बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए जरूरी विटामिन डी3

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Published : Dec 4, 2020, 12:40 PM IST

Vitamin D3

गर्भवती माता तथा गर्भस्थ व नवजात शिशुओं के सम्पूर्ण विकास के लिए जरूरी है की उन्हें सही मात्रा में पोशष तत्व मिलें. इन पोशष तत्वों में विटामिन डी3 सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसकी कमी ना सिर्फ बच्चों के सम्पूर्ण विकास पर असर डालती है, बल्कि माता को भी दीर्घकालीन समस्याएं दे सकती है.

गर्भस्थ शिशु हो या नवजात, उनके सही शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है की उनके शरीर को सही मात्रा में पोषक तत्व मिले. विटामिन डी3 एक ऐसा ही पोषक तत्व हैं, जिसकी कमी से ना सिर्फ शिशु बल्कि गर्भवती महिला को भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. विटामिन डी की कमी गर्भवती महिलाओं तथा गर्भस्थ शिशु व नवजात के स्वास्थ्य पर कैसे असर डाल सकती है. इस बारे में जानने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. लतिका जोशी से बात की.

गर्भावस्था में विटामिन डी की कमी

राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को रोजाना 15 माइक्रोग्राम विटामिन डी की आवश्यकता होती है. वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गर्भावस्था में विटामिन डी की कमी से महिलाओं में प्री-एक्लेमप्सिया तथा प्री-मैच्योर बच्चे के जन्म जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है.

डॉ. लतिका जोशी बताती हैं की हमारे देश में बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाओं में विटामिन डी की कमी पाई जाती है. विटामिन डी की कमी से गर्भवती माता के स्वास्थ पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही गर्भस्थ शिशु के विकास तथा उसके स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है. दरअसल विटामिन डी मां तथा शिशु दोनों के शरीर में कैल्शियम और फॉस्फेट सहित कई जरूरी पोषक तत्वों के स्तरों को ठीक रखने में मदद करता है, जो बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी होते है.

डॉ. लतिका बताती हैं की यदि गर्भवती महिला के शरीर में विटामिन डी की कमी हो, तो गर्भस्थ शिशु को भी अपनी जरूरत से कम कैल्शियम मिलेगा. जिसके कारण उसके दांत व हड्डियों सहित सम्पूर्ण विकास पर असर पड़ सकता है. इस कमी के ज्यादा बढ़ने पर उसे सूखा रोग (रिकेट्स) भी हो सकता है.

नवजातों पर विटामिन डी की कमी का असर

जब किसी नवजात शिशु या बच्चे को किसी भी कारण से पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं मिलता है, तो उसके शरीर में विटामिन डी का स्तर कम होने लगता है. जिसका सीधा असर उसके शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है. डॉ. लतिका बताती है की विटामिन डी एक ऐसा पोषक तत्व है, जो शरीर को खाद्य पदार्थों से मिलने वाले कैल्शियम और फॉस्फेट को अवशोषित करने में मदद करता है. कैल्शियम, फॉस्फेट व विटामिन-डी मिलकर हड्डियों का निर्माण करने और उन्हें मजबूत बनाने में मदद करते हैं. इसके अलावा, विटामिन-डी दिल के स्वास्थ्य, संक्रमण से लड़ने और हड्डी संबंधी रोगों को दूर करने में भी अहम भूमिका निभाता है.

विटामिन-डी की कमी के लक्षण

विटामिन-डी की कमी के लक्षण हर मां और बच्चे में अलग-अलग हो सकते हैं. इसके कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं;

⦁ मांसपेशियों में कमजोरी.

⦁ शरीर का सही से विकास ना होना.

⦁ जल्दी थक जाना.

⦁ चिड़चिड़ापन.

⦁ दौरे पड़ना.

⦁ हड्डियों का सही विकास ना होना.

⦁ हड्डियों में दर्द का अनुभव.

विटामिन-डी की कमी के लिए उपाय

डॉ. लतिका बताती हैं की विटामिन डी की कमी की आशंका के चलते आजकल ज्यादातर चिकित्सक नवजातों को विटामिन डी3 सप्लीमेंट दिए जाने की अनुशंसा करते हैं. वहीं गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को भी विटामिन डी3 सप्लीमेंट दिए जाते है. इसके अतिरिक्त प्राकृतिक तरीकों से भी विटामिन डी की कमी को पूरा किया जा सकता है, जो इस प्रकार है;

  1. सूरज की रोशनी : धूप में बैठने से शरीर को विटामिन-डी मिलता है. आजकल संयुक्त परिवार, आधुनिक जीवनशैली और कई शहरों में अपार्टमेंट कल्चर के चलन सहित विभिन्न कारणों के चलते नवजात बच्चों को सुबह की धूप नहीं दिखाई जा पाती है. बच्चों को भरपूर मात्रा में विटामिन-डी मिले इसके लिए जरूरी है की संभव हो तो छोटे बच्चों को नहलाने से पहले नौ से ग्यारह बजे वाली सुबह की धूप में तेल से उसकी मालिश की जाए और उसके बाद उसे थोड़े समय के लिए पूरे कपड़े खोल कर धूप में लिटा दिया जाए.
  2. आहार द्वारा : नई मां या गर्भवती महिलाओं में विटामिन डी की कमी को खाद्य पदार्थों के माध्यम से भी पूरा किया जा सकता है. वैसे ज्यादातर मांसाहारी पदार्थों में ही विटामिन डी3 मिलता है. शाकाहारी भोजन की बात करें तो, मशरूम, पनीर, दूध, दही, जूस और कुछ अनाजों में विटामिन डी3 पाया जाता है.
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