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बीमारी नहीं है होमोसेक्सुअल या बायसेक्सुअल होना

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Published : Jan 2, 2022, 8:30 AM IST

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बीमारी नहीं है होमोसेक्सुअल या बायसेक्सुअल होना

हमारे समाज में होमोसेक्सुअल या बायसेक्सुअल लोगों को आमतौर पर टेढ़ी निगाह से देखा जाता है. सिर्फ अशिक्षित ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में शिक्षित लोगों को भी लगता है कि यह किसी प्रकार का रोग या शारीरिक समस्या है, जो सही नहीं है. दरअसल होमोसेक्सुअल या बायसेक्सुअल होना किसी प्रकार का रोग या बीमारी नहीं है जिसका इलाज दवाइयों से किया जा सके. यह उतना ही सामान्य है जितना दो विपरीत लिंग के लोगों के बीच का आकर्षण होना.

पश्चिमी देशों का प्रभाव कहें या विचारों में बढ़ती उन्मुक्ता, पिछले कुछ सालों में यौन प्राथमिकताओं यानी सेक्सुअल प्रेफ्रेंस जैसे मुद्दों पर लोग खुलकर बातें करने लगे हैं. होमोसेक्सुअल (homosexual), बायसेक्सुअल (bisexual) तथा हेट्रोसेक्सुअल (heterosexual) जैसे नाम आजकल शहरी क्षेत्र की युवा पीढ़ी के लिए अनजान नहीं है. काफी लोग बायसेक्सुअल या होमोसेक्शुअल और एलजीबीटी कम्युनिटी के लोगों को अपना समर्थन भी देते हैं. लेकिन आज भी ना सिर्फ हमारे देश में बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में होमोसेक्सुअलिटी तथा बाईसेक्सुअलिटी को एक बीमारी के तौर पर देखा जाता है.

आज भी वैश्विक समाज का एक बड़ा तबका ऐसे लोगों तथा ऐसे रिश्तों को मान्यता नहीं देता है. हमारा देश भी इस से इतर नहीं है. इस विरोध या सामाजिक दुराव से बचने के लिए बहुत से होमोसेक्सुअल या बायसेक्सुअल लोग अपने बारें में लोगों को खुलकर बता भी नहीं पाते हैं जिसके चलते वे दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर हो जाते हैं. जिसका गहरा असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है.

समाज में होमोसेक्सुअल या बायसेक्सुअल लोगों की स्तिथि तथा उनके सामने आने वाली समस्याओं को समझने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने मनोचिकित्सक (पीएचडी) डॉ. रेणुका शर्मा से बात की.

क्या है होमोसेक्सुअल, बायसेक्सुअल तथा हेट्रोसेक्सुअल

डॉ रेणुका शर्मा बताती हैं कि होमोसेक्शुअल या बायसेक्शुअल लोगों की मानसिक समस्याओं को समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर होमोसेक्शुअल, बायसेक्शुअल या हेट्रोसेक्शुअल होता क्या है?

  • होमोसेक्सुअल ( गे तथा लैसबियन)
    “गे” शब्द मूल रूप से समलैंगिक पुरुष के लिए उपयोग में लाया जाता है. वहीं “लेस्बियन” शब्द का उपयोग समलैंगिक महिला के लिए किया जाता है. समलैंगिक यानी समान लिंग. यानी ऐसे लोग जो अपने समान लिंग वाले लोगों को लेकर आकर्षित हों उन्हें समलैंगिक कहा जाता है. दुनिया के कई देशों में समलैंगिक विवाह तथा समलैंगिक रिश्तो को मान्यता मिली हुई है, लेकिन हमारा देश अभी उस श्रेणी में नहीं आता है.
  • बायसेक्सुअल
    ऐसे महिला या पुरुष जो समान लिंग या विपरीत लिंग, यानी पुरुष और महिलाओं दोनों की तरफ ही भावनात्मक या यौन आकर्षण महसूस करते हैं, इस श्रेणी में आते हैं. पेन सेक्सुअल भी कुछ हद तक बायसेक्सुअल जैसे ही होते हैं.
  • हेट्रोसेक्सुअल
    ऐसे लोग जो विपरीत लिंग के लोगों के प्रति आकर्षित होते हैं यानी महिला पुरुष की तरफ तथा पुरुष महिला की तरफ, वह हेट्रोसेक्सुअल कहलाते हैं.
  • असेक्सुअल
    बहुत से ऐसे भी लोग होते हैं जो पुरुष या महिला किसी के भी प्रति आकर्षण महसूस नहीं करते हैं यानी उन में यौन इच्छा नहीं होती है. ऐसे लोग असेक्सुअल श्रेणी में आते हैं.

