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प्राइवेट स्कूलों में ईडब्ल्यूएस कोटे की 7 हजार से ज्यादा सीटें खाली, सीटें कम करने के बावजूद नहीं हुई स्कूलों में भर्ती

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 6, 2023, 7:44 PM IST

दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर और स्पेशल कैटेगरी की सीटें इस साल भी नहीं भरी गई. स्कूलों में सीटें पिछले साल के मुकाबले कम कर दी गई है और बाकी बची सीटें भी नहीं भर पाई हैं.

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नई दिल्ली: दिल्ली में पक्ष विपक्ष पर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने केजरीवाल सरकार पर दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक बार फिर निशाना साधा है. बिधूड़ी ने कहा कि केजरीवाल सरकार की कमजोर वर्ग के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला देने की नीति पूरी तरह से फेल हो गई है. आर्थिक रूप से कमजोर यानी ईडब्ल्यूएस और वंचित वर्ग या डीजी वर्ग के लिए इस साल स्कूलों में 7 हजार से अधिक सीटें खाली पड़ी हैं, जबकि शैक्षिक सत्र आरंभ हुए छह महीने बीत चुके हैं.

पहले से कम की गई सीटें: बिधूड़ी ने कहा कि शिक्षा विभाग यही तय नहीं कर पा रहा कि किस आधार पर दाखिला दिया जाए जबकि शिक्षा मंत्री को राजनीति से ही फुरसत नहीं है, इसलिए वह शिक्षा की तरफ ध्यान ही नहीं दे पा रही हैं. उन्होंने कहा कि इस साल आर्थिक रूप से कमजोर और स्पेशल केटेगिरी के बच्चों की सीटें पहले से कम कर दी गई हैं. उसके बावजूद सीटें खाली पड़ी हैं. 2020-21 में दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में इस वर्ग के लिए कुल 52,400 सीटें रिजर्व की गई थीं लेकिन 2023-24 के सत्र में इन सीटों की संख्या को घटाकर 35,186 कर दिया गया. सितंबर के अंत तक के शिक्षा विभाग के अपने आंकड़ों के अनुसार कुल मिलाकर 28 हजार बच्चों को ही प्रवेश दिया जा सका है.

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ड्रा से होती है सीट अलॉट: बिधूड़ी ने कहा कि अस्पतालों की तरह प्राइवेट स्कूलों को भी सरकार ने रियायती दरों पर जमीन अलॉट की थी और उसके एवज में स्कूलों को 25 फीसदी सीटें आर्थिक रूप से पिछड़े और 3 फीसदी स्पेशल केटेगिरी के बच्चों के लिए रिजर्व रखनी होती है. आम आदमी पार्टी सरकार के आने के बाद इन दाखिलों पर सरकार ने अपना पूरा नियंत्रण बना लिया और तभी से सीटें खाली पड़ी रहती हैं. इस साल अभी तक पूरे ड्रा ही नहीं निकाले जा सके हैं. ड्रा में एक बच्चे को कई स्कूल अलॉट कर दिए गए हैं.

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि एक तरफ गरीबों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पा रहा. सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम हो रही है और प्राइवेट स्कूलों में रिजर्व सीटें खाली पड़ी हैं. दिल्ली सरकार का शिक्षा निदेशालय दाखिला दिलाने के लिए नियम ही तय नहीं कर पा रहा. शिक्षा विभाग ने तय किया कि इस वर्ग में दाखिले के लिए बच्चों का आधार कार्ड जरूरी है लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने इस शर्त को हटा दिया. अब शिक्षा विभाग ने अभिभावकों के लिए आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया है.

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