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माता-पिता के लिए सरल नहीं होता है, बच्चे में ऑटिज्म को स्वीकारना

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Published : Apr 2, 2021, 10:44 AM IST

Updated : Apr 2, 2021, 10:57 AM IST

कहा जाता है कि हमारी शिक्षा तथा समाज के नीतियां हमें बहुत कुछ सिखाती हैं, लेकिन अचानक से उत्पन्न हुई विपरीत परिस्थितियों के प्रति हमारा व्यवहार पूरी तरह से मस्तिष्क में उत्पन्न तनाव भरी भावनाओं के प्रतिक्रिया स्वरूप होता है। बच्चे में ऑटिज्म की पुष्टि होने पर उसके माता-पिता के दिल और दिमाग में भी असंख्य भावनाएं उत्पन्न होने लगती हैं, जो उनकी मानसिक अवस्था पर दबाव बढ़ाने लगती हैं। माता-पिता के लिए यह दौर सरल नहीं होता है।

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जब एक परिवार में नया मेहमान यानी एक बच्चा आने वाला होता है, तो माता-पिता के दिल और दिमाग में कुछ अलग ही तरह के विचार और उमंगे रहती हैं। लेकिन जन्म लेने वाला बच्चा यदि सामान्य ना हो या फिर ऑटिज्म जैसी अवस्था से पीड़ित हो, तो पहले-पहले माता-पिता इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में अधिकांश मां-बाप इस अफसोस में रह जाते हैं, कि उनका बच्चा तथा हालात उनकी सोच के मुताबिक नहीं है।

ऑटिस्टिक बच्चों के साथ विशेष तौर पर कार्य कर रही मुंबई की मनोचिकित्सक समृद्धि पाटकर बताती हैं कि ज्यादातर मामलों में माता-पिता के लिए इस बात को स्वीकार कर पाना बहुत कठिन हो जाता है कि उनका बच्चा ऑटिज्म जैसे विकार से पीड़ित है। ETV भारत सुखीभवा को इस संबंध में ज्यादा जानकारी देते हुए वे बताती हैं कि बच्चे में ऑटिज्म की पुष्टि से लेकर माता-पिता द्वारा इस तथ्य को स्वीकारने तक का चक्र अस्वीकार्यता, दुख तथा तनाव से भरा हुआ होता है।

बच्चे में ऑटिज्म की पुष्टि होने पर परिजनों के समक्ष आने वाले भावनात्मक संघर्ष

समृद्धि पाटकर बताती है कि आमतौर पर बाल रोग विशेषज्ञ तथा मनोचिकित्सक बच्चों में लगभग दो साल से भी कम उम्र में ऑटिज्म के लक्षणों को पहचान लेते हैं। बच्चे में जांच और ऑटिज्म की पुष्टि तथा माता-पिता द्वारा इस सच को स्वीकारने के बीच का चक्र ऐसा होता है, जब उसके परिजन मानसिक दबाव तथा विभिन्न प्रकार की भावनाओं के भंवर में फंसे होते हैं। इस दौर में सिर्फ दुख और बच्चे के भविष्य को लेकर अनिश्चितता का तनाव ही माता-पिता को परेशान नहीं करता है, बल्कि इसके साथ ही और भी बहुत से भाव उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इस दौर में माता- पिता की मनःस्थिति को प्रभावित करने वाली भावनाएं और चिंताएं इस प्रकार हैं;

  • सदमा तथा परिस्थितियों को अस्वीकार करना

बच्चे में ऑटिज्म होने की पुष्टि होने पर ज्यादातर माता-पिता सदमे में आ जाते हैं। यहां तक कि कई बार वे चिकित्सक की जांच पर भी सवाल खड़े करने लगते हैं। इसके साथ ही वे बच्चों में ऑटिज्म को लेकर नजर आने वाले लक्षणों की अलग-अलग प्रकार से व्याख्या देने लगते हैं। कुल मिलाकर उनका प्रयास यही रहता है की किसी तरह से वह साबित कर सके कि उनके बच्चे का व्यवहार पूरी तरह से सामान्य है।

