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शुक्रवार से शुरू हो रहा पौष मास, भगवान सूर्य की पूजा करने से मिलती है विशेष कृपा

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Published : Dec 8, 2022, 6:19 PM IST

Updated : Dec 8, 2022, 10:52 PM IST

पंचांग के अनुसार, हिंदू कैलेंडर के 10वें महीने को पौष माह कहा जाता है. गाजियाबाद स्थित शिव शंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र के आचार्य शिव कुमार शर्मा के मुताबिक चंद्रमास की गणना के अनुसार 9 दिसंबर से पौष माह का प्रारंभ होगा. जिसकी समाप्ति 7 जनवरी 2023 को होगी. इस महीने में पिंडदान और श्राद्ध जैसे कार्य करने का भी विशेष महत्व है.

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नई दिल्लीः पंचांग के अनुसार, हिंदू कैलेंडर के दसवें महीने को पौष माह कहा जाता है. जिस महीने की पूर्णिमा को चांद जिस नक्षत्र में रहता है. उस मास का नाम उस नक्षत्र के आधार पर रखा गया है. पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है. इसलिए इस महीने को पौष का मास कहा गया है. हिंदू धर्म में पौष मास भगवान सूर्य को समर्पित है. मान्यता है कि पौष मास में भगवान सूर्य की पूजा करने से विशेष कृपा होती है.

गाजियाबाद स्थित शिव शंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र (Shiv Shankar Jyotish Evam Vastu Anusandhan Kendra, Ghaziabad) के आचार्य शिव कुमार शर्मा (Acharya Shiv Kumar Sharma) के मुताबिक, मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा 8 दिसबर को है. चंद्रमास की गणना के अनुसार, 9 दिसंबर से पौष माह का प्रारंभ होगा. जिसकी समाप्ति 7 जनवरी 2023 को होगी. इस महीने में पिंडदान और श्राद्ध जैसे कार्य करने का भी विशेष महत्व है.

शास्त्रों के अनुसार, सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही पिंडदान का महत्व बढ़ जाता है. पौष माह में जिन पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है, वे तुरंत बैकुंठ लोक को वास करने चले जाते हैं. सामान्य महालय पक्ष का छोटा रूप ही पौष माह का पितृ पक्ष है.

भारतीय सांस्कृतिक पर्व विक्रम संवत अर्थात भारतीय पंचांग में वर्णित चंद्रमास के अनुसार मनाए जाते हैं. जिनमें मुख्य रूप से होली, दीपावली, दशहरा, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नवरात्र, पितृपक्ष आदि त्यौहार होते हैं. लेकिन वैवाहिक कार्य अथवा भूमि भवन से संबंधित कार्य नींव पूजन, गृह प्रवेश आदि सौर सक्रांति के अनुसार होते हैं. हिंदी महीने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से और पूर्णिमा तक चंद्रमा की कलाओं के अनुसार होते हैं. निरयण गणना के अनुसार संक्रांति अंग्रेजी मास की प्रत्येक चौदह या पंद्रह तारीख से आरंभ होती है. भारतवर्ष के पंचांगों में अधिकतर निरयण सक्रांति का प्रयोग किया जाता है.

निरयण सक्रांति के अनुसार ही वैवाहिक मुहूर्तों का निर्णय होता है. भारतीय समाज में लोकाचार के अनुसार चैत्र एवं पौष मास को खर अथवा मल मास माना जाता है. क्योंकि जब सूर्य बृहस्पति की राशि मीन और धनु में होते हैं तो उसमें वैवाहिक कार्य करना निषेध है. किंतु समाज में व्याप्त भ्रांतियां हैं कि पौष के महीने में शादी नही करनी चाहिए. इस बार पौष मास की सक्रांति 16 दिसंबर से 13 जनवरी तक रहेगी. इसमें सूर्य धनु संक्रांति में रहेंगे.

इस समयावधि में ही खर अथवा मलमास माना जाएगा. मीन की संक्रांति चैत्र मास 14 मार्च से 13 अप्रैल तक होती है. मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा 8 दिसबर को है. चंद्रमास की गणना के अनुसार 9 दिसंबर से पौष माह का प्रारंभ होगा. जबकि वैवाहिक मुहूर्त उसके पश्चात भी हैं. यह वैवाहिक मुहूर्त इसलिए हैं क्योंकि सक्रांति के अनुसार मल मास 16 दिसंबर से लगेगा. इसलिए हमें ध्यान रखना पड़ेगा कि सौर सक्रांति के अनुसार ही वैवाहिक मुहूर्त दिए जाते हैं ना कि चन्द्र मास के अनुसार.

पौष मास में पड़ने वाले कुछ त्योहार

० 11 दिसंबर:- संकष्टी चतुर्थी व्रत

- भगवान गणेश से संकट निवारण के लिए इस दिन प्रार्थना की जाती है. संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा होती है. मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा करने से आपके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. इसलिए इस दिन को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. चलिए संकष्टी चतुर्थी व्रत का विधि विधान और कथा के बारे में जानते हैं.

० 16 दिसंबर:- धनु संक्रान्ति, कालाष्टमी

- इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश करते हैं. इस दिन को धनु संक्रांति कहा जाता है. इस दिन मंत्रों के साथ सूर्य की पूजा करने से सफलता के द्वार खुलते हैं.

० 19 दिसंबर:- सफला एकादशी व्रत

- पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत करने से जीवन में स्थिरता आती है. साथ ही वैवाहिक संबंध भी बेहतर होते हैं. संतान की आयु बढ़ती है.

० 21 दिसंबर:- प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि

- मासिक शिवरात्रि के समय शिव की आराधना करने पर हर मनोकामना पूरी होती है. वैसे तो शिव थोड़ी सी पूजा और श्रद्धा से प्रसन्न हो जाते हैं. लेकिन खास मौकों पर यदि आप शिव की आराधना करें तो इसका फल जीवन पर्यन्त मिलता रहता है.

० 23 दिसंबर:- पौष माह की अमावस्या

- सनातन धर्म में पौष का महीना पवित्र माना जाता है और इस माह की अमावस्या और पूर्णिमा का खास महत्व है. पौष महीने में आने वाली अमावस्या को पौष अमावस्या कहते हैं.

० 24 दिसंबर:- चंद्र दर्शन

- सनातन धर्म के अनुसार, चंद्र दर्शन को पवित्रता, खुशी और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. ऐसे लोग जिनकी कुंडली में चंद्र दोष कष्टों का कारण बन रहा हो या फिर किसी को चंद्र देवता से सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद पाना हो, उन्हें चंद्र दर्शन एवं उनकी पूजा विशेष पूजा करना चाहिए.

28 दिसंबर:- स्कन्द षष्टी

- हिन्दू पंचांग के अनुसार स्कंद षष्ठी का व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन रखा जाता है. स्कंद षष्ठी पूरे साल में 12 और महीने में एक बार आती है. इस दिन शिव-पार्वती के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा की जाती है और मंदिरों में अखंड दीपक भी जलाए जाते हैं.

० 30 दिसंबर:- मासिक दुर्गाष्टमी

- वर्ष के हर मास में मां आदिशक्ति की उपासना विधिवत अष्टमी तिथि को होती है. भक्तगण हर महीने की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी का व्रत रखते हैं और मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करते हैं.

Last Updated :Dec 8, 2022, 10:52 PM IST
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