नई दिल्ली: कोरोना महामारी को एक साल हो गए हैं. इस बीच इससे निपटने के लिए लॉकडाउन, दो गज की दूरी और प्लाज्मा थैरेपी जैसे तमाम उपाय अपनाए गए, अब तो कोरोना को परास्त करने के लिए टीका भी आ चुका है, लेकिन कोरोना वायरस से छुटकारा नहीं मिला है. विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना वायरस एक नए स्वरूप में फिर से लौट चुका है, जो पहले से ज्यादा खतरनाक है और इससे महामारी की संभावना पहले से भी ज्यादा है. कुछ विशेषज्ञ इसके लिए सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
पिछली बार से ज्यादा तेज है इस बार की लहर
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉक्टर अग्रवाल बताते हैं कि उन्हें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कोरोना की एक और शक्तिशाली लहर आ चुकी है. उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 10 फरवरी से लेकर 10 मार्च तक 9903 कोरोना के नए मामलों से लेकर 22,854 केस सामने आए हैं. लगभग ढाई गुना नये केस तक आने में केवल 20 दिन लगे. अगर इसकी तुलना पिछले साल 3 जून से लेकर 3 जुलाई तक आने वाली लहर के साथ करें तो यह आंकड़ा 9633 से लेकर 22,771 केस सामने आए थे. लेकिन इसमें एक अंतर यह है कि जो मामले अभी पिछले 20 दिनों में सामने आए हैं, लगभग इतने ही मामले तक पहुंचने के लिए पिछले साल जून से जुलाई महीने के बीच 1 महीने का समय लगा था. इसका मतलब यह है कि अभी कोरोना का जो नई लहर आई है, वह पिछले लहर की तुलना में 10 दिन ज्यादा तेज है.
दूसरी लहर के ज्यादा तेज होने का मतलब वायरस नया है
डॉ अग्रवाल बताते हैं कि जब भी दूसरी लहर ज्यादा तेज होती है तो इसका मतलब स्पष्ट है कि यह एक नया वायरस है. कोई ऐसा कारक है जो सुपर स्प्लेंडर का काम कर रहा है. कुर्ला से पटना के लिए सरकारी गाइडलाइंस के प्रति लापरवाह हो गए हैं और प्रशासनिक तौर पर भी यह एक असफलता है.
कोरोना को बढ़ाने में सरकार की भूमिका
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव और वैक्सीन india.org के फाउंडर डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि राजधानी दिल्ली समेत पूरे देश भर में एक बार फिर कोरोनावायरस की लहर चल पड़ी है. महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक समेत पांच राज्यों की हालत ज्यादा खराब है. हैरानी इस बात की नहीं है कि लोग लापरवाह हो गए हैं. उनके अनुमान के मुताबिक, कोरोना को नियंत्रित करने में सरकार विफल रही है. जिसके कारण कोरोना तेजी से फैल रहा है और लोग मौज में घूम रहे हैं.
शैक्षणिक संस्थानों को खोलने में कई गई जल्दबाजी
डॉ गंभीर बताते हैं कि अभी तक डिजास्टर एक्ट लगा हुआ है. डिजास्टर एक्ट में पीएम, सीएम और डीएम ही ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. किसी जिले के जिला अधिकारी का यह दायित्व होता है कि वह कोरोना से संबंधित सभी सरकारी गाइडलाइंस का पालन करवाएं. स्कूल-कॉलेज और शैक्षणिक संस्थानों को तत्काल बंद करने की जरूरत है, क्योंकि यही वह जगह है, जहां पर ज्यादा भीड़ इकट्ठा हो रही है. केवल लोगों की अनुशासित हो जाने मात्र से ही बढ़ते हुए कोरोना की संख्या कम नहीं हो जाएगी. सरकार का झंडा और डंडा दोनों ही जरूरी है. नियमों का कड़ाई से पालन करने की नीतियां होनी चाहिए.
टीकाकरण को लेकर सरकार की दोषपूर्ण नीतियां
डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि दूसरी अहम चीज है टीकाकरण को लेकर सरकार द्वारा बनाई नीतियों में बदलाव की. हमारे देश में टीकाकरण को लेकर किसी तरह के आंकड़ें सामने नहीं आ रहे हैं, जबकि दूसरे देशों में आंकड़ों को लेकर पारदर्शिता बरती जा रही है. कोरोना वैक्सीन उत्पादन करने वाले देशों की सूची में भारत सबसे नीचले पायदान पर है. हमारी आबादी सवा सौ करोड़ से ज्यादा है और केवल ढाई करोड़ वैक्सीन लगा कर के हम खुश हो रहे हैं. हमने कोरोना वायरस को काबू में कर लिया है. इंटरनेशनल डिप्लोमैसी कर फौरी तौर पर खुश होना जरूरी नहीं है.
सरकार को अपने टीकाकरण की नीतियों में बदलाव की जरूरत
कई देशों ने कोरोना का टीकाकरण के लिए प्राथमिक समूह में 18 वर्ष से लेकर 56 वर्ष के लोगों को शामिल किया है, जिसे आमतौर पर प्रोडक्टिव पापुलेशन कहते हैं. सवाल यह है कि हमें किस उम्र समूह को पहले बचाना चाहिए. बुजुर्गों को सुरक्षित करना जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है. ऐसे लोगों को सुरक्षित करना जो सुपर स्प्रेडर बन सकते हैं, जो एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं. सरकार को टीकाकरण के मामले में अपनी नीतियों में बदलाव लाने की जरूरत है.
टीके की प्राथमिकता पर सवाल
डॉ अजय गंभीर ने बताया कि अगर वह आज एडमिनिस्ट्रेटर होते, नीति आयोग में होते या प्रधानमंत्री होते तो सबसे पहले प्राथमिक समूह में हम प्रोडक्टिव समूहों को टीका लगवाते. हमारे बीच के उम्र समूह के जो लोग हैं, जो ज्यादा मूवमेंट नहीं करते हैं, उन्हें प्राथमिक समूह में रखने की जरूरत नहीं थी.
टीके की कम उपलब्धता
डॉ गंभीर टीके की उपलब्धता और इसके सीमित विकल्पों को लेकर बताते हैं कि भारत में टीके की उपलब्धता जिस लेवल पर होनी चाहिए, उस लेवल पर नहीं हो पा रही है. कई देश ऐसे हैं, जहां पर हर तरह के टीके का विकल्प उपलब्ध है, लेकिन हमारे देश में केवल 2 टीके का विकल्प हैं, जिसमें ज्यादातर लोग कोविशील्ड को ही पसंद कर रहे हैं. लोगों के पास टीकाकरण के लिए ज्यादा विकल्प देने की आवश्यकता है, जिससे कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीका लगाया जा सके.