  • गिल्ट यानी अपराध बोध

बच्चे में ऑटिज्म की पुष्टि होने पर ज्यादातर परिजन विशेषकर माताएं उसकी इस अवस्था के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानना शुरू कर देते हैं। साथ ही ऐसे में माता-पिता उन कारणों को भी खोजने का प्रयास करने लगते हैं, जोकी उनके अनुसार बच्चे में ऑटिज्म होने के जिम्मेदार हैं।

  • गुस्सा

यह एक ऐसी अवस्था होती है, जब माता-पिता स्वयं को बहुत असमर्थ महसूस करते हैं और ना सिर्फ अपने साथी, समाज बल्कि, भगवान से भी नाराजगी जाहिर करते हैं। समृद्धि पाटकर बताती है कि इस नाराजगी के पीछे उनका दुख और गुस्सा छिपा हुआ होता है, जिसका बाहर निकल जाना ही बेहतर होता है। ऐसी परिस्थितियां होने पर माता-पिता को अपने सभी भाव तथा उद्गार अपने भीतर समेटने की जरूरत नहीं है, बल्कि जहां तक संभव हो सके वह लोगों से बात करें और अपनी परेशानियों को साझा करने का प्रयास करें।

  • दुख

माता-पिता में जब इन विपरीत परिस्थितियों को लेकर गुस्सा शांत होने लगता है, तो उनमें दुख की भावनाएं पनपने लगती हैं। बच्चे के सामान्य जीवन ना जी पाने की चिंता तथा पीड़ा, इस दुख के चलते उत्पन्न एकाकीपन, उम्मीद का खो देना तथा अपराध बोध होना सहित और भी कई ऐसी भावनाएं हैं, जिनसे माता-पिता दो-चार होते हैं।

  • विकार को स्वीकार करें माता-पिता

यह जरूरी नहीं है कि हम अपने जीवन में आने वाली सभी समस्याओं को लेकर सकारात्मक रवैया अपनाएं। लेकिन परिस्थितियों का बोझ दिल और दिमाग पर कम पड़े, इसके लिए बहुत जरूरी है कि परिस्थितियों को अपना लिया जाए। एक बार जब माता-पिता इन परिस्थितियों को स्वीकार कर लेते हैं, तो वह बच्चे की स्थिति को और बेहतर करने के लिए लड़ी जाने वाली जंग के लिए भी स्वयं को तैयार करना शुरू कर देते हैं। इसका एक फायदा यह होता है कि परिजन परिस्थितियों को बदलने की बजाय उनसे संघर्ष करने के लिए जरूरी तरीकों के बारे में जानकारियां खोजना शुरू कर देते हैं। यह एक ऐसा दौर होता है, जहां एक ओर माता-पिता के मन में चिंता तथा अनिश्चितता भरी होती है, वहीं उनके मन में एक उम्मीद होती है कि सही रास्ते पर आगे बढ़ने से भी काफी हद तक अपने बच्चे को आत्मनिर्भर होने में मदद कर सकती हैं।

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समृद्धि पाटकर बताती हैं कि इस समस्या से लड़ने का हर परिवार का तरीका अलग-अलग होता है। कुछ लोग अब क्या होगा वाली सोच के साथ लंबे समय तक दुख में ही फंसे रहते हैं, वहीं कुछ परिजन परिस्थिति के बारे में पूरी जानकारी लेते हुए आगे बढ़ते हैं। ऐसी अवस्था में बहुत जरूरी है कि परिजन चिकित्सक के साथ ही ऐसे दूसरे अभिभावकों से मुलाकात करें, जो एक ही जैसी परिस्थितियों से गुजर रहे हो और उनके साथ अपने अनुभव साझा करें।

इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए समृद्धि पाटकर से मेल आईडी samrudhi.bambolkar@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

Last Updated : Apr 2, 2021, 10:57 AM IST
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