आज की प्रेरणा

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Published : Nov 19, 2021, 6:33 AM IST

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मनुष्य को जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए, न ही भाग्य और ईश्वर की इच्छा जैसे बहानों का प्रयोग करना चाहिए. परिवर्तन ही संसार का नियम है, एक पल में हम करोड़ों के मालिक हो जाते हैं और दूसरे ही पल लगता है कि हमारे पास कुछ भी नहीं है. यदि मनुष्य कर्म फलों का त्याग तथा आत्म-स्थिर होने में असमर्थ हो तो उसे ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करना चाहिए. आत्म-साक्षात्कार का प्रयत्न करने वाले दो प्रकार के इंसान होते हैं, कुछ इसे ज्ञान योग से समझने का प्रयत्न करते हैं तो कुछ भक्ति-मय सेवा के द्वारा. जो इंद्रियों को वश में तो करता है, किन्तु उसका मन इन्द्रिय विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह निश्चित रूप से स्वयं को धोखा देता है और मिथ्याचारी कहलाता है. यदि कोई निष्ठावान व्यक्ति अपने मन के द्वारा कर्मेन्द्रियों को वश में करने का प्रयत्न करता है और बिना किसी आसक्ति के कर्मयोग प्रारम्भ करता है तो वह अति उत्कृष्ट है. न तो कर्म से विमुख होकर कोई कर्मफल से छुटकारा पा सकता है और न केवल संन्यास से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है. अपना नियत कर्म करो क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है. कर्म के बिना तो शरीर-निर्वाह भी नहीं हो सकता. जो अहंकार वश शास्त्र विरुद्ध कठोर जप-तप करते हैं, जो काम तथा आसक्ति से प्रेरित हैं, वे मूर्ख है. जो शरीर और शरीर के भीतर स्थित परमात्मा को कष्ट पहुंचाते हैं, वे असुर हैं. जिस प्रकार अज्ञानी-जन फल की आसक्ति से कार्य करते हैं, उसी तरह विद्वान जनों को चाहिए कि वे लोगों को उचित पथ पर ले जाने के लिए अनासक्त रहकर कार्य करें. जीवात्मा अहंकार के प्रभाव से मोहग्रस्त होकर अपने आपको समस्त कर्मों का कर्ता मान बैठता है, जबकि वास्तव में वे प्रकृति के तीन गुणों- शरीर, इंद्रियों और प्राण द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं.

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