एक दूसरे पर आश्रित होते हैं तनाव, नींद और इम्युनिटी

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Published : Sep 4, 2021, 1:44 PM IST

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किसी भी व्यक्ति में तनाव के उच्च स्तर, नींद की कमी और बीमार होने के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये तीनों समस्याएं एक दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं? आइए जानते हैं कैसे!

“तनाव, नींद और इम्युनिटी का आपस में गहरा संबंध माना जाता है। यदि आप रात के समय सही मात्रा में सही गुणवत्ता वाली नींद नहीं सोते हैं तो अगले दिन के लिए आपके शरीर में ऊर्जा का संचरण सही ढंग से नहीं हो पाता है और आपके पूरे दिन के कार्य प्रभावित होते हैं। वहीं हमारे हृदय और प्रतिरक्षा प्रणाली के ठीक से काम करने के लिए नींद बहुत जरूरी होती है। साथ ही इसका असर हमारे स्पष्ट रूप से सोचने, नई जानकारी सीखने और कार्य को सही तरीके से करने और भावनाओं को प्रबंधित करने की हमारी क्षमता पर भी पड़ता है।

इसी संबंध में परफ़ोर्मेंस एनहेन्समेंट के एक्सीक्युटिव निदेशक, पोषण विशेषज्ञ, तथा नोरास् नेचुरल्स कॉफी के सीईओ नोरा टोबिन, बताते हैं की यदि कोई व्यक्ति लगातार हर रात किसी न किसी कारण से पर्याप्त नींद नहीं ले पाता है, तो इसका परिणाम उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक तनाव के रूप में नजर आता है, जिससे उसके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली भी प्रभावित होती है।”

एक सूचना में वह बताते हैं की “जरूरी मात्रा में नींद लेने और अपने तनाव को प्रबंधित करने जैसी स्वस्थ आदतों का अभ्यास करने से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को बरकरार रखने में मदद मिल सकती है। यदि आप एक स्वस्थ दिनचर्या का पालन करते हैं तो आपकी कार्यक्षमता बेहतर यानी अधिक उत्पादक और उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम देने वाली होगी।

नोरा टोबिन बताते हैं की तनाव, नींद और प्रतिरक्षा को अनुकूलित करने में तीन बातें फायदेमंद हो सकती है।

तनाव का प्रबंधन

जब शरीर लंबे समय तक मानसिक या शारीरिक तनाव में रहता है, तो उनमें कोर्टिसोल का उत्पादन असंतुलित हो जाता है। जिससे अत्यधिक थकान, मस्तिष्क में असपष्टता और पेट के आसपास वसा का संचय होने लगता है। ऐसे में श्वास लेने का सही तरीका, विटामिन डी और एडाप्टोजेनिक जड़ी-बूटियाँ कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) को संतुलित कर सकती हैं। साथ ही यह आपके मस्तिष्क के अमिगडाला को नियंत्रित करती है, जो चिंता को नियंत्रित करता है। इस समस्या के समाधान के लिए नीचे दिए गए उपायों को दैनिक जीवन में नियमित रूप से शामिल करने का प्रयास करें।

1 मिनट का ध्यान: इस के तहत 3 गिनती गिनते हुए श्वास लें, अपनी सांस को 3 गिनने तक विराम दें और 3 के साथ साँस छोड़ें। इस प्रक्रिया को 1 मिनट के लिए दोहराएं।

विटामिन डी: यह सेरोटोनिन (एक अच्छा महसूस करने वाला हार्मोन) के निर्माण तथा नियंत्रण में मददगार होता है, साथ ही शरीर की मजबूत प्रतिरक्षा के लिए भी जरूरी होता है। इसलिए धूप के चश्मे के बिना प्रतिदिन 10 मिनट के लिए बाहर निकलें या प्राकृतिक तरीके से विटामिन डी ग्रहण करने का प्रयास करें।

जड़ी बूटी: एडाप्टोजेनिक जड़ी बूटियों का उपयोग भारत में हजारों वर्षों से किया जा रहा है। यह शरीर की ऊर्जा का समर्थन करने में मदद करती है और स्वाभाविक रूप से सेलुलर तनाव से बचाती है। तनाव और चिंता को कम करने के लिए उपयोग की जाने वाली शीर्ष दो जड़ी-बूटियाँ हैं ऋषि और अश्वगंधा। सोने से पहले चाय या पानी में मिला कर उनका सेवन करना फायदेमंद हो सकता है।

नींद में वृद्धि

जब हम अच्छी गुणवत्ता वाली नींद लेते हैं तो सेरेब्रल स्पाइनल फ्लूइड, मस्तिष्क के माध्यम से विषाक्त पदार्थों यानी टॉक्सिनस को साफ करने, ग्रहण की गई जानकारियों को संचित व संयोजित करने के लिए न्यूरल कनेक्शन बनाते हैं और उम्र बढ़ने की क्रिया को धीमा करने का कार्य करते हैं। इस प्रक्रिया को ग्लाइम्फेटिक ड्रेनेज कहा जाता है। नींद के दौरान लसीका तंत्र मुख्य रूप से अपशिष्टों के निस्तारण तथा नए सेरेब्रल पाथवे बनाने का काम करता है इसलिए कम से कम छह घंटे की नींद लेना आवश्यक है।

बेहतर नींद पाने के लिए पैरों को दीवार से ऊपर की ओर टिकाकर कुछ देर रखने से फायदा होता है। जब हम पैरों को उठाकर दीवार से टिकाते हैं तो शरीर के तापमान में परिवर्तन आता है और खनिज (मिनरल) शरीर को दिमागी व शारीरक सक्रियता के मोड से बाहर निकाल कर पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र को सक्रिय करने में मदद करते हैं जो हमारे शरीर में आराम और पाचन के लिए जिम्मेदार होते हैं। 5-10 मिनट तक टांगों को दीवार के ऊपर रखकर लेटने से सर्कैडियन रिदम रीसेट हो जाता है और शरीर के गहरी आरईएम नींद में जाने की क्षमता में सुधार होगा।

यदि सोने से पहले दो मिनट के लिए शॉवर में गर्म और ठंडे पानी से (20 सेकंड गर्म, 10 ठंडा) बारी-बारी स्नान किया जाय तो मेलाटोनिन के उत्पादन को विनियमित करने के लिए शरीर की प्राकृतिक क्षमता में काफी सुधार होगा।

ऊर्जा सुधार

शरीर में एनर्जी बर्निंग दो तरीकों से होती हैं – ग्लूकोज और कीटोन। जब हमारा शरीर प्राथमिक रूप से ग्लूकोज बर्न कर रहा होता है तो यह रक्त शर्करा में तेजी से वृद्धि करता है, जिससे कुछ भी खाने की लालसा, एनर्जी क्रैश या वजन बढ़ने जैसी समस्याएं सामने आने लगती हैं। वहीं जब शरीर में कीटोन्स बर्न होते हैं तो वह अपने स्वयं के वसा भंडार को जलाते हुए स्थिर-अवस्था की ऊर्जा प्राप्त करते हैं।

सतत ऊर्जा के लिए जरूरी है की नियमित अंतराल वाली कसरत, संपूर्ण श्रेणी के खाद्य पदार्थों और स्वस्थ वसा युक्त खाने का सही मात्रा में सेवन किया जाय। इससे शरीर ऊर्जा में कमी महसूस हुए बिना अधिक कीटोन्स बर्न कर सकता है। साथ ही इससे तेजी से सेलुलर में कमी आती है, वजन घटाने तथा उसके प्रबंधन में मदद मिलती है और पूरे दिन शरीर में ऊर्जा बनी रहती है।

-आईएएनएस

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