भारत की महिलाओं में बढ़ रहा है गर्भाशय निकलवाने का ट्रेंड

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Published : Nov 24, 2022, 10:47 AM IST

Increasing Trend of Hysterectomy in Indian Women

फिलहाल स्वतंत्र और जिम्मेदारियों से मुक्त रहने की भावना के चलते भी युवा महिलाएं वेजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी इस्तेमाल कर रही हैं. साथ ही साथ बिदांस जीवन जीने की आदी महिलाएं प्रेगनेंसी व माहवारी की झंझटों से मुक्ति के लिए इसे सुरक्षित हथियार मान रही हैं. लेकिन युवा महिलाओं में गर्भाशय निकलवाने का ट्रेंड बढ़ने का चलन काफी खतरनाक है. Increasing Trend of Hysterectomy in Indian Women

नई दिल्ली : हमारे देश की महिलाओं में भी गर्भाशय निकलवाने का चलन धीरे धीरे तेजी से बढ़ रहा है. पहले तो यह स्वास्थ्य कारणों से किया जा रहा था, लेकिन अब इसके पीछे कई और भी कारण बढ़ते जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने चिंता जताते हुए महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों को आयोजित करके अनावश्यक हिस्टेरेक्टॉमी के बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत पर बल दिया है. ज्यादातर युवा महिलाओं के भी गर्भाशय निकलवाने की बातें सामने आने पर महिलाओं को शिक्षित और मार्गदर्शित करने की बात कही जा रही है.

आम तौर पर हर महिला मासिक धर्म के मासिक चक्र से गुजरती है. ऐसा तब तक चलता रहता है, जब तक महिला जब तक गर्भवती न हो जाए. इन पीरियड्स के दिनों में कुछ महिलाओं को खून की कमी के साथ साथ कुछ और भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. महिलाओं के मूड बदलने से लेकर पेट में ऐंठन और कई मनोवैज्ञानिक स्तर की समस्याओं होने लगती हैं. हालांकि शरीर के हिसाब से पीरियड्स के दिनों में हर महिलाओं को कुछ खास तरह की परेशानियां होती हैं. एक ही समस्या हर महिला को हो यह जरूरी नहीं है. लेकिन कुछ लगातार परेशानियों के कारण महिलाएं अपने शरीर से गर्भाशय यानी यूटरस निकलवाने के लिए मजबूर हो रही हैं. इसे ही वेजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी कहा जाता है.

Increasing Trend of Hysterectomy in Indian Women
गर्भाशय निकलवाने शौकिया फैशन

भारत में नया ट्रेंड (Increasing Trend of Hysterectomy in Indian Women)
फिलहाल स्वतंत्र और जिम्मेदारियों से मुक्त रहने की भावना के चलते भी युवा महिलाएं इसका इस्तेमाल कर रही हैं. साथ ही साथ बिदांस जीवन जीने की आदी महिलाएं प्रेगनेंसी व माहवारी की झंझटों से मुक्ति के लिए इसे सुरक्षित हथियार मान रही हैं. लेकिन युवा महिलाओं में बढ़ता यह ट्रेंड काफी खतरनाक है. एनएफएचएस के लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, गर्भाशय निकलवाने वाली महिलाओं की औसत आयु 34 वर्ष होने का अनुमान लगाया जा रहा है.

बच्चेदानी निकलवाने के लिए हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी की जाती है. ये सर्जरी महिला के पेट या योनि के माध्यम से आवश्यकता के अनुसार की जाती है. वैसे तो हिस्टेरेक्टॉमी के कई प्रकार होते हैं. यह की जाने वाली सर्जरी पर निर्भर है. एक प्रकार के सर्जरी में हिस्टेरेक्टॉमी गर्भाशय को हटा देती है, लेकिन गर्भाशय ग्रीवा को बरकरार रखती है. दूसरे में हिस्टेरेक्टॉमी गर्भाशय और गर्भाशय ग्रीवा दोनों को हटा दिया जाता है. वहीं तीसरे प्रकार में हिस्टेरेक्टॉमी के दौरान गर्भाशय (Uterus), गर्भाशय ग्रीवा, और एक या दोनों अंडाशय और फैलोपियन ट्यूब को भी निकाला जाता है.

हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी से पड़ने वाले कुप्रभाव (Health Problems After Removing Uterus)
आपको बता दें कि बच्चेदानी निकालने के बाद महिलाओं के शरीर को नुकसान भी होते हैं, जिससे उनके शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है. हालांकि ये निजी फैसला होता है, लेकिन चिकित्सकों की सलाह व अपने शरीर की जांच के बाद ही करानी चाहिए. बिना डॉक्टर के बताए या स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर स्थितियों के कारण बिना जांच पड़ताल के बच्चेदानी निकलवाने से शरीर को कुछ गंभीर नुकसान भी हो सकते हैं।

Doctor Consultancy Must For Hysterectomy
गर्भाशय निकलवाने के पहले सलाह जरूरी

बच्चेदानी निकलवाने के नुकसान (Side Effects of Removing Uterus)
1. सर्जरी के बाद आपको कुछ दिनों तक योनि से खून स्राव की संभावना होने की संभावना होती है. जबकि सर्जरी के बाद ये समस्या काफी सामान्य कही जाती है.

2. कुछ दिनों तक सर्जरी वाली जगह पर अधिक तेजी से दर्द भी होता है.

3. प्रभावित हिस्से में सूजन या चोट जैसा महसूस होता है.

4. सर्जरी के आसपास जलन या खुजली के लक्षण दिखायी देते हैं.

5. निचले शरीर के कुछ हिस्सों में सुन्न पड़ने जैसे लक्षण दिखते हैं.

6. इस सर्जरी के बाद महिला के गर्भवती होने की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं.

7. महिलाओं के मासिक धर्म भी रुक जाते हैं.

8. महिला की योनि में सूखापन महसूस होने लगता है.

9. सेक्स के दौरान दर्द अधिक हो सकता है.

10. सेक्स ड्राइव में कमी आने की संभावना होती है.

ऐसी हैं भविष्य की चिंताएं
इन सभी वजहों से स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बुधवार को गर्भाशय निकलवाने (हिस्टेरेक्टॉमी) के बढ़ते ट्रेंड पर चिंता व्यक्त की है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में बहुत कम उम्र की महिलाओं में भी गर्भाशय निकलवाने के मामले बहुत अधिक सामने आ रहे हैं, जो उनके शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य का बोझ डाल सकते हैं. भारत सरकार में डीडीजी अमिता बाली वोहरा ने कहा कि जब महिलाओं के स्वास्थ्य की बात आती है तो परिवार हमारे समाज में प्रमुख फैसले लेने वाले होते हैं. इसलिए परिवारों को ऐसे मुद्दों के बारे में जागरूक करने की जरूरत है ताकि महिलाओं को बेहतर चिकित्सा सलाह मिलने में मदद मिल सके.

अमिता बाली वोहरा ने देश में अनावश्यक हिस्टेरेक्टॉमी के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में कहा कि ज्यादातर युवा महिलाएं गर्भाशय निकलवा रही हैं. इन महिलाओं को शिक्षित और मार्गदर्शन करने के लिए दिशानिर्देश होने चाहिए.

यह कार्यक्रम राष्ट्रव्यापी अभियान 'प्रिजर्व द यूटरस' के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया था. यह अप्रैल में बायर द्वारा फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (एफओजीएसआई) और आईएचडब्ल्यू काउंसिल के सहयोग से राज्यों में नीतिगत दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करते हुए शुरू किया गया था, ताकि महिलाओं के स्वास्थ्य के मुद्दों और स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत किया जा सकते और गर्भाशय निकलवाने वाली महिलाओं को जागरूक किया जा सके.

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जागरूकता पैदा करने की जरूरत
'प्रिजर्व द यूटेरस' अभियान का मुख्य उद्देश्य महिलाओं और स्त्रीरोग संबंधी रोगों के प्रबंधन के आधुनिक और वैकल्पिक तरीकों के बारे में जागरूकता पैदा करना और हिस्टेरेक्टॉमी के प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना है ताकि महिलाएं सशक्त बने. रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के स्वास्थ्य पर सरकार की पहल के बारे में बात करते हुए नीति आयोग के वरिष्ठ सलाहकार के. मदन गोपाल ने कहा कि प्रसूति देखभाल की तुलना में स्त्री रोग संबंधी देखभाल पर ध्यान केंद्रित करने के लिए काम चल रहा है. सरकार का इसपर पिछले कुछ दशकों से फोकस क्षेत्र रहा है.

बायर जाइडस के मैनेजमेंट डायरेक्टर मनोज सक्सेना ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा में एक महत्वपूर्ण हितधारक के रूप में, बायर महिलाओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में इनोवेशन करने के लिए प्रतिबद्ध है. वहीं आईएचडब्ल्यू काउंसिल के सीईओ कमल नारायण ने कहा कि आर्थिक लाभों के लिए महिलाओं के स्वास्थ्य को जोखिम में डालकर उसके शरीर और उसके स्वास्थ्य पर अधिकार की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए.

विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सोशल मीडिया के उपयोग में बढ़ोतरी के साथ इस तरह की पहल स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने और महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने में एक लंबा रास्ता तय करेगी.

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