नई दिल्ली: सर गंगा राम हॉस्पिटल भारत का ऐसा पहला हॉस्पिटल बन गया है, जहां कोविड-19 वैक्सीन से जुड़ी थ्रोम्बोसिस थ्रम्बोसाइटोपेनिया टेस्ट सफल साबित हुआ है. अस्पताल में पहला केस जून 2021 में आया था. यह केस आर्मी रेफरल हॉस्पिटल से रेफर किया गया था. सर गंगा राम हॉस्पिटल के हेमेटोलॉजी डिपार्टमेंट में इसे डायग्नोस्ट और कंफर्म किया गया था. इस विभाग की हेड प्रो. ज्योति कोटवाल ने इस रिपोर्ट को हेमेटोलॉजी एवं ब्लड ट्रांसफ्यूजन भारतीय साइंस जर्नल में 29 सितंबर 2021 को पब्लिश किया. हालांकि इस केस को देरी से गंगा राम हॉस्पिटल में रेफर किए जाने की वजह से मरीज को बचाया नहीं जा सका.
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गंगा राम हॉस्पिटल के हेमेटोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड प्रो. ज्योति कोटवाल ने बताया कि जून 2021 में इस तरह का पहला केस उनके पास आया था. उसके बाद छह और VITT के मामले सामने आए. दिलचस्प यह है कि इनमें से पांच सैंपल केरल से आए और एक दिल्ली के अस्पताल से आया. सभी सैंपल सर गंगा राम हॉस्पिटल में कोरियर के माध्यम से भेजे गए थे. इसीलिए समय से इनकी जांच की गई और उसके मुताबिक, इलाज के लिए एडवाइज दी गई, जिसकी वजह से VITT सिंड्रोम के सभी छह मरीजों को बचाया जा सका .
आपको बता दें कि कोविड-19 वेक्टर एडिनोवायरस वैक्सीन लेने के बाद कुछ मरीजों में ब्लड क्लोट यानी थक्का जमने और प्लेटलेट्स की कमी देखी गई. इस मेडिकल कंडीशन को VITT या थ्रोम्बोसिस थ्रम्बोसिटोपेनिया कहा जाता है. इस तरह के केस 2021 के शुरुआत में डेनमार्क, इंग्लैंड, जर्मनी और कनाडा में देखने को मिला. इसके बाद 11 अगस्त 2021 को संयुक्त राष्ट्र ने TTS को डायग्नोसिस एवं इलाज के लिए गाइडलाइन जारी की.
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सर गंगा राम हॉस्पिटल में प्रोफेसर ज्योति कोटवाल के अंतर्गत हेमेटोलॉजी डिपार्टमेंट पूरे भारत में पहला सेंटर है, जहां स्टैंडर्ड प्लेटलेट एग्रीगेशन टेस्ट किया जाता है. VITT के संदिग्ध मरीजों के लिए गए सैंपल पर 48 घंटे के भीतर जांच होने के बाद VITT सिंड्रोम का आसानी से पता लगाया जा सकता है. अगर वैक्सीन लेने के तीन दिन से लेकर 30 दिनों के भीतर लक्षण दिखाई दे तो इसकी जांच संभव है और समय पर इलाज हो सकता है.
दुनिया भर में जो इसको लेकर आंकड़े प्राप्त हुए हैं उसके मुताबिक, एक लाख से लेकर एक लाख 27 हजार वैक्सीन की डोज लेने वाले व्यक्तियों में से किसी एक में इस तरह का सिंड्रोम देखा जा सकता है. डॉक्टर कोटवाल ने बताया कि इस टेस्ट के बारे में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है जैसा कि जर्मनी, यूके और कनाडा में इसके लिए डायग्नोस्टिक एवं ट्रीटमेंट गाइडलाइंस अगस्त 2021 में ही जारी कर दी गई है. इसको लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी गाइडलाइन जारी की हैं.