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Haryana congress infighting impact: कांग्रेस में क्या गुटबाजी की वजह से करीब दस साल बाद भी हरियाणा में नहीं हो पाएगा संगठानात्मक सुधार ?

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 7, 2023, 4:02 PM IST

Haryana congress infighting impact हरियाणा में कांग्रेस अपना संगठानात्मक ढांचा फिर से खड़ा करना चाहती है. इसमें वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. हुड्डा और SRK गुट आमने-सामने हैं.कांग्रेस के लिए ये काम बड़ी चुनौती से भरा है.रिपोर्ट तैयार कर रहे पर्यवेक्षकों का जिलों में विरोध हो रहा है.इन घटनाओं के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या दस साल बाद भी हरियाणा में संगठन तैयार नहीं हो पाएगा. इसके उलट आम आदमी पार्टी करीब ढाई लाख कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर रही है.आप का टारगेट एक बूथ पर 10 कार्यकर्ताओं की टीम तैयार करना है. (Haryana Congress rifts)(Haryana Congress Workers Clash)

Haryana congress infighting impact
Haryana congress infighting impact

चंडीगढ़: हरियाणा में संगठनात्मक सुधार कांग्रेस के लिए एक चुनौती बन गया है. कांग्रेस पार्टी करीब एक दशक से बिना संगठन चुनाव के चल रही है. कांग्रेस ने 10 साल में तीन प्रदेश अध्यक्ष बदले, छह प्रभारियों को नियुक्त किया लेकिन संगठनात्मक सुधार कोई भी नहीं कर सका. एक बार फिर से कोशिश शुरू हुई है. जहां भी पर्यवेक्षक जा रहे हैं, वहां या तो उनका विरोध हो रहा है. या फिर कार्यकर्ता आपस में भिड़ रहे हैं.इस पूरी कवायद का नतीजा क्या होगा ?. इसका क्या असर पड़ेगा ?. क्या कांग्रेस हरियाणा में लोकसभा चुनाव के लिए तैयार हो पाएगी ?.

एक दशक, तीन अध्यक्ष, नहीं बना ठोस कांग्रेस संगठन: 2005 से 2014 तक हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद 2014 में कांग्रेस, हरियाणा की सत्ता से बाहर हो गई. उस समय कांग्रेस पार्टी के हरियाणा में अध्यक्ष डॉ अशोक तंवर थे. उन्होंने संगठन बनाने के लिए लाख कोशिशें की लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए. वे हरियाणा कांग्रेस से बड़े बे-आबरू होकर बाहर गए. तंवर वर्तमान में आम आदमी पार्टी का एक बड़ा चेहरा है.हाल ही में कांग्रेस कार्यालयों में हुए विवादों के बाद तंवर ने सोशल मीडिया पर बयान दिया.

हमेशा की तरह गुटबाज़ी का शिकार रही कांग्रेस ने एक बार फिर अपना कल्चर दिखा दिया है.आप के डर से संगठन बनाना शुरू किया तो बैठकें लात-घूंसों का अड्डा बन गईं. मार-काट के कल्चर से तंग होकर मुक्ति पाने को आतुर मेहनती व ईमानदार कांग्रेसियों का आम आदमी पार्टी में स्वागत है. अशोक तंवर, नेता, आप

