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किशोरों की बातों को समझें और सुनें माता-पिता

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Published : Nov 11, 2021, 9:48 PM IST

किशोरावस्था जीवन का वह पड़ाव है, जब बच्चा न तो बड़ा होता है और न ही छोटा. दुनिया से रूबरू होने की दहलीज कही जाने वाली यह उम्र जहां एक ओर बच्चों के लिए आकर्षण से भरी दुनिया के दरवाजे खोलती है, वहीं उन आकर्षणों से जुड़ी बहुत सी समस्याओं तथा अन्य प्रकार के मानसिक दबावों से भी उनका परिचय कराती है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि माता पिता तथा शिक्षक समय-समय पर बच्चों का मार्गदर्शन करते रहें, जिससे किसी भी परिस्तिथि में उनके कोमल मन को चोट न लगे.

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पेरेंटिंग

किशोरावस्था यूं तो लड़कियों तथा लड़कों दोनों के लिए बहुत संवेदनशील आयु होती है, लेकिन लड़कियों पर उसका अपेक्षाकृत ज्यादा असर नजर आता है. हार्मोन्स और शरीर में बदलाव के साथ यह वह समय होता है, जब वे बाहरी आकर्षणों को लेकर ज्यादा आकर्षित होती हैं. ऐसे में फैशन, लुक्स, पढ़ाई, दोस्त, शारीरिक व मानसिक समस्याएं उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालने लगती हैं. ऐसा नहीं है की इस उम्र की समस्याओं का असर लड़कों पर नहीं पड़ता है. लड़कों का मानसिक स्वास्थ्य भी इन तमाम आकर्षणों के प्रभाव से बच नहीं पाता है. इन्हीं का नतीजा रहता है की इस आयु में उनके व्यवहार में गुस्सा, चिड़चिड़ापन, कुंठा, हताशा तो कई बार तनाव भी नजर आने लगता है.

दिल्ली की मनोचिकित्सक तथा कई स्कूलों में काउन्सलर डॉ अमृता केशवानी बताती हैं कि इस आयु में बहुत जरूरी है कि न सिर्फ माता पिता बल्कि शिक्षक भी बच्चों की बात सुने और उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास करें. अन्यथा इस उम्र की समस्याएं उनके मस्तिष्क पर जीवनभर के लिए प्रभाव छोड़ देती हैं. यहां तक की कई बार जो बच्चे इन दबावों को झेल नहीं पाते हैं वे आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं.

कौन सी समस्याएं करती हैं ज्यादा प्रभावित
डॉ अमृता बताती हैं कि टीनएज बच्चों की सबसे आम समस्याओं की बात करें तो इस उम्र में ज्यादातर बच्चे चाहे वे लड़कियां हों या लड़के अपने लुक्स यानी वे कैसे दिखते हैं इस बात को लेकर ज्यादा सचेत हो जाते हैं. विशेषकर लड़कियों में यह व्यवहार ज्यादा नजर आता है. ऐसे में वे स्वयं की दूसरों से तुलना करने लगते हैं , जिसके कारण कई बार उनमें बिना किसी कारण हीनता की भावना आने लगती है जो उनके आत्मविश्वास पर असर डालती है. वहीं इस उम्र में दूसरे लिंग के प्रति शारीरिक आकर्षण भी प्रबल होने लगता है, जिसके चलते वे डेटिंग के आकर्षण में फंसने लगते हैं, जो हमेशा ही अच्छी अनुभूति नहीं देता है. खासकर कई बार लड़कियां डेटिंग के चक्कर में पड़कर शोषण या छेड़खानी का शिकार बन जाती हैं जो उनके कोमल मन पर गहरा असर डालतें है.

इसके अलावा कई बार बाजार, स्कूल, सार्वजनिक स्थलों या सार्वजनिक परिवहन में तो कभी रिश्तेदारों के बीच मुख्यतः लड़कियों को जब छेड़खानी या शोषण का अनुभव होता है, तो यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित करता है. हालांकि, ऐसी अवस्थाओं का अनुभव कई बार लड़कों को भी करना पड़ता है, लेकिन उनमें इस तरह की घटनाओं का प्रतिशत काफी कम होता है. इसके अलावा इम्तेहानों को लेकर जरूरत से ज्यादा दबाव भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित करता है.

कैसे करती हैं ऐसी घटनाएं प्रभावित
डॉ अमृता बताती हैं कि यूं तो युवा बच्चों के व्यवहार के अनुरूप उन पर इस तरह की घटनाओं का प्रभाव अलग-अलग तरह से नजर आता है. जैसे कुछ बच्चे ऐसी परिस्थिति में बहुत ज्यादा चुप हो जाते हैं तो कुछ बच्चे बहुत गुस्सैल तथा हिंसक भी हो जाते हैं. दबाव या समस्या चाहे पढ़ाई से जुड़ी ही या अन्य कारणों के चलते उत्पन्न हुई हो, ज्यादातर मामलों में बच्चों के आत्मविश्वास को प्रभावित करती है , जिसके चलते वे कई बार न सिर्फ सामाजिक जीवन में तो कई बार पढ़ाई में भी पिछड़ने लगते हैं. कई बार कुछ बच्चों में इटिंग डिसॉर्डर भी पनपने लगता है जैसे कुछ बच्चे बहुत ज्यादा खाने लगते हैं तो कुछ खाना बिल्कुल कम कर देते हैं. इसके अलावा कभी-कभी उनका व्यवहार अप्रत्याशित होने लगता है जैसे वे अकारण रोने लगते हैं, तो कभी गुस्सा करते है तो कभी खुश हो जाते हैं.

व्यवहार को समझे और उनसे बात करें
डॉ अमृता बताती हैं कि आमतौर पर इस तरह के व्यवहार को मातापिता नजरअंदाज कर देते हैं. जो सही नहीं है. पहले के दौर में जब बड़े परिवारों का चलन था तथा संयुक्त परिवारों में चचेरे, ममेरे भाई-बहन साथ रहते थे तो बच्चे आपस में ही बात करके दूसरों से अनुभव से परिसतिथ्यों को समझ कर संभाल लेते थे, साथ ही उनमें दबाव बर्दाश्त करने की क्षमता भी ज्यादा होती थी, लेकिन आजकल एकल परिवारों का चलन ज्यादा है, विशेषतौर पर ऐसे बच्चे जिनके भाई बहन नहीं हो ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं और सलाह के लिए ज्यादातर दोस्तों पर निर्भर करने लगते हैं. ऐसी अवस्था में बहुत जरूरी है की किशोर बच्चों के मातापिता उनके व्यवहार में परिवर्तन पर नजर रखें. तथा व्यवहार में किसी भी तरह का परिवर्तन नजर आने या पढ़ाई में प्रदर्शन खराब होने पर पहले उन्हे डांटने की बजाय उनसे बात करें और उनकी समस्या को समझने का प्रयास करें. बहुत जरूरी है की मातापिता अपने बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार स्थापित करें जहां बच्चे ना सिर्फ अपनी समस्याएं बल्कि सभी छोटी–बड़ी बातें उन्हें बता सकें.

डॉ अमृता बताती हैं कि बढ़ती उम्र की इस प्रकार की समस्याएं बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को ज्यादा प्रभावित न करें इसके लिए जरूरी है कि समय-समय पर अभिभावक अपने बच्चों को इन समस्याओं तथा ऐसी समस्याएं होने की अवस्था में बगैर ज्यादा दबाव में आए या परेशान हुए कैसे इन समस्याओं का सामना किया जाय, इस बारें में उन्हे हल्के फुल्के अंदाज में समझाते रहें. विशेषतौर पर युवा बच्चों को पढ़ाई के दबाव या पियर प्रेशर के अलावा, डेटिंग, छेड़खानी, शोषण, इस उम्र के दिखावटी और लुभावने विचारों के दबाव में ना आने का बारे में, बढ़ती उम्र से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के बारें में, अल्कोहल और अन्य नशीली चीज़ों का सेवन से होने वाले खतरों के बारें में , अब्यूज़िब रिलेशनशिप (abusive relationship) या किसी भी अवस्था में खुद को सुरक्षित रखने के बारें में तथा डिप्रेशन और एंजायटी जैसी मानसिक समस्याओं के बारें में जानकारी अवश्य दें.

डॉ अमृता बताती है कि युवा बच्चों की मानसिक परेशानियों पर ध्यान ना देने के परिणाम कभी- कभी बहुत गम्भीर हो सकते हैं. इसलिए टीनएज बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देकर और उसकी भावनात्मक स्थिति को समझकर उनकी मदद करने का प्रयास किया जाना जरूरी है. यदि बच्चों के मन पर समस्याओं का प्रभाव ज्यादा नजर आए तो मातापिता तो चिकित्सीय मदद लेने से भी परहेज नही करना चाहिए, क्योंकि यह उनके बच्चे के स्वस्थ विकास में फायदा ही पहुंचाएगा। इसके साथ ही बहुत जरूरी है की बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार रखा जाय जिससे वे दिमागी तौर पर मजबूत बन सके.

पढ़ें: बच्चे के भावनात्मक विकास के लिए जरूरी है सुरक्षित वातावरण

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