नई दिल्ली: सावन में त्योहारों का आगाज होता है. कांवड़ यात्रा से लेकर तीज के पर्व पर घर की बहू बेटियों को त्यौहार पर कुछ न कुछ उपहार देने की रीत है. बहुत से परिवारों में घेवर या फैनी बेटियों के ससुराल भेजी जाती हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस रीत की शुरुआत राजस्थान से हुई, जहां लड़कियों की शादी के बाद सावन में तीज के दिन उनके मायके से घेवर आता है या वो अपने मायके जाती हैं तो घेवर लेकर जाती हैं. आप भी इस बात की तैयारी में होंगे कि अबकी बार अपनी बहन या बेटी के ससुराल स्वादिष्ट घेवर भेजा जाये. तो यह रिपोर्ट आपके लिए है. साथ ही इसमें हम आपको बताएंगे कि आखिर सावन में ही क्यों बनता है घेवर?
पुरानी दिल्ली के ऐतिहासिक चांदनी चौक बाजार में फतेहपुरी मस्जिद के साथ में घेवर की 122 साल पुरानी दुकान है. इसका घेवर दिल्ली के अलावा पंजाब, राजस्थान,उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में मशहूर है. इसका नाम है ‘चैना राम सिंधी कन्फेक्शनरी', लेकिन पूरी दिल्ली और देशभर में इसकी पहचान चैनाराम हलवाई के नाम से है. इस दुकान में हर मिठाई और घेवर शुद्ध देसी घी में बनाया जाता है, जो खाने में काफी स्वादिष्ट होती है.
लाहौर से दिल्ली आई 122 साल पुरानी यह दूकान: चांदनी चौक में यह दुकान 1901 में शुरू हुई थी. उससे पहले चैनाराम हलवाई की ये दुकान लाहौर में थी. बंटवारे के बाद दिल्ली शिफ्ट कर ली गई. तब दो सिंधी कारोबारी भाई चैनाराम और नीचाराम ने इस दुकान पर मिठाइयां बेचनी शुरू की और आज पांचवीं और चौथी पीढ़ी व्यवसाय संभाल रही हैं. दुकान के मालिक हरीश गिदवानी ने 'ETV भारत' को बताया कि 122 साल पहले उनके घर पर दादा ने इस दुकान को शुरू किया था. आम दिनों में तो दुकान पर सामान्य भीड़ रहती ही है, लेकिन सावन में घेवर खरीदने वालोे की लंबी कतार लग जाती है. चाहे कितनी भी बारिश हो रही हो, लोग फिर भी लाइन में खड़े हो कर अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं.
लाजवाब स्वाद: घेवर पारंपरिक किस्म से बनाया जाता है, जिससे उसका स्वाद लाजवाब है. कितना भी घेवर खा लो, मन नहीं भरेगा. वहीं मुंह में रखते ही घेवर घुलना शुरू हो जाता है. फिर देसी घी से जुड़ा इसका स्वाद आपकी जुबान के साथ साथ मन को भी खुश कर देगा. यहां मलाई घेवर, रबड़ी घेवर, ड्राई फ्रूट्स घेवर की मांग सबसे अधिक है.
घेवर की कीमत क्या है?: घेवरों की कीमत 800 रुपये से लेकर 940 रुपये किलो तक है. इस दुकान पर जो बाकी मिठाइयां बिकती हैं, वह भी कम स्वादिष्ट नहीं हैं. सभी देसी घी की ही हैं. इनमें विभिन्न प्रकार के कराची हलवा से लेकर सेव पाक, पिस्ता हलवा, पिन्नी, डोडा बर्फी, काजू बर्फी, कोकोनट बर्फी आदि मशहूर हैं. पंजाब से आए गौरव जैन ने बताया कि पंजाब में भी इनका घेवर काफी फेमस है. एक अन्य ग्राहक ने बताया कि वो दिल्ली में रहते हैं, यहां तो घेवर खाते ही हैं, अपने पुश्तैनी घर भी ले जाते हैं, जो रोहतक में है. उन्होंने कहा कि जो स्वाद घेवर में है वैसा स्वाद किसी में नहीं है.
मॉनसून में ही क्यों खाया जाता है घेवर? : घेवर का तीज त्योहार से खास रिश्ता है. मॉनसून में घेवर बनाने और खाने की एक खास वजह हमारी सेहत भी है. इस मौसम में घेवर खाना हमारे शरीर के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है. जानकारी के मुताबिक बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा पेट की बीमारियां होती हैं. यही वजह है कि सावन में खोया, दूध, दही की बजाय घी और चीनी का इस्तेमाल कई बीमारियों को आपसे दूर रखता है.
इसके अलावा घेवर की एक और खास बात है, जो इसे सीजन के अनुकूल मिठाई बनाती है. दरअसल बारिश में मॉइश्चर होने की वजह से बाकी मिठाई चिपचिपी हो जाती है और जल्दी खराब भी हो सकती है. नमी की वजह से मिठाई में जल्दी फंगस लग सकता है, लेकिन घेवर में पहले से ही नमी होती है, जिसकी वजह से मौसम के असर से इसके स्वाद में कमी नहीं आती. अगर घेवर पर खोया और पनीर न लगाया जाए तो इस मौसम में ये कई दिन तक खराब भी नहीं होता.
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