हरियाणा की राजनीति के जानकारों के अनुसार तंवर के बाद कुमारी सैलजा को हरियाणा कांग्रेस की जिम्मेदारी मिली.उनके दौर में भी परिस्थितियों बिल्कुल वैसी ही रही जैसे अशोक तंवर के वक्त में थी. इन दोनों अध्यक्षों के कार्यकाल के समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी पार्टी के कार्यालय में नहीं आते थे. इस वजह से कुमारी सैलजा को सहयोग नहीं मिल पाया. इसका जिक्र वो कई बार कर चुकी हैं. राजनीतिक जानकारों के अनुसार सैलजा के बाद हरियाणा कांग्रेस की कमान उदयभान को मिली। उदयभान को भूपेंद्र सिंह हुड्डा का समर्थन मिला हुआ है. इस वजह से उनके करीबी विधायक और कांग्रेस नेता पार्टी कार्यालय में आने जाने लगे. उदयभान के हरियाणा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद संगठन के मजबूती से खड़ा होने की उम्मीद जगी है. अब जब वो आगे बढ़ रहे हैं तो फिर से पार्टी की गुटबाजी सामने आने लगी है.वहीं दूसरी तरफ अगर प्रभारियों की तरफ देखा जाए तो पहले शकील अहमद, कमलनाथ, गुलाम नबी आजाद, विवेक बंसल और शक्ति सिंह गोहिल को प्रभार दिया गया. अब प्रभार दीपक बाबरिया के पास है.वे लोकसभा चुनाव से पहले यानी दिसंबर तक हरियाणा कांग्रेस का संगठन ग्रामीण स्तर तक खड़ा करने की उम्मीद कर रहे हैं.राजनीतिक मामलों के जानकार डॉ सुरेंद्र धीमान कहते हैं,'नए प्रभारी दीपक बाबरिया खुद को अनुशासित और संगठन के पुराने कार्यकर्ता बताते हैं. उन्होंने प्रभार लेते ही गुटबाजी को समाप्त करने का दावा कर डाला. बाबरिया से पहले कई सीनियर नेता हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी रह चुके हैं. वे भी गुटबाजी समाप्त नहीं करा पाए तो दीपक बाबरिया ऐसा कर पाएं, ये मुश्किल लगता है.'

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क्या है कांग्रेस की असल लड़ाई ?: राजनीतिक जानकारों के अनुसार हरियाणा में कांग्रेस के बड़े नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं. वे पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं.वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष भी हैं. राज्य में कांग्रेस के 30 विधायक हैं. इनमें से करीब 25 विधायक हुड्डा के साथ हैं.यानी हरियाणा कांग्रेस पर वर्तमान में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा है.वे कांग्रेस हाई कमान के करीबी भी हैं.पार्टी ये मानती है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बिना हरियाणा में सत्ता पाना आसान नहीं है. वहीं दूसरी तरफ पहले कमजोर लेकिन अब मजबूती से उभर रहे SRK का एक गठजोड़ है. यानि कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी की तिकड़ी.इन लोगों की छवि हाई कमान के सामने अलग तरह की है.अब ये चुनौती बनकर हुड्डा गुट सामने खड़े हो रहे हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इनका कद कांग्रेस में बढ़ाया गया है. कुमारी सैलजा को छत्तीसगढ़ कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया है.रणदीप सुरजेवाला भी राहुल गांधी के करीबी हैं. वे कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रभारी थे. वहां कांग्रेस के जीतने के बाद इनका कद और बढ़ गया है. वे वर्तमान में मध्य प्रदेश के भी चुनाव प्रभारी हैं.किरण चौधरी को राजस्थान कांग्रेस में चुनाव को लेकर समन्वयक नियुक्त किया गया है.यानि सभी को चुनावी राज्य की जिम्मेदारी दी गई है. अगर ये लोग सफल होते हैं तो इनका कद कांग्रेस में और बढ़ जाएगा.अब इसका असर अभी से हरियाणा में दिखने लगा है. यही वजह है कि वर्तमान में जिला स्तर पर ऑब्जर्वर की बैठकों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और SRK गुट के कार्यकर्ता आमने-सामने आ रहे हैं. अंबाला, यमुनानगर और करनाल के जिला कार्यालयों में लात-घूंसे चलने के बाद इसकी शिकायत हाईकमान तक की गई. रणदीप सुरजेवाला और कुमारी शैलजा ने पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से दिल्ली में मुलाकात कर शिकायत भी की. इसके बाद रणदीप सुरजेवाला ने कहा था,' कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया जा रहा है. इसकी पार्टी के अध्यक्ष से चर्चा की गई.यह एक सोची समझी नीति के तहत प्रांत में बिखराहट पैदा करने की कोशिश है.ये स्वीकार्य नहीं हो सकता. कोई कांग्रेस के घर को तोड़ने का प्रयास करें.'


कांग्रेस को नुकसान ?: राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कांग्रेस का हरियाणा में कैडर मजबूत नहीं होने के कारण 2014 के बाद से ही पार्टी कमजोर हुई है. हरियाणा में बीजेपी ने इतिहास रचकर पहली बार विधानसभा चुनाव में 47 सीट जीती थीं.कांग्रेस पार्टी मात्र 15 सीट पर जीत दर्ज कर पाई थी.नंबर तीन की पोजीशन पर पहुंच गई थी. वहीं 2019 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी 30 सीटें जीतीं. पर सत्ता से दूर रही.गुटबाजी के चलते कई सीटें कांग्रेस बहुत कम मार्जिन से हार गई थी.अब 2024 से पहले भी पार्टी के अंदर मचा यह घमासान पार्टी को कहीं भारी न पड़े.

क्या कहते हैं राजनीतिक पार्टीयां और विश्लेषक ?: कांग्रेस के इस घमासान पर राजनीतिक पार्टियां टीका टिप्पणी कर रही है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ लगातार कांग्रेस का मजाक उड़ा रहे हैं. वे कहते हैं, 'कांग्रेस में इस वक्त निराशा का समय चल रहा है.कांग्रेस की महोब्बत की मीटिंग में लात-घुंसों का प्रसाद बंट रहा है.' हालांकि इसका जवाब कांग्रेस दे रही है. वहीं कांग्रेस प्रवक्ता केवल ढींगरा का कहना है,'कोई भी गुटबाजी नहीं है. बल्कि जो नेता पार्टी हाई कमान के पास शिकायत लेकर जा रहे हैं उन्हीं नेताओं के समर्थक जिला स्तर आब्जर्वर की पर मीटिंग में प्रभारी के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं.पार्टी हाईकमान के संज्ञान में यह मामला है.जो भी कदम उठाना होगा हाईकमान उठाएगा. दिसंबर तक पार्टी के संगठन के निर्माण का काम हो जाएगा.' कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों की गतिविधियों पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक डॉ सुरेंद्र धीमान कहते हैं,'नए प्रभारी दीपक बाबरिया खुद को अनुशासित और संगठन के पुराने कार्यकर्ता बताते हैं.अब राजनीतिक गलियारे में पूछा जा रहा है कि क्या प्रदेश अध्यक्ष अनुशासनहीनता करने वालों के खिलाफ एक्शन ले सकेंगे? संगठन भले ही बन जाए मगर चुनाव से पहले इस तरह की गुटबाजी करना और कराना नुकसान देने वाला है.बीजेपी हरियाणा के मीडिया प्रमुख डा. संजय शर्मा ने कहा,'कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई अब सड़कों पर आ गई है. कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता एक दूसरे का चीरहरण करने लगे हुए हैं.कांग्रेसियों को यह तक पता नहीं है कि उनका प्रधान और नेता कौन हैं.' इन सब के बीच इंडियन नेशनल लोक दल के नेता अभय चौटाला कहते हैं,'ये लोग कांग्रेस के हितेषी नहीं है.अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं.कांग्रेस को अपनी बपौती बनाना चाहते हैं. कांग्रेस पार्टी को इनके खिलाफ निर्णय लेना चाहिए.पार्टी से बाहर निकलना चाहिए.'
बहरहाल कांग्रेस के मजबूत नहीं होने का फायदा आमआदमी पार्टी हरियाणा में उठा रही है. वो अपने कैडर को तैयार करने में लगी हुई है. जिसकी शुरूआती बड़े पैमाने पर भिवानी से की गई थी. अब आप कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं को बुला रही है. जैसा कि अशोक तंवर ने भी हाल ही में कहा था.

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