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महिलाओं के हार्मोनल स्वास्थ को भी प्रभावित कर रहा है कोरोना

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Published : Jun 23, 2021, 5:08 PM IST

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महिलाओं का हार्मोनल स्वास्थ कोरोना

पिछले 1 साल से ज्यादा समय से कोरोना की बढ़ती-घटती रफ्तार ने लोगों के मन में डर को काफी ज्यादा बढ़ा दिया है। अनिश्चितता, चिंता और तनाव जैसी समस्याओं के चलते लोगों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। विशेष तौर पर महिलाओं में इस परिस्तिथियों के चलते बड़ी संख्या में हार्मोन असंतुलन जैसी समस्याएं देखने सुनने में आ रही है।

कोरोना का महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से असर पड़ा है। विशेष तौर कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुकी महिलाओं के मासिक चक्र में संक्रमण के प्रभाव स्वरूप विभिन्न समस्याएं और परिवर्तन देखने में आयें है। महिलाओं के स्वास्थ्य पर कोरोना के असर के बारें में ज्यादा जानने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने पद्मश्री डॉ मंजुला अनागानी, जोकि केयर अस्पताल हैदराबाद की क्लिनिकल डायरेक्टर तथा महिला रोग विभाग की प्रमुख है, से जानकारी ली।

कोरोना का महिलाओं के मासिक चक्र पर असर

डॉ मंजुला बताती है की कोरोना के चलते महिलाओं के हार्मोनल स्वास्थ्य और मासिक चक्र पर काफी असर पडा है क्योंकि कोरोना के चलते शरीर के विभिन्न अंगों में होने वाली सूजन का हार्मोन्स की मात्रा तथा उनकी गुणवत्ता पर असर पड़ता है। चिकित्सकों के संज्ञान में आने वाले अधिकांश मामलों में दो अवस्थाएं सबसे ज्यादा नजर आ रहीं है।

  • गौरतलब है की आमतौर पर कोविड-19 के इलाज के दौरान मरीजों को खून को पतला करने वाली दवाइयां दी जाती हैं । इन दवाइयों के असर के चलते महिलाओं की माहवारी में असामान्यता देखने में आ रही है जैसे मासिक चक्र में दो-तीन चक्र तक ज्यादा मात्रा में रक्त स्राव होना । यह एक अस्थाई स्थिति है जो कि आमतौर पर 6 महीने से 1 साल के भीतर सामान्य हो जाती है।
  • आमतौर पर कोविड-19 का टीकाकरण कराने के बाद भी महिलाओं के मासिक चक्र में कुछ परिवर्तन देखने में आते है । हालांकि यह भी स्थाई नही होते हैं और कुछ समय में अपने आप ठीक हो जाता है।

सेनेट्री नैपकिन का निस्तारण

डॉ मंजुला बताती हैं की हमारे शरीर की इम्युनिटी का मासिक धर्म के दौरान होने वाले रक्त स्राव पर असर नही पड़ता है। वही इस्तेमाल लिए गए सेनेट्री नैपकिन यानी पैड को संक्रमण फैलाने वाले कारकों में नही गिना जाता है। क्योंकि कोविड-19 रक्त का संक्रमण या रक्त के माध्यम से फैलने फैलने वाला संक्रमण नहीं है बल्कि यह एक ड्रापलेट संक्रमण है जो कि संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छिंकने से फैलता है। इसलिए ऐसी अवस्था में महिलाएं इस्तेमाल किए गए सैनिटरी नैपकिंस का निस्तारण उसी प्रकार से कर सकती हैं जिस तरह वह सामान्य अवस्था में करती हैं।

महिलाओं में बढ़ता डर और मोटापा

डॉ मंजुला बताती है कि कोरोना काल में ज्यादातर महिलाएं घर से बाहर निकालने पर कोरोना होने का डर या वैक्सीन लगवाने पर समस्या होने सहित कई प्रकार के अनजाने डर का शिकार बन रहीं है। यही नहीं संक्रमण के चलते होने वाले लॉकडाउन में ज्यादातर महिलाओं के खाने-पीने संबंधी आदतों तथा समय में परिवर्तन आया है। वर्क फर्म होम के चलते बढ़े कार्य के अतिरिक्त दबाव का असर उनकी दिनचर्या पर भी पड़ा है। दिनचर्या में शिथिलता तथा अनुशासन में कमी का असर महिलाओं में ओबेसिटी यानी मोटापे जैसी समस्याओं के रूप में नजर आ रहा है। मोटापे तथा हार्मोन में असंतुलन के कारण महिलाओं में पी.सी.ओ.एस जैसी समस्याएं भी देखने में आ रहीं है। यही नहीं जो महिलाएं पहले से ही इस समस्या से जूझ रही है, वर्तमान परिस्थितियां उनकी इस समस्या को ज्यादा गंभीर बना रही है। ।

पढ़ें: दर्द ही नही, माहवारी के दौरान और भी समस्याओं का सामना करती है महिलायें

सुरक्षित है अस्पताल जाना

डॉ मंजुला बताती हैं की वर्तमान परिस्थितियों में ज्यादातर महिलाएं न सिर्फ अपनी नियमित स्वास्थ्य जांच के लिए बल्कि सामान्य प्रजनन संबंधी रोग या समस्या होने पर भी जांच व इलाज के लिए अस्पताल जाने से हिचकिचा रही हैं। क्योंकि अस्पतालों को लेकर आम तौर पर यह भ्रम फैला हुआ है कि यदि कोई व्यक्ति अस्पताल जाता है तो वह निसंदेह कोरोना संक्रमित हो जाएगा जो सही नहीं है। कोरोना के मद्देनजर अस्पताल सबसे ज्यादा सुरक्षित स्थानों में से एक है क्योंकि वहां पर सुरक्षा के सभी मानकों तथा उपायों का उपयोग किया जाता हहै । वैसे भी सुरक्षा के मद्देनजर आमतौर पर मल्टीस्पेशलिटी अस्पतालों तथा कोविड अस्पतालों को अलग कर दिया गया है।

नियमित जांच जरूरी

डॉ मंजुला बताती हैं कि किसी भी प्रकार की समस्या होने पर ही नहीं बल्कि सामान्य अवस्था में भी महिलाओं को अपने स्वास्थ्य की नियमित जांच कराते रहना चाहिए। विशेष तौर पर ऐसी महिलायें जो रजोनिवृत्ति अवस्था से जूझ रही हैं , उनके लिए नियमित चिकित्सीय जांच बहुत जरूरी होती है। उदाहरण के लिए यदि किसी महिला को रजोनिवृत्ति अवस्था के चलते लगातार 10 दिन तक रक्तस्राव होता रहे तो उस महिला में खून की कमी के लक्षण नजर आने लगते हैं, जिन पर यदि ध्यान ना दिया जाए तो महिलाओं को पेट में दर्द तथा व्यवहार में चिड़चिड़ापन जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए manjuanagani@yahoo.com. पर संपर्क किया जा सकता है।

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