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कोरोना काल में दृष्टिबाधित छात्रों की बढ़ी समस्याएं, स्क्राइब मिलने में भी हो रही परेशानी

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Published : Jan 7, 2021, 2:06 PM IST

कोरोना काल में दृष्टिबाधित छात्रों के लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण समय रहा है. विपरीत परिस्थितियों में इन छात्रों को पढ़ाई जारी रखने के लिए काफी मुसीबत उठानी पड़ी.

problems of blind students in Corona period
कोरोना काल में दृष्टिबाधित छात्रों की समस्याएं

नई दिल्ली: कोविड के चलते शैक्षणिक संस्थान आनन फानन में बंद कर दिए गए. वहीं पढ़ाई का नुकसान न हो इसको लेकर विकल्प के तौर पर ऑनलाइन क्लासेस लगाई जा रही हैं. आम छात्रों के लिए इस तरह से पढ़ाई कर पाना जितना चुनौतीपूर्ण रहा है, उससे कहीं ज्यादा परेशानी दृष्टिबाधित छात्रों को उठानी पड़ी. किस तरह इन छात्रों ने अपनी पढ़ाई जारी रखी.

कोरोना काल में दृष्टिबाधित छात्रों की समस्याएं

किस तरह की चुनौतियां का उन्हें सामना करना पड़ा और इस समय वह शैक्षिक संस्थानों से क्या उम्मीद करते हैं इन तमाम बातों को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने जेएनयू के दृष्टिबाधित छात्रों से बात की. वहीं जेएनयू से पीएचडी कर रही छात्रा निधि मिश्रा ने बताया कि पढ़ाई के दौरान जो समस्या आई सो तो आयी ही लेकिन परीक्षा के लिए स्क्राइब मिलना मुश्किल हो गया था. नतीजतन यूपीपीसीएस की परीक्षा के लिए उन्हें छठीं क्लास के बच्चे को स्क्राइब बनाना पड़ा.


ऑनलाइन पढ़ाई दृष्टिबाधित छात्रों के लिए बनी मुसीबत

देश इन दिनों कोरोना महामारी से जूझ रहा है. इससे जहां हर एक क्षेत्र प्रभावित हुआ है वहीं सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है शिक्षा का. एहतियात के तौर पर मार्च से ही बंद पड़े शैक्षणिक संस्थानों को अभी तक खोला नहीं जा सका है बल्कि विकल्प के तौर पर उनकी ऑनलाइन पढ़ाई कराई जा रही है. इस ऑनलाइन क्लास में इंटरनेट और अन्य तकनीकी संसाधन का उपलब्ध ना होना कई छात्रों के लिए परेशानी का सबब बना है. वहीं सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण समय रहा दृष्टिबाधित छात्रों के लिए. इन विपरीत परिस्थितियों में इन छात्रों को पढ़ाई जारी रखने के लिए बहुत मुसीबत उठानी पड़ी.

किसी बुरे सपने की तरह था लॉकडाउन

जेएनयू से पीएचडी कर रही दृष्टिबाधित छात्रा निधि मिश्रा ने बताया कि कोविड के लगा लॉकडाउन उनके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था. उन्होंने कहा कि एकदम से सभी चीजें बंद कर दी गईं. यहां तक कि उन्हें तत्काल हॉस्टल खाली कर घर जाने को भी कह दिया गया था. आनन-फानन में उनका सारा सामान हॉस्टल में ही रह गया.

दृष्टि बाधित होने के चलते वह पढ़ाई के लिए तकनीक पर ही पूरी तरह निर्भर रहती हैं लेकिन हॉस्टल खाली कर जाते समय उनके कई जरूरी सामान और सभी तकनीकी संसाधन हॉस्टल में ही रह गए. समय पर थीसिस जमा करना चुनौती निधि ने बताया कि दृष्टिबाधित छात्रों के लिए उनकी किताबों को स्कैन किया जाता है और तकनीक के जरिए अपनी पढ़ाई कर पाते हैं, लेकिन लॉकडाउन के समय जब वह गांव गई तो वहां इस तरह की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी और ना ही लाइब्रेरी थी.

निधि ने कहा कि ऐसे में उनकी पढ़ाई का खासा नुकसान हुआ है और उनके लिए अपनी थीसिस को तय समय में पूरा कर पाना लगभग असंभव है. उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि थीसिस पूरा करने के लिए उन्हें कम से कम एक साल का समय और दिया जाए जिससे उनकी पढ़ाई का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कर सकें.

छठी क्लास के छात्र को बनाया स्क्राइब

पढ़ाई का नुकसान होना तो जैसे आम बात बन गई थी लेकिन निधि को इस दौरान कुछ ऐसे भी कड़वे अनुभव हुए जो शायद ही वह कभी नहीं भूल पाए. निधि बताती हैं कि वह सिविल सर्विस की तैयारी कर रही थी और परीक्षा के दौरान उस समय बहुत बड़ी समस्या आई जब उन्हें परीक्षा लिखने के लिए स्क्राइब नहीं मिला.

हर कोई अपने बच्चे या घर के सदस्य को कोरोना वायरस के चलते बाहर भेजने से कतरा रहा था. उन्होंने कहा कि मेरी परीक्षा ना छूट जाए ऐसे में मजबूर होकर छठवीं क्लास में पढ़ रहे अपने भाई को ही स्क्राइब बनाकर ले जाना पड़ा और यूपीपीसीएस जैसी कठिन परीक्षा छठवीं क्लास के अपने भाई से लिखवानी पड़ी.

जिसके लिए उसका प्रश्नपत्र पढ़ पाना भी मुश्किल था. साथ ही उन्होंने कहा कि किसी तरह का सहयोग आयोग ने नहीं किया. यहां तक कि जो परीक्षा केंद्र थे वहां तक पहुंचना भी चुनौतीपूर्ण रहा. इंटरनेट और बुक स्कैन करने की समस्या आ रही है शैक्षिक संस्थान बंद होने से निधि की तरह और भी कई ऐसे छात्र हैं जिन्होंने इस दौरान पढ़ाई को लेकर काफी संघर्ष किया.

पढ़ाई जारी रखना है सबसे बड़ी मुश्किल

जेएनयू से ही पढ़ाई कर रहे दृष्टिबाधित छात्र शुभम ने बताया कि विश्वविद्यालय बंद होने से मानो उनकी पढ़ाई के सभी जरिए बंद हो गए क्योंकि वहां से ही इनकी पुस्तकें स्कैन की जाती थी और डिजिटल डिवाइस की मदद से अपनी पढ़ाई कर पाते थे लेकिन कोरोना वायरस के चलते ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया जिससे उनकी पढ़ाई का खासा नुकसान हुआ. वहीं इंटरनेट की समस्या ऑनलाइन क्लासेस में भी बहुत बड़ी समस्या बना हुआ है.

पढ़ाई जारी रखना है सबसे बड़ी मुश्किल कुछ इसी समस्या से दो-चार हुई जेएनयू की एक और दृष्टिबाधित छात्रा श्वेता. फर्क सिर्फ इतना था कि जहां बाकी लोग तकनीकी संस्थान संसाधनों के अभाव से परेशान हो रहे थे. वहीं श्वेता के साथ दोहरी परेशानी थी.

श्वेता ने बताया कि पढ़ाई जारी रखने को लेकर जो समस्याएं आ रही थीं वह तो हर किसी के साथ थी लेकिन दूसरी सबसे बड़ी समस्या हो जाती कि एक लड़की होने के नाते आप घर पर रहकर अपनी पढ़ाई नहीं कर सकते बल्कि आपको घर के सभी सदस्यों के साथ घरेलू काम में भी हाथ बंटाना पड़ता है. ऐसे में अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर पाना बहुत मुश्किल होता है और यही उनके साथ भी हुआ.


प्रशासन नहीं सुनता है हमारी कोई बात

जेएनयू के दृष्टिबाधित छात्र राम का कहना है कि कोरोना काल में उनकी पढ़ाई पर ब्रेक लग गया है. उन्होंने कहा कि जहां सभी सामाजिक दूरी की बात कर रहे हैं वहां उनकी सामाजिक दूरी ऐसी हो गई कि वह समाज से ही कट गए.

उन्होंने कहा कि वह राजस्थान के गांव से ताल्लुक रखते हैं जहां पर इंटरनेट की सुविधा सही नहीं है. 10 मिनट क्लास चलती है और फिर इंटरनेट कट जाने के चलते उनकी क्लास पूरी नहीं हो पाती. दिल्ली में आकर रहने का सोचा तो यहां कई समझौतों के साथ यदि आप रह रहे हों तो आप पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे सकते.

साथ ही उन्होंने प्रशासन पर आरोप लगाया कि इतनी समस्याओं को देखते हुए भी प्रशासन ने सहायता करना तो दूर उनकी बात तक सुनने की जहमत नहीं उठाई.

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