नई दिल्ली: पिछले कुछ दशकों में चिकित्सीय और निदान में काफी प्रगति हुई है. रोगों के निदान, उपचार और रोकथाम में क्रांति आई है. पेनिसिलिन के आविष्कार से लेकर आनुवंशिक विकारों के सुधार के लिए जीन थेरेपी के विकास तक चिकित्सा देखभाल में बदलाव की कुंजी रहा है. आज तकनीकी प्रगति ने एक नया डिजिटल इकोसिस्टम बनाने की नीति को सक्षम किया है. यह न केवल स्वास्थ्य सेवा की पहुंच और दक्षता को बढ़ाता है, बल्कि इसे अधिक लागत प्रभावी भी बनाता है. उक्त बातें एम्स के आईटी विभाग के हेड डॉ. सुशील कुमार मेहर ने दिल्ली में आयोजित हेल्थकेयर शिखर सम्मेलन में कही.
सुशील कुमार ने बताया कि एम्स दिल्ली तकनीकी रूप से काफी समृद्ध हो रहा है. ओपीडी कार्ड और डायग्नोसिस से लेकर सर्जरी तक में अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग शुरू हो गया है. क्यूआर कोड से ओपीडी रजिस्ट्रेशन हो जाता है. इसके लिए लंबी कतारों में मरीजों को लगने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. शोध में एम्स का विश्वभर में एक सम्मानित स्थान है.
एम्स के सभी विभागों में रोबोटिक लैब की व्यवस्था है, जहां प्रति घंटे 3 हजार से अधिक सैंपल की जांच की जा रही है. एम्स में ऐसे दो स्मार्ट लैब हैं, जहां एक दिन में अधिकतम डेढ़ लाख टेस्ट किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, डिजिटल के बीच मौजूदा अंतर को पाट देगा. मिशन ने कतार रहित ओपीडी पंजीकरण के लिए 50 लाख से अधिक डिजिटल टोकन जारी करके एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है.
रोबोटिक्स में भारत वर्ल्ड लीडर के रूप में उभर रहा: सफदरजंग अस्पताल की एमएस डॉ. वंदना तलवार ने कहा कि भारत स्वास्थ्य देखभाल में रोबोटिक्स के शिक्षण और निर्माण में विश्व नेता के रूप में उभर रहा है. रोबोटिक रीनल ट्रांसप्लांट को हाल ही में एनएफसी पोर्टल पर 52 मेडिकल कॉलेजों और 20 विभिन्न देशों में लाइव दिखाया गया था. हम विकास लक्ष्यों के स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. भारत का लक्ष्य 2023 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज हासिल करना है.
1.4 अरब लोगों की आबादी के लिए केवल तीन हजार न्यूरोलॉजिस्ट: शिखर सम्मेलन में दिल्ली सरकार के मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (आईएचबीएएस) के निदेशक प्रोफेसर राजेंद्र के धमीजा ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में स्वास्थ्य पर हमारा प्रति व्यक्ति व्यय बढ़ा है. बीमा क्षेत्र बड़े पैमाने पर आ रहा है और डिजिटल स्वास्थ्य भी इसमें शामिल है.
1.4 अरब लोगों की आबादी के लिए हमारे पास केवल तीन हजार न्यूरोलॉजिस्ट हैं. जबकि जरूरत इस संख्या से पांच गुना अधिक है. इसी प्रकार हमारे पास 9 मनोचिकित्सक हैं जबकि आवश्यकता कम से कम 30 हजार की है. क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक केवल तीन हजार हैं जबकि दस हजार से अधिक की जरूरत है. एक समाज के रूप में हमें मानसिक स्वास्थ्य को कलंकित करने से बचना होगा और अपनी मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता में सुधार करना होगा.
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