी के खिलाफ कांस्य पदक प्ले ऑफ में गोल करने वाले 24 साल के इस खिलाड़ी को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के ‘वैकल्पिक खिलाड़ी’ को टीम में शामिल करने की अनुमति के बाद मैदान पर उतरने का मौका मिला. जालंधर की सुरजीत सिंह हॉकी अकादमी में अभ्यास करने वाले सिमरनजीत भारत की 2016 जूनियर विश्व कप विजेता टीम के सदस्य भी थे.

उनके चचेरे भाई और जूनियर विश्व कप टीम के साथी गुरजंत सिंह भी इस टीम का हिस्सा हैं. गुरजंत का परिवार उत्तर प्रदेश के पीलीभीत शहर का रहने वाला है.

हार्दिक सिंह.
हार्दिक सिंह.

हार्दिक सिंह: भविष्य का सितारा

हॉकी हार्दिक के रगो में है. उनके पिता से लेकर उनके चाचा-चाची तक ने हॉकी में देश का प्रतिनिधित्व किया है. जालंधर के खुसरूपुर में पैदा हुए 22 वर्षीय मिडफील्डर ने पूर्व भारतीय ड्रैग-फ्लिकर अपने चाचा जुगराज सिंह की देखरेख में अभ्यास किया है.

उनके चाचा गुरमैल सिंह 1980 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय टीम के सदस्य थे.हार्दिक ने 2018 हीरो एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में सीनियर टीम के साथ अंतरराष्ट्रीय हॉकी में पदार्पण किया जहां भारत ने स्वर्ण पदक जीता.

ग्राहम रीड.
ग्राहम रीड.

ग्राहम रीड: कोच
रीड 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली ऑस्ट्रेलियाई हॉकी टीम के सदस्य थे. उन्हें 130 अंतरराष्ट्रीय मैचों के अनुभव है. महान रिक चार्ल्सवर्थ के शिष्य, रीड 2014 में शीर्ष स्थान पर पहुंचने से पहले पांच साल तक ऑस्ट्रेलियाई टीम के सहायक कोच थे.

उनकी देखरेख में ऑस्ट्रेलिया की टीम क्वार्टर फाइनल में नीदरलैंड से हारकर रियो ओलंपिक में छठे स्थान पर रही. इस 57 वर्षीय को 2019 में भारतीय पुरुष टीम का कोच नियुक्त किया गया था.

भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग
हॉकी, भारतीय टीम की बदौलत इस खेल ने भी कभी वो सुनहरा दौर देखा था, जो मानो कहीं खो सा गया है. भारत में हॉकी कभी उस बुलंदी पर थी जब लगातार 6 गोल्ड भारत की टीम ने अपने नाम किए. फिर चाहे ब्रिटेन की गुलामी की जंजीरों से बंधी भारतीय टीम हो या फिर आजाद देश की.

साल 1928 से लेकर साल 1956 तक ओलंपिक में गोल्ड मेडल जैसे भारतीय टीम के लिए ही बना था. लगातार 6 बार सोने का तमगा टीम इंडिया के हिस्से आया. ये वही दौर था जब ध्यानचंद जैसे कई जादूगर टीम इंडिया की शान थे.

ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम ने कब-कब जीते पदक
हिटलर के बर्लिन में साल 1936 में खेला गया वो मशहूर ओलंपिक भी इसी दौरान खेला गया, जब ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर उसमें कभी चुंबक तलाशा गया तो कभी ध्यानचंद को हिटलर की तरफ से जर्मन फौज में शामिल होने का न्योता दिया गया. ये सब कुछ उसी हॉकी की बदौलत हुआ है जो भारत में शिखर से सिफर तक का सफर देख चुकी है. फाइनल में जर्मनी को हराकर भारत ने हिटलर का गुरुर भी चकनाचूर कर दिया था.

ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम ने कब-कब जीते पदक
ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम ने कब-कब जीते पदक

भारत के नाम लगातार 6 ओलंपिक गोल्ड जीतने का रिकॉर्ड
1928, 1932, 1936 का ओलंपिक भारतीय टीम ने गुलाम भारत की टीम बनकर उसी ब्रिटेन के झंडे तले खेला था. जिसके खिलाफ 1 अगस्त को क्वार्टर फाइनल में भिड़ना है. 1936 के बर्लिन ओलंपिक के बाद अगले दो ओलंपिक खेल और दुनियाभर के खेल आयोजन दूसरे विश्व युद्ध की भेंट चढ़ गए. अगला ओलंपिक भारत ने आजाद मुल्क के रूप में खेला और फिर 1948, 1952 और 1956 ओलंपिक में भी गोल्ड मेडल जीता.

अंग्रेजों के घर में लहराया आजाद भारत का तिरंगा
साल 1948 का लंदन ओलंपिक, इस बार भारतीय टीम पहली बार तिरंगे के रंग में रंगी हुई ओलंपिक में उतरी थी. सभी टीमों को रौंदते हुए टीम फाइनल में पहुंची और मुकाबला उसी ब्रिटेन से था, जिसने 200 साल तक भारत पर राज किया. फाइनल में भारतीय टीम ने अंग्रेजों को 4-0 से हराया और आजाद भारत का पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल अपने नाम किया.

भारतीय हॉकी टीम

फिर ढलान पर आया भारतीय हॉकी का युग
साल 1960 के रोम ओलंपिक में टीम इंडिया पाकिस्तान से 1-0 से हार गई, लेकिन 1964 के टोक्यो ओलंपिक में एक बार फिर फाइनल भारत और पाकिस्तान के बीच हुई, टीम इंडिया ने बदला लिया और गोल्ड पर कब्जा भी किया. टीम इंडिया अगला गोल्ड मेडल साल 1980 में जीत पाई. हालांकि इस बीच भारतीय टीम ने 1968 के मेक्सिको सिटी ओलंपिक और 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारतीय हॉकी की लाज बचाए रखी.

साल 1976 का मॉन्ट्रिल ओलंपिक में साल 1928 के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब भारतीय हॉकी टीम मेडल नहीं जीत पाई. भारतीय टीम उस ओलंपिक में 7वें नंबर पर रही. 1980 में भारतीय हॉकी टीम ने गोल्ड जीतकर फिर से हॉकी के मैदान पर स्वर्णिम युग की वापसी की झलक तो दिखाई लेकिन इसके बाद ओलंपिक में भारतीय हॉकी का सूखा ऐसा शुरू हुआ जो 41 साल तक जारी रहा. 2008 में बीजिंग ओलंपिक भी आया जिसके लिए भारतीय टीम क्वालीफाई नहीं कर पाई थी.

ब्रिटेन की हॉकी टीम और ओलंपिक
साल 1908 के लंदन ओलंपिक में एक तरह से तीनों पदक ग्रेट ब्रिटेन के खाते में गए. गोल्ड मेडल इंग्लैंड, सिल्वर मेडल आयरलैंड और बॉन्ज मेडल स्कॉटलैंड, वेल्स ने जीता था. तीनों ने ब्रिटेन के झंडे तले ये ओलंपिक खेला था. इसके बाद प्रथम विश्व युद्ध के चलते खेल आयोजन नहीं हो पाए. 1920 ओलंपिक में भी ब्रिटेन ने गोल्ड मेडल जीता और फिर 1948 के लंदन ओलंपिक में भारत से मिली हार के बाद अंग्रेजों को सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा.

ओलंपिक में ग्रेट ब्रिटेन की हॉकी टीम का प्रदर्शन
इसके बाद ब्रिटेन की टीम ने 1952 और 1984 के ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता और फिर साल 1988 के सियोल ओलंपिक में गोल्ड मेडल अपने नाम किया. इसके बाद ब्रिटेन की टीम कभी भी टॉप-3 में जगह नहीं बना पाई.

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