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क्या होमोसेक्सुअलिटी तथा बायसेक्सुअलिटी कोई बीमारी है?

मनोचिकित्सक डॉक्टर रेणुका शर्मा बताती हैं कि होमोसेक्सुअलिटी तथा बायसेक्सुअलिटी किसी प्रकार की शारीरिक बीमारी या रोग नहीं होता है जिसे दवाई देकर या किसी थेरेपी द्वारा ठीक किया जा सके. यह उतना ही सामान्य है जितना दो विपरीत लिंग के लोगों का एक दूसरे के प्रति यौन आकर्षण रखना. लेकिन ज्यादातर मामलों में असेक्सुअल होना शारीरिक समस्याओं का नतीजा हो सकता है, जिसके लिए चिकित्सीय इलाज की मदद ली जा सकती है.

वह बताती है कि ज्यादातर लोगों को किशोरावस्था में उनकी सेक्सुअल ओरियंटेशन यानीं यौन प्राथमिकताओं के बारे में पता चलना शुरू हो जाता है. आमतौर पर होमोसेक्सुअल तथा हेट्रोसेक्सुअल लोगों को अपना प्राथमिकताओं को जानने में ज्यादा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है. हालांकि हमारी सामाजिक व्यवस्था, वर्जनाओ और सोच के चलते ज्यादातर होमोसेक्सुअल लोग यह जानने के बावजूद की उनका यौन आकर्षण समलैंगिक लोगों की तरफ ज्यादा है इस बात को अपनाने व बताने में हिचकते हैं.

लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि किशोरावस्था में बहुत से बच्चे यह समझ ही नहीं पाते कि वह विपरीत लिंग की ओर आकर्षित हो रहें हैं या समान लिंग की ओर. ऐसे लोगों को आम तौर पर अपने यौन आकर्षण से जुड़ी प्राथमिकताओं को समझने में काफी समय लग जाता है. ऐसे बच्चे कई बार बायसेक्सुअल भी हो सकते है.

करना पड़ता है मानसिक दबाव का सामना

डॉक्टर रेणुका बताती है कि हमारे समाज में हेट्रोसेक्सुअल लोगों को सामान्य माना जाता है क्योंकि वे सामान्य रूप से विपरीत लिंग के लोगों की ओर आकर्षित होते हैं. वही अन्य प्रकार की श्रेणी में आने वाले लोगों को समाज में टेढ़ी निगाह से देखा जाता है. जिसके चलते उन लोगों का ना सिर्फ मनोबल गिरता है बल्कि वे स्वयं को समाज से अलग-थलग महसूस करने लगते हैं. बहुत से लोग परेशानियों से बचने के लिए अपनी यौन प्राथमिकताओं या पसंद के बारें में दूसरों से नहीं बताते हैं. समाज का हिस्सा बने रहने तथा लोगों के तिरस्कार से बचे रहने के लिए उन्हें एक अलग ही प्रकार का व्यक्ति बने रहने का नाटक करना पड़ता है, जिसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ता है. ज्यादातर मामलों में लोगों में तनाव व अवसाद के गहरे लक्षण नजर आने लगते हैं.

इस प्रकार की मानसिक समस्याओं से बचने या उन्हे कुछ हद तक कम करने के लिए बहुत जरूरी है कि ऐसे लोग अपने माता-पिता या किसी नजदीकी से बात करें और उन्हे अपने बारें में बताएं. तथा हर संभव प्रयास करें की आप जैसे हैं वे आपको उसी रूप में स्वीकार कर लें. भारतीय परिवारों में विशेषतौर पर होमोसेक्सुअलिटी को स्वीकारना आसान बात नही है, ऐसे में अपने मनोबल को बनाए रखें. इसके बावजूद यदि व्यक्ति ज्यादा मानसिक दबाव महसूस करता है तो आजकल कई शहरों में ऐसे संगठन तथा काउंसलर्स व सलाहकार है जो आपकी मदद कर सकते हैं. उनके बारें में जानकारी लेकर उनसे मदद मांगी जा सकती है .

वहीं ऐसे लोग जिनके परिवार या दोस्तों में कोई व्यक्ति बायसेक्सुअल या होमोसेक्सुअल हो तो उक्त व्यक्ति का अपमान या उसे अनदेखा न करें. साथ ही यह समझने का प्रयास करें कि वह उतना ही सामान्य है जीतने वे खुद हैं तथा उन्हे आदर और समर्थन दें. और यदि उसे आवश्यकता हो तो उसकी मदद करने का भी प्रयास करें.

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