स्वस्थ शरीर और स्वस्थ तंत्रिकाएं बचाएंगी गिलैन बारे सिंड्रोम से

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Published : Jul 30, 2020, 5:06 PM IST

Updated : Jul 31, 2020, 11:03 AM IST

Guillain Barre syndrome

अगर आपके पैरों मे झनझनाहट या कमजोरी महसूस होती है, तो सावधान हो जाये. ये गिलैन बारे सिंड्रोम के लक्षण हो सकते है. कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों में इस विकार के होने की संभावना अधिक होती हैं. इसका प्रारंभिक इलाज कराने से ये ठीक हो सकता है, लेकिन लापरवाही बरतने पर ये स्थिति गंभीर रूप ले सकता है. इस तरह के लक्षण दिखने पर चिकित्सक से परामर्श लें और इलाज कराएं.

22 साल का रोहित एक हफ्ते से जुकाम और बुखार से पीड़ित था. जिससे उसके शरीर में काफी कमजोरी महसूस हो रही थी. पांच दिन बाद रोहित जब सुबह जागा और बिस्तर से उठने का प्रयास करने लगा, तो वह अपने पांव को हिला भी नहीं पाया. उसे ऐसा लगा जैसे उसके पांवों को लकवा मार गया हो. यही नहीं वह सही तरीके से सांस भी नहीं ले पा रहा था. आनन फानन में जब घर वाले उसे चिकित्सक के पास लेकर गये, जहां तमाम जांच के बाद उसे पता चला कि उसे गिलैन बारे सिंड्रोम यानि जीबीएस हुआ हैं.

ऐसा ही कुछ 16 साल की कशिश के साथ भी हुआ. वायरल से पीड़ित कशिश को अचानक से अपने पैरों में झुनझुनी और कंपकंपाहट महसूस होने लगी. उसे लगा शायद कमजोरी है, लेकिन धीरे-धीरे उसकी यह कमजोरी शरीर में ऊपर की ओर बढ़ने लगी और उसे शरीर को हिलाने में भी तकलीफ होने लगी. इसके साथ ही सांस लेने में भी उसे परेशानी हो रही थी. तमाम जरूरी जांचों के बाद कशिश में भी गिलैन बारे सिंड्रोम की पुष्टि हुई.

क्या है जीबीएस ?

क्या होता है गिलैन बारे सिंड्रोम और क्यों उससे हमारे शरीर में फालिज जैसी स्थिति पैदा हो जाती है? इस बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम ने डॉ. संजय जैन से बात की. डॉ. संजय ने बताया कि गिलैन बारे सिंड्रोम या संलक्षण एक तरह का वायरल संक्रमण होता है, जोकि उन लोगों को होने का खतरा ज्यादा रहता है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो और नसें कमजोर हो. हालांकि, समय पर चिकित्सा प्रारंभ करने से यह एक हफ्ते या दस दिनों में ठीक भी हो जाता है. लेकिन नजरअंदाज करने पर इसका परिणाम खतरनाक हो सकता है.

डॉ. जैन ने आगे बताया कि इस संक्रमण का असर रोगी में उसके पैरों से शुरू होकर धीरे-धीरे ऊपर बढ़ता है. शुरूआत में रोगी को नीचे से ऊपर की ओर अपने शारीरिक अंगों में झनझनाहट या कमजोरी महसूस होती है, जिससे वह खड़ा नहीं हो पाता और न ही बैठ पाता है. लेकिन धीरे-धीरे यही कमजोरी फालिज जैसे अवस्था में पहुंच जाती है, जहां नसें इतनी कमजोर हो जाती हैं कि रोगी अपने शरीर को हिला भी नहीं पाता है.

जैसे ही यह संक्रमण हमारी पाचन तंत्रिका और फिर श्वसन तंत्रिका तक पहुंचता है. मरीज को कुछ भी खाने-पचाने और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है, जिसके कारण कई बार उसे वेंटिलेटर में भी रखना पड़ता है. ऐसे में उसे तमाम दवाईयों के साथ इंट्रावीनस इम्यूनोग्लोबिन के उच्च खुराक वाले इंजेक्शन लगाएं जाते हैं. इस बीमारी में जैसे संक्रमण नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता है, उसी तरह ठीक होने में यह ऊपर से नीचे की तरफ अंगों में संक्रमण को ठीक करते हुए आगे बढ़ता है.

कैसे बचें जीबीएस से

डॉ. जैन कहते हैं कि चूंकि यह ज्यादातर उन्हीं लोगों को होता है, जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली तथा परिधीय तंत्रिका तंत्र कमजोर होता है. यह संक्रमण बहुत आम नहीं है, लेकिन संक्रमित हो जाने पर मरीज के पूरे शरीर तंत्र पर इसका खासा प्रभाव पड़ता है. इसलिए जरूरी है कि पौष्टिक भोजन और नियमित व्यायाम करें, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएं. साथ ही नसों में किसी भी तरह की कमजोरी महसूस होने पर चिकित्सक से परामर्श लें और नसों को मजबूती देने वाली दवाईयों का सेवन किया जाये.

Last Updated :Jul 31, 2020, 11:03 AM IST
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