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Kargil War: भारतीय जवानों ने खट्टे किए थे दुश्मन के दांत, जानिए इन्हीं वीर योद्धाओं से उनकी बाहदुरी की कहानी

जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में 24 साल पहले भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें भारत ने शानदार जीत हासिल की. इसमें कई सेना के की जवानों ने बहादुरी से लड़ते हुए देश के लिए शहादत दी. वहीं कई ऐसे जवान इस जीत के गवाह बने. आइए जानते हैं इन्हीं जवानों से उनकी बहादुरी की कहानी.

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Published : Jul 27, 2023, 8:14 AM IST

Updated : Jul 27, 2023, 9:11 AM IST

वीर योद्धाओं की बाहदुूरी की कहानी

नई दिल्लीः कारगिल युद्ध के 24 साल पूरे हो गए हैं. इस युद्ध में हमारे सैकड़ों जवान देश की खातिर शहीद हुए थे. इनके बलिदान के कारण भारत इस युद्ध में विजयी हुआ था. वहीं कई ऐसे वीर सैनिक थे, जो इस जीत के साक्षी भी रहे. उन्हीं में से अलग-अलग योद्धाओं से ईटीवी की टीम ने बात की और उन्होंने बताया कि किस तरह कारगिल की लड़ाई में वह शामिल थे और इस दौरान वहां का कैसा माहौल था.

सेना में हवलदार के रूप में तैनात रहे कारगिल योद्धा विष्णु प्रसाद के प्लाटून को उस समय तोलोलिंग पर कब्जा करने का टास्क मिला था. इसके बाद वे इस पर कब्जा कर लिया लेकिन गोली लगने से वे घायल हो गए. इनके बायें पैर के ऊपरी हिस्से में गोली लगी थी. ये दो साल तक हॉस्पिटल में इलाज कराते रहे. उसके बाद 2002 से ये विजय वीर आवास में रह रहे हैं. इन्होंने बताया कि सरकार ने बहुत मदद की है. पेंशन में बहुत आराम मिला है. दो करोड़ से ज्यादा का घर फ्री में दिया गया. मान सम्मान भी बहुत ज्यादा मिला है. उस समय देश के तीनों सेनाओं के चीफ उनसे मिलने तक आए थे.

आर्मी में कैप्टन रहे अखिलेश सक्सेना ने बताया कि उन्होंने कारगिल युद्ध में तीन हमले में शामिल रहे थे. तोलोलिंग, जो सबसे मुश्किल लक्ष्य में से एक था, उसमें उन्होंने आर्टलरी को लीड किया था. इंफैन्ट्री के साथ इसमें विजय हासिल की थी. यह पूरे युद्ध का एक निर्णायक मोड़ था. इसके अलावा दो और अटैक में भी शामिल हुए थे. आखिरी अटैक में वे काफी घायल हो गए थे. उन्हें डेढ़ साल तक लगातार हॉस्पिटल में रहना पड़ा था. सरकार की तरफ से काफी मदद दी गई. कारगिल सोसाइटी आवास का निर्माण किया गया. इस आवास का उद्देश्य यही था कि जिन-जिन लोगों ने अपने परिवारवालों को खोया है, या जो भी विकलांग हुए हैं, उनको एक जगह रह सकें.

रिटायर्ड मेजर अशोक शर्मा ने बताया कि वो कारगिल की लड़ाई में शुरू से शामिल थे. 1998 में कारगिल के काकसर एरिया में तैनात थे. कारगिल युद्ध में वे राजपूताना राइफल्स का बैटरी कमांडर थे. उनलोगों ने तोलोलिंग को सपोर्ट किया और थ्री पीपल एरिया पर विजय हासिल की. शुरू में सोच रहे थे कि हमारी तैयारी अच्छी है, लेकिन मौसम के कारण कई खामियां सामने आई. एक नया इलाका होने के कारण और बार-बार स्थिति बदलने के कारण थोड़ा संभलने में समय लगा. ज्यादा बर्फ, खराब मौसम में सभी जवानों ने दुश्मन का सामना बहादुरी से किया और जीत हासिल की.

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वीर योद्धाओं की बाहदुूरी की कहानी

नई दिल्लीः कारगिल युद्ध के 24 साल पूरे हो गए हैं. इस युद्ध में हमारे सैकड़ों जवान देश की खातिर शहीद हुए थे. इनके बलिदान के कारण भारत इस युद्ध में विजयी हुआ था. वहीं कई ऐसे वीर सैनिक थे, जो इस जीत के साक्षी भी रहे. उन्हीं में से अलग-अलग योद्धाओं से ईटीवी की टीम ने बात की और उन्होंने बताया कि किस तरह कारगिल की लड़ाई में वह शामिल थे और इस दौरान वहां का कैसा माहौल था.

सेना में हवलदार के रूप में तैनात रहे कारगिल योद्धा विष्णु प्रसाद के प्लाटून को उस समय तोलोलिंग पर कब्जा करने का टास्क मिला था. इसके बाद वे इस पर कब्जा कर लिया लेकिन गोली लगने से वे घायल हो गए. इनके बायें पैर के ऊपरी हिस्से में गोली लगी थी. ये दो साल तक हॉस्पिटल में इलाज कराते रहे. उसके बाद 2002 से ये विजय वीर आवास में रह रहे हैं. इन्होंने बताया कि सरकार ने बहुत मदद की है. पेंशन में बहुत आराम मिला है. दो करोड़ से ज्यादा का घर फ्री में दिया गया. मान सम्मान भी बहुत ज्यादा मिला है. उस समय देश के तीनों सेनाओं के चीफ उनसे मिलने तक आए थे.

आर्मी में कैप्टन रहे अखिलेश सक्सेना ने बताया कि उन्होंने कारगिल युद्ध में तीन हमले में शामिल रहे थे. तोलोलिंग, जो सबसे मुश्किल लक्ष्य में से एक था, उसमें उन्होंने आर्टलरी को लीड किया था. इंफैन्ट्री के साथ इसमें विजय हासिल की थी. यह पूरे युद्ध का एक निर्णायक मोड़ था. इसके अलावा दो और अटैक में भी शामिल हुए थे. आखिरी अटैक में वे काफी घायल हो गए थे. उन्हें डेढ़ साल तक लगातार हॉस्पिटल में रहना पड़ा था. सरकार की तरफ से काफी मदद दी गई. कारगिल सोसाइटी आवास का निर्माण किया गया. इस आवास का उद्देश्य यही था कि जिन-जिन लोगों ने अपने परिवारवालों को खोया है, या जो भी विकलांग हुए हैं, उनको एक जगह रह सकें.

रिटायर्ड मेजर अशोक शर्मा ने बताया कि वो कारगिल की लड़ाई में शुरू से शामिल थे. 1998 में कारगिल के काकसर एरिया में तैनात थे. कारगिल युद्ध में वे राजपूताना राइफल्स का बैटरी कमांडर थे. उनलोगों ने तोलोलिंग को सपोर्ट किया और थ्री पीपल एरिया पर विजय हासिल की. शुरू में सोच रहे थे कि हमारी तैयारी अच्छी है, लेकिन मौसम के कारण कई खामियां सामने आई. एक नया इलाका होने के कारण और बार-बार स्थिति बदलने के कारण थोड़ा संभलने में समय लगा. ज्यादा बर्फ, खराब मौसम में सभी जवानों ने दुश्मन का सामना बहादुरी से किया और जीत हासिल की.

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Last Updated : Jul 27, 2023, 9:11 AM IST

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