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सीआईआई ने सर्कुलर इंडिया इकोनॉमी मॉडल प्रस्तुत किया, अब कचरा उगलेगा सोना!

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Dec 7, 2023, 6:04 PM IST

सर्कुलर इंडिया इकोनॉमी मॉडल प्रस्तुत
सर्कुलर इंडिया इकोनॉमी मॉडल प्रस्तुत

Circular India Economy Model: सीआईआई कचरा प्रबंधन कंपनियों के साथ मिलकर सर्कुलर इंडिया इकोनॉमी मॉडल का एक मॉडल प्रस्तुत किया है. जिसे सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा गया है. साल 2030 तक कचरे की इंडस्ट्री 500 बिलियन डॉलर की होगी.

सर्कुलर इंडिया इकोनॉमी मॉडल प्रस्तुत

नई दिल्ली: आप अभी जिसे कचरा समझकर कूड़ेदान में फेंक रहे हैं. वहीं, आपको धनवान बना सकता है. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को बढ़ाकर देश को विकसित होने की गति को बढ़ा सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि कूड़े के मूल्य की पहचान कर इसे सर्कूलर इकोनोमी का हिस्सा बनाया जाए. सीआईआई ने 'वेस्ट टू वर्थ' का एक ऐसा ही सर्कुलर इंडिया इकोनॉमी मॉडल पेश किया है, जो भारत को तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर कर सकता है.

दिल्ली में आयोजित इनोवेटिव वार्षिक मीटिंग में आरई सस्टेनेबिलिटी के सीईओ मसूद मल्लिक ने 'वेस्ट टू वर्थ' सेमिनार के मॉडरेटर के रूप में इंडिया सर्कुलर इकॉनमी का एक मॉडल और ड्राफ्ट पेश किया, जिस पर विचार करने के लिए भारत सरकार को सौंपा गया है. मॉडल की मुख्य विशेषता कचरे के स्मार्ट प्रबंधन से ना केवल देश के जीडीपी को बढ़ाना है, बल्कि कचरे बीनने वाले लगभग ढाई करोड़ लोगों को नया रोजगार उपलब्ध कराना भी है. इससे प्रदूषण कम होगा और पर्यावरण की सुरक्षा अपने आप हो जाएगी.

सीआईआई कचरा प्रबंधन कंपनियों के साथ मिलकर सर्कुलर इंडिया इकोनॉमी मॉडल का एक शानदार मॉडल प्रस्तुत किया है.
सीआईआई कचरा प्रबंधन कंपनियों के साथ मिलकर सर्कुलर इंडिया इकोनॉमी मॉडल का एक शानदार मॉडल प्रस्तुत किया है.

कचरे की आधे ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी होगी: मल्लिक, बताते हैं कि यदि आज की तारीख में सही नीतियों को लागू किया जाए तो 2030 तक कचरे की इंडस्ट्री करीब 500 बिलियन डॉलर यानी आधा ट्रिलियन डॉलर की हो सकती है. रीसाइक्लिंग, वेस्ट मैनेजमेंट और रिसोर्स रिकवरी इंडस्ट्री में सीआईआई के माध्यम से भारत सरकार को प्रस्तुत किया गया है. उम्मीद है कि अगले तीन महीने में सबके साथ मिलकर इस फ्रेमवर्क से एक नए सर्कुलर इकोनोमी को डेवलप किया जाएगा. करोड़ों नए रोजगार का सृजन होगा. यह केवल कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि इस अनुमान को वास्तविकता में बदला जा सकता है.

अभी यह इंडस्ट्री असंगठित है. यदि इसे योजनाबद्ध तरीके से बड़े स्तर पर संगठित किया जाए व रीसायकल और रिसोर्स रिकवरी वैल्यू एडेड इंडस्ट्रीज के रूप में पहचान दिया जाए तो करोड़ों नए रोजगार पैदा होंगे. वो सभी लोग जिन्हें आज के दिनों में कचरा बीनने वाला कहा जाता है, उनके पास भी एक सम्मानित जॉब होगा. उन्हें अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा के साथ जोड़ा जा सकता है. उन्हें प्रशिक्षण देकर, सुरक्षा उपकरण और समाजिक सुरक्षा के साथ उनकी समाजिक और आर्थिक सुरक्षा बढ़ाई जा सकती है.

2030 तक कचरे की इंडस्ट्री करीब 500 बिलियन डॉलर यानी आधा ट्रिलियन डॉलर की हो सकती है.
2030 तक कचरे की इंडस्ट्री करीब 500 बिलियन डॉलर यानी आधा ट्रिलियन डॉलर की हो सकती है.

कचरे का स्मार्ट प्रबंधन जरूरी: मल्लिक बताते हैं कि यदि समय रहते स्मार्ट तरीके से कचरा प्रबंधन पर ध्यान ​नहीं दिया गया, तो दिल्ली में भलस्वा और गाजीपुर जैसे कूड़े के पहाड़ हर मेट्रो शहर में दिखाई देगा. आबादी में दुनिया का सबसे बड़ा देश भारत बन गया है. यह कोई गर्व करने वाली बात नहीं है. जितनी आबादी उतना कचरा. यदि स्मार्ट तरीके से कचरा प्रबंधन पर काम किया गया तो भारत में सूरसा की तरह बढ़ रहे प्रदूषण की समस्या कम कर पाएंगे. दूसरी तरफ कौशल विकास कर करोड़ों लोगों के लिए रोजगार भी उपलब्ध करा पाएंगे. इससे पर्यावरण का भी संरक्षण होगा.

नेचुरल सर्कुलर इकॉनमी मॉडल का ड्राफ्ट तैयार: मल्लिक ने बताया कि कूड़े के स्मार्ट प्रबंधन के लिए संबंधित ​इंडस्ट्री के साथ-साथ कॉमर्स, फाइनेंस, इनवायरमेंट और शहरी विकास मंत्रालय की मदद की आवश्यकता होगी. नेचुरल सर्कूलर इकनोमी जो हमने ड्राफ्ट किया है. सीआईआई के टास्क फोर्स ने इसपर काफी काम किया है. इसका मूल भाव यही है कि जिसे हम आजतक कचरा मानकर फेंकते रहे हैं वह हमारे उसे एक इंडस्ट्रीयल रिसोर्स रिकवरी के फीड स्टॉक के रूप में देखा जाए. इसके पहले कि कचरे के बडे-बड़े पहाड़ बने इसकी रिकवरी, रिसाइक्लिंग और एनर्जी के रूप में बदल दिया जाए. तब कचरा केवल कचरा नहीं धन का एक साधन बन जाएगा.

सीआईआई कचरे को बनाएगा एक बेहतरीन संसाधन: मल्लिक ने बताया कि कचरे को मिक्स होने के पहले रिकवर करना शुरू कर दें. उसके बाद इसकी उपयोगिता के बेहतर उपयोग तलाश करें कि इसके रिसाइकिल का सबसे अच्छा उपयोग क्या हो सकता है. तीसरा रिकवर और रिसाइकिल कर जो प्राप्त हो उसे वापस इकोनोमी में डाल दें. इसे बड़े पैमाने पर करने की आवश्यकता है. इससे एक तरफ कचरे की समस्या का समाधान होगा. दूसरी तरफ नेचुरल रिसोर्सेज के रूप में भारत तेल, मटेरियल या मिनरल्स या अलग-अलग क्रिटिकल मेटल के रूप में आयात करता है वह कम होगा.

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