आज की प्रेरणा

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Published : Jan 21, 2022, 6:42 AM IST

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जो पुरुष सुख-दुख में विचलित नहीं होता और इन दोनों में समभाव रहता है, वह निश्चित ही अमृतत्व का अधिकारी होता है. असत वस्तु का तो अस्तित्व नहीं है और सत का कभी अभाव नहीं है. तत्त्वदर्शी ज्ञानी पुरुषों ने यह निष्कर्ष निकाला है. सरलता, ब्रह्मचर्य का पालन करना, हिंसा न करना, शुद्धि रखना, देव, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानी जनों का सम्मान करना-यह शारीरिक तप कहलाता है. सतोगुण में स्थित बुद्धिमान त्यागी, जो न तो अशुभ कार्य से घृणा करता है, न शुभ कर्म से लिप्त होता है, वह कर्म के विषय में कोई संशय नहीं रखता. यज्ञ, दान तथा तपस्या के कर्मों का कभी परित्याग नहीं करना चाहिए, उन्हें अवश्य सम्पन्न करना चाहिए . निःसन्देह यज्ञ, दान तथा तपस्या महात्माओं को भी शुद्ध बनाते हैं. जो मनुष्य बिना कर्मफल की इच्छा किए हुए सत्कर्म करता है, वही मनुष्य योगी है. जो सत्कर्म नहीं करता, वह संत कहलाने योग्य नहीं है. जो कर्म मोहवश शास्त्रीय आदेशों की अवहेलना करके तथा भावी बन्धन की परवाह किये बिना या हिंसा अथवा अन्यों को दुख पहुंचाने के लिए किया जाता है, वह तामसी कहलाता है. कर्मों की सिद्धि के पांच कारण हैं. अधिष्ठान अर्थात ये शरीर, कर्ता यानि कि आत्मा, इन्द्रियां जो कि कर्म करने का साधन हैं, अनेक चेष्टाएं जैसे चलना, बोलना आदि और पांचवां कारण प्रारब्ध या परमात्मा है. मनुष्य अपने शरीर, मन या वाणी से जो भी उचित या अनुचित कर्म करता है, वह पूर्वोक्त पांच कारणों के फलस्वरूप होता है. जो पूर्वोक्त पांच कारणों को न मानकर अपने आपको ही एकमात्र कर्ता मानता है, निश्चय ही वह दुर्मति मनुष्य यथार्थ नहीं देखता है. जिस मानव में अहंकार का भाव नहीं है और बुद्धि किसी गुण दोष से लिप्त नहीं होती, वह इस संसार में अपने कर्मों से बंधा नहीं होता है. यहां आपको हर रोज मोटिवेशनल सुविचार पढ़ने को मिलेंगे. जिनसे आपको प्रेरणा मिलेगी.

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