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Life On Earth : इस बैक्टीरिया के कारण धरती पर जीवन हुआ संभव,भारतीय वैज्ञानिकों का दावा

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Published : Mar 18, 2023, 10:03 AM IST

Life On Earth
जीवन के विकास में मदद

विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित ऑक्सीजन ने ओजोन परत का निर्माण किया, जिसने घातक पराबैगनी-सी विकिरण से सुरक्षा प्रदान करके वर्तमान जीवन के विकास में मदद की. Life on earth .

नई दिल्ली : आदिम पृथ्वी पर सायनोबैक्टीरिया ( Cyanobacteria ) या बोलचाल की भाषा में 'काई' जीवों द्वारा उत्पादित ऑक्सीजन ने ओजोन परत का निर्माण किया जिसने घातक पराबैगनी-सी विकिरण से सुरक्षा प्रदान करके वर्तमान जीवन के विकास में मदद की ऐसा BHU के वैज्ञानिकों का कहना है. Algae (सायनोबैक्टीरिया) किसी भी जगह जैसे ताजे और समुद्री पानी, मिट्टी, पेड़ों की छाल, कंक्रीट की दीवारों, मूर्तियों चट्टानों, गर्म झरनों, पौधों और जानवरों के भीतर, ठंडे और समशीतोष्ण स्थानों, या किसी अन्य चरम वातावरण में शानदार ढंग से विकसित हो सकते हैं.

दरअसल Banaras Hindu University शोधकर्ताओं का कहना है कि Cyanobacteria ने लगभग 3 अरब साल पहले वातावरण में पहली बार ऑक्सीजन का उत्पादन करके वर्तमान ऑक्सीजनजीवी जीवन ( oxygenic life) को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. BHU केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि साइनोबैक्टीरिया प्रमुख कार्बन डाइऑक्साइड और डाइनाइट्रोजन फिक्सर हैं. यह 3 जी और 4 जी जैव ईंधन और मूल्यवान यौगिकों (टॉक्सिन्स, एंटीकैंसरस यौगिक और प्राकृतिक सनस्क्रीन) के स्थायी उत्पादन के लिए संभावित उम्मीदवारों के रूप में उभरे हैं.

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की क्षमता
Cyanobacteria ने Carbon dioxide के कारण होने वाले वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए ग्रीनहाउस गैस को जब्त करने की अपनी शानदार क्षमता भी दिखाई है और दुनिया भर में इस उद्देश्य के लिए पायलट प्लांट स्थापित किये जा रहे हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग, विज्ञान संस्थान में काम कर रहे वैज्ञानिक फोटोइंजीनियरिंग और जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करके साइनोबैक्टीरिया को इस तरह से ढाल रहे हैं कि उनमें जैव ईंधन और मूल्यवान यौगिक उत्पादन उद्योग के लिए बेहतर फेनोटाइप हो.

Dr Shailendra Pratap Singh के नेतृत्व में समूह ने नीले और हरे रंग की रोशनी में जीव को विकसित करके मॉडल सायनोबैक्टीरियम सिनेकोकोकस एलॉन्गैटस पीसीसी 7942 के लिपिड सामग्री और सेल लंबाई (जो जैव ईंधन उद्योग में उपयोगी हैं) में वृद्धि की है. डॉ. सिंह ने बताया कि Cyanobacterium ने दो प्रकाश स्थितियों में धीमी वृद्धि दिखाई, लेकिन बायोमास उत्पादन में कमी की भरपाई लिपिड सामग्री और लम्बी कोशिकाओं की बढ़ी हुई मात्रा से हुई. समूह ने आनुवंशिक रूप से उसी जीव को इंजीनियर कर नवीन उपभेदों का भी विकास किया है जो लगभग दोगुनी मात्रा में लिपिड, उच्च काबोर्हाइड्रेट और कम प्रोटीन का उत्पादन करते हैं और बेहतर अवसादन, संग्रह दक्षता रखते हैं.

BHU की ओर से पेटेंट दायर
आनुवंशिक रूप से इंजीनियर सायनोबैक्टीरिया के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से पेटेंट भी दायर ( Patent for the genetically engineered cyanobacteria by BHU ) किया गया है, जबकि फोटोइंजीनियरिंग तकनीकों के निष्कर्ष हाल ही में एल्सेवियर जर्नल एनवायरनमेंटल एंड एक्सपेरिमेंटल बॉटनी में प्रकाशित हुए हैं. यह अध्ययन डॉ. सिंह को डीएसटी-एसईआरबी प्रारंभिक कैरियर अनुसंधान पुरस्कार, नई दिल्ली, बीएसआर स्टार्ट-अप अनुदान, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), नई दिल्ली, एवं इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस इंसेंटिव ग्रांट, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा वित्त पोषित किया गया था. Life on earth because of cyanobacteria says bhu research .

(आईएएनएस) (This is an agency copy and has not been edited by ETV Bharat.